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भारत में मेडिकल शिक्षा में सुधार हेतु क्या हो रहा हैं? - श्रीनारद मीडिया

भारत में मेडिकल शिक्षा में सुधार हेतु क्या हो रहा हैं?

भारत में मेडिकल शिक्षा में सुधार हेतु क्या हो रहा हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यूक्रेन-रूस युद्ध ने यूक्रेन में भारतीय मेडिकल छात्रों के लिये कठिन समय उत्पन्न कर दिया है। फरवरी, 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष के युद्ध में परिवर्तित होने के बाद यूक्रेन में पढ़ रहे लगभग 18000 भारतीय मेडिकल छात्रों को घर लौटने के लिये मजबूर होना पड़ा।

  • हालाँकि एक अपवाद के रूप में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इनमें से 4,000 छात्रों को, जो अपने अंतिम सेमेस्टर में थे, घर पर अपनी इंटर्नशिप पूरी करने की अनुमति दी।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से लगभग 70% वापस लौटे MBBS छात्र अब सर्बिया, किर्गिज़स्तान, उज़्बेकिस्तान और जॉर्जिया के विश्वविद्यालयों से पढ़ाई कर रहे हैं।
  • ये कॉलेज मेडिकल शिक्षा प्राप्त करने के लिये भारत से छात्रों के नए बैचों को भी आकर्षित कर रहे हैं।

भारत में मेडिकल शिक्षा से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सीटों की सीमित संख्या: मेडिकल कॉलेज की सीटें अभी भी उम्मीदवारों की संख्या से काफी कम हैं। मेडिकल कॉलेज की सीटों का उम्मीदवारों से अनुपात लगभग 20:1 है।
  • उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एज़ुकेशनल प्लानिंग द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, विगत 10 वर्षों में परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या लगभग 3 गुना बढ़ गई है, जबकि इनमें से केवल 0.25% ही शीर्ष कॉलेजों में पहुँच पाते हैं।
  • मेडिकल कॉलेजों का असमान वितरण: भारत में मेडिकल कॉलेज शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में एक शून्यक (vacuum) उत्पन्न करता है।
  • निजी मेडिकल कॉलेजों का अधिक शुल्क: सरकारी संस्थान शुल्क और शिक्षा गुणवत्ता के मामले में अधिक किफायती हैं।
  • पुराना पाठ्यक्रम: भारत में कई मेडिकल कॉलेजों का पाठ्यक्रम पुराना है और वर्तमान चिकित्सा पद्धतियों के अनुरूप नहीं है। इससे मेडिकल कॉलेजों में छात्र सीखे गए कौशल और नैदानिक ​​अभ्यास में आवश्यक कौशल के बीच अंतर उत्पन्न होता है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में कई मेडिकल कॉलेजों में उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी है। इसमें आधुनिक प्रयोगशालाएँ उन्नत चिकित्सा उपकरण और प्रौद्योगिकी तक पहुँच शामिल है।
  • व्यावहारिक प्रशिक्षण पर अपर्याप्त ज़ोर: भारत में चिकित्सा शिक्षा प्रायः सिद्धांत-आधारित है, जिसमें व्यावहारिक प्रशिक्षण पर अपर्याप्त ज़ोर दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप डॉक्टर पर्याप्त व्यावहारिक अनुभव के बिना स्नातक हो सकते हैं।
  • खराब चिकित्सा अनुसंधान: अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में चिकित्सा अनुसंधान पर कम ज़ोर दिया जाता है। भारत में अधिकतर डॉक्टर अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी करना पसंद करते हैं, इसलिये शोध की उपेक्षा की जाती है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC):

  • NMC का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया है, जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के रूप में जाना जाता है।
  • NMC भारत में चिकित्सा शिक्षा और अभ्यास के शीर्ष नियामक के रूप में कार्य करता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल शिक्षा में उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध, NMC संपूर्ण देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण का वितरण सुनिश्चित करता है।

भारत में मेडिकल शिक्षा में सुधार हेतु क्या पहलें की गई हैं?

  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग: अकुशल और अपारदर्शी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) में पूरी तरह से बदलाव करते हुए, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की स्थापना की गई है। पेशेवर ईमानदारी, अनुभव और उत्कृष्टता के उच्चतम मानकों वाले इस आयोग की प्राथमिकता मेडिकल शिक्षा में सुधार करना है।
    • इन सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये सक्षम व्यक्तियों का सावधानीपूर्वक चयन किया गया है।
  • सीटों की संख्या बढ़ाना: निजी-सार्वजनिक भागीदारी प्रारूप का प्रयोग करके सरकार ने ज़िला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेजों में परिवर्तित करके सीटों की संख्या बढ़ाई है।
  • शुल्कों/फीस का विनियमन: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम में निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50% सीटों पर फीस व अन्य सभी शुल्कों को विनियमित करने का प्रावधान है। NMC इस संबंध में दिशानिर्देश तैयार कर रही है।
  • एक देश एक परीक्षा: ‘एक देश, एक परीक्षा, एक योग्यता’ प्रणाली तथा एक सामान्य परामर्श प्रणाली सुनिश्चित करते हुए वर्ष 2016 में MBBS नामांकन के लिये राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) शुरू की गई थी।
  • न्यूनतम मानक अनिवार्यता: यह मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिये न्यूनतम मानक अनिवार्यता (MSR) पर संपूर्ण नियमों को सुव्यवस्थित करने से संबंधित है।
  • नियमित गुणवत्ता मूल्यांकन: मेडिकल कॉलेजों की गुणवत्ता का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है, और इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होनी चाहिये। गुणवत्ता नियंत्रण उपाय के रूप में NMC सभी मेडिकल स्नातक के लिये एक सामान्य निकास परीक्षा का आयोजित करता है।

भारत में मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये क्या सिफारिशें की गई हैं?

  • नीति आयोग ने देश के दूरदराज़ के क्षेत्रों में निजी कॉलेजों को ज़िला अस्पतालों से संबद्ध करने का प्रस्ताव रखा है।
  • पैरामेडिक्स और नर्सों के कौशल को बेहतर बनाने से चिकित्सा क्षेत्र की गैर-विशेषज्ञ मांगों को पूरा करने में सहायता मिलेगी व डॉक्टरों की कमी की समस्या का समाधान किया जा सकेगा।
  • उचित प्रोत्साहन के साथ निजी क्षेत्र को मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज शुरू करने के लिये सार्वजनिक निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • चिकित्सा शिक्षा केंद्रों के विस्तार के लिये मौज़ूदा बुनियादी ढाँचे का इष्टतम उपयोग।
  • विशेषज्ञों के लिये सीटों की व्यवस्था के लिये व्यापक भारत-विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाना।
  • मेडिकल कॉलेजों में ‘घोस्ट फैकल्टी’ (ऐसे शिक्षक जो अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध हैं लेकिन उन्हें वेतन दिया जाता है) की व्यवस्था पर प्रतिबंध लगाने के लिये भर्ती प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना आवश्यक है।
  • समस्याओं की शीघ्र पहचान करके उनका समाधान करने के लिये कॉलेजों का नियमित निष्पादन एवं मूल्यांकन।
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