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क्‍या है क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट? - श्रीनारद मीडिया

क्‍या है क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट?

क्‍या है क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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 Clinical Establishment Act: प्रदेश सरकार ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम को बड़ी राहत दी है। राज्य कैबिनेट ने 50 बेड तक के अस्पताल और नर्सिंग होम से पंजीकरण शुल्क न लेने का निर्णय का लिया है।

वहीं, 50 से अधिक बेड वाले अस्पताल और नर्सिंग होम के लिए भी पंजीकरण शुल्क में 90 प्रतिशत तक की कमी की गई है। हालांकि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।

2010 में पारित किया था क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट

  • बता दें, केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पारित किया था।
  • स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से बनाए गए इस एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए भी बाध्यकारी बनाया गया।
  • यह अलग बात है कि उत्तराखंड सरकार को इस एक्ट को लागू कराने में पांच साल लग गए। वर्ष 2015 में यह एक्ट लागू किया गया।
  • एक्ट लागू करने के बाद शुरुआती दौर में इसके तहत कुछ स्वास्थ्य इकाइयों के पंजीकरण हुए, लेकिन फिर इसका विरोध शुरू हो गया।
  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने इसके कुछ मानकों में संशोधन की मांग की। आइएमए का कहना था कि 50 से कम बेड वाले अस्पतालों को इससे छूट दी जाए।
  • कहा गया कि एक्ट में जिस तरह के कड़े प्राविधान हैं, छोटे-छोटे क्लीनिक, नर्सिंग होम एक-एक कर बंद हो जाएंगे। उनके लिए ईटीपी, एसटीपी सहित अन्य मानक पूरा करना अत्यंत मुश्किल है। इसे लेकर सरकार, शासन व विभाग स्तर पर कई दौर की वार्ता हुई।
  • अब सरकार ने 50 बेड तक के अस्पताल और नर्सिंग होम को पंजीकरण शुल्क में छूट दी है।
  • आइएमए ने सरकार के इस कदम का स्वागत जरूर किया है, पर निजी चिकित्सकों का कहना है कि उनकी असल मांग 50 बेड तक के अस्पतालों को एक्ट से बाहर रखने की थी।

क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के नियमों के चलते छोटे अस्पतालों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन व्यवहारिक दिक्कतों को देखते हुए ही 50 बेड से कम वाले अस्पतालों को एक्ट से बाहर रखने की मांग की जा रही है। कई राज्यों में इस तरह की रियायत दी गई है। सरकार ने पंजीकरण शुल्क माफ कर एक पहल जरूर की है, पर छोटे अस्पतालों की दिक्कतों को समझते हुए सरकार उन्हें एक्ट से बाहर रखने का भी फैसला ले।

-डा. अजय खन्ना, प्रांतीय महासचिव आइएमए

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