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ग्राम्शी का अमल का दर्शन/फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस क्या है? - श्रीनारद मीडिया

ग्राम्शी का अमल का दर्शन/फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस क्या है?

ग्राम्शी का अमल का दर्शन/फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पूंजीवादी आधिपत्य का विरोध  करने वाले जैविक बुद्धिजीवियों के एक शक्तिशाली समूह के उदय ने सामाजिक और आर्थिक विश्लेषकों का ध्यान आकर्षित किया है।

  • इतालवी मार्क्सवादी एंटोनियो ग्राम्शी ने अपनी प्रिज़न नोटबुक में “जैविक बुद्धिजीवी” की अवधारणा पेश की, जिसमें उनके अमल के दर्शन को समझने में उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
  • ग्राम्शी ने पूंजीवादी समाज में वर्ग शक्ति, विचारधारा, जैविक बुद्धिजीवियों, आधिपत्य और राज्य के बीच जटिल संबंधों पर बल दिया।

ग्राम्शी का अमल का दर्शन/फिलॉसफी ऑफ प्रैक्सिस:

  • ग्राम्शी का अमल का दर्शन मार्क्सवाद के पुनर्निरुपण का एक तरीका है जो ऐतिहासिक परिवर्तन लाने में संस्कृति, विचारों और लोगों के निर्णयों के महत्त्व पर केंद्रित है।
    • आर्थिक कारकों को इतिहास के एकमात्र प्रेरक शक्ति के रूप में देखने के बजाय ग्राम्शी का मानना था कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों का शिकार होने के बजाय अपने भाग्य को आकार देने में सक्रिय भागीदारी कर सकता है।
  • ग्राम्शी के अनुसार, आधुनिक पूंजीवादी समाजों में अलग-अलग रुचियों और जागरूकता के स्तर वाले अलग-अलग सामाजिक समूह होते हैं।
    • प्रभुत्वशाली वर्ग न केवल आर्थिक माध्यमों से बल्कि संस्कृति और नैतिकता को प्रभावित करते हुए सत्ता पर अधिकार रखता है।
  •  ग्राम्शी का प्रैक्सिस दर्शन यह समझाने का प्रयास करता है कि शासक वर्ग सांस्कृतिक तथा नैतिक नेतृत्व के माध्यम से निम्न वर्गों पर अपना नियंत्रण कैसे बनाए रखता है।
    • इसका उद्देश्य यह समझना भी है कि कैसे प्रमुख वर्ग अधीनस्थ वर्गों पर अपना आधिपत्य या सांस्कृतिक तथा नैतिक नेतृत्व बनाए रखता है, इसके साथ ही कैसे अधीनस्थ वर्ग एक प्रति-आधिपत्य विकसित कर सकता है जो वर्तमान व्यवस्था को चुनौती देता है।

जैविक बुद्धिजीवी: 

  • ग्राम्शी के अनुसार, बुद्धिजीवी उन लोगों की एक अलग श्रेणी नहीं है जिनके पास बुद्धि की एक विशेष गुणवत्ता या शिक्षा का उच्च स्तर है। बल्कि बुद्धिजीवियों की पहचान समाज में उनके कार्य और भूमिका से होती है
    • ग्राम्शी ने दो प्रकार के बुद्धिजीवियों के मध्य अंतर किया है: पारंपरिक और जैविक
  • पारंपरिक बुद्धिजीवी वे हैं जो किसी भी वर्ग या सामाजिक समूह से स्वतंत्र और स्वायत्त होने का दावा करते हैं।
    • वे स्वयं को सार्वभौमिक मूल्यों और ज्ञान के वाहक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जैसे पुजारी, शिक्षक, कलाकार, वैज्ञानिक आदि।
    • हालाँकि ग्राम्शी ने तर्क दिया कि पारंपरिक बुद्धिजीवी वास्तव में प्रमुख वर्ग के साथ जुड़े हुए हैं, साथ ही उनके वैश्विक दृष्टिकोण तथा मूल्यों को वैध बनाकर उनके हितों की रक्षा करते हैं।
  •  जैविक बुद्धिजीवी वे होते हैं जो एक विशिष्ट वर्ग या सामाजिक समूह के भीतर से उभरते हैं और उसके हितों और आकांक्षाओं को स्पष्ट करते हैं।
    • वे आम जनता की सामान्य समझ और प्रमुख विचारधारा के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं क्योंकि स्वाभाविक रूप से वे उनसे जुड़े होते हैं। इसके अतिरिक्त वे राजनीतिक कार्रवाई के लिये अपने वर्ग या समूह को संगठित और सक्रिय करने में सहायता करते हैं।
    • ग्राम्शी ने तर्क दिया है कि प्रत्येक वर्ग या सामाजिक समूह अपने स्वयं के जैविक बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का निर्माण करता है, लेकिन उनमें से सभी समान रूप से विकसित या प्रभावी नहीं हैं।
      • वह पूंजीवादी आधिपत्य को चुनौती देने और एक प्रति-आधिपत्य गुट के निर्माण में जैविक बुद्धिजीवियों की भूमिका पर विशेष ध्यान देते हैं।

जैविक बुद्धिजीवी पूंजीवादी आधिपत्य को कैसे चुनौती देते हैं?

  • पूंजीवादी आधिपत्य सहमति एवं अनुनय पर आधारित है, न कि दबाव और हिंसा पर।
  • प्रभुत्वशाली वर्ग शिक्षा, मीडिया, धर्म और संस्कृति सहित विभिन्न संस्थानों तथा प्रथाओं का उपयोग करके अपनी विचारधारा एवं मूल्यों को वैश्विक दृष्टि में शामिल करता है।
  • हालाँकि आधिपत्य कभी भी पूर्ण या स्थिर नहीं होता है। इसका हमेशा चेतना और संस्कृति के वैकल्पिक रूपों द्वारा विरोध व प्रतिरोध किया जाता है जो उत्पीड़ित वर्गों एवं समूहों की जरूरतों तथा मांगों को व्यक्त करते हैं।
    • यहाँ पर जैविक बुद्धिजीवी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे चेतना एवं संस्कृति के वैकल्पिक रूपों को एक सुसंगत और व्यापक वैश्विक दृष्टि में व्यक्त करने में सहायता करते हैं जो प्रमुख वर्गों को चुनौती देता है।
    • वे समान हितों एवं लक्ष्यों को साझा करने वाले विभिन्न वर्गों और समूहों को एक ऐतिहासिक ब्लॉक में जोड़ने में भी सहायता करते हैं जो ऐतिहासिक परिवर्तन के सामूहिक एजेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • जैविक बुद्धिजीवी अपने विचारों को जनता पर नहीं थोपते बल्कि उनके साथ संवाद प्रक्रिया में संलग्न होते हैं।

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