इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) 2022 के अनुसार, कर्नाटक ने एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में न्याय प्रदान करने के संदर्भ में शीर्ष स्थान हासिल किया है।
- रिपोर्ट में तमिलनाडु को दूसरा, तेलंगाना को तीसरा और उत्तर प्रदेश को सबसे नीचे 18वाँ स्थान दिया गया है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट:
- IJR सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज़ और कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के सहयोग से टाटा ट्रस्ट की एक पहल है।
- यह पहली बार वर्ष 2019 में प्रकाशित हुई थी।
- यह प्रत्येक राज्य के समग्र प्रदर्शन का आकलन करने हेतु पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे कई मापदंडों पर विचार कर न्याय वितरण के संदर्भ में राज्यों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करती है।
प्रमुख बिंदु
- न्यायपालिका के प्रदर्शन का मूल्यांकन:
- एक करोड़ से कम आबादी वाले 7 छोटे राज्यों की सूची में सिक्किम का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा, वर्ष 2020 में सिक्किम दूसरे स्थान पर था।
- सिक्किम के बाद अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। सबसे निम्न प्रदर्शन के साथ गोवा राज्य सातवें स्थान पर है।
- न्यायाधीशों की कमी:
- भारतीय न्यायपालिका में न्यायाधीशों और बुनियादी ढाँचे की काफी कमी है जिस कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि, मुकदमों का बढ़ता बोझ और निचले न्यायालयों में मामले की निपटान दर (CCR) में गिरावट देखी जा रही है।
- दिसंबर 2022 तक के आँकड़े के अनुसार, उच्च न्यायालय में 1,108 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के विपरीत कार्यरत न्यायाधीशों की संख्या मात्र 778 है।
- भारतीय न्यायपालिका में न्यायाधीशों और बुनियादी ढाँचे की काफी कमी है जिस कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि, मुकदमों का बढ़ता बोझ और निचले न्यायालयों में मामले की निपटान दर (CCR) में गिरावट देखी जा रही है।
- लंबितता:
- पिछले पाँच वर्षों में अधिकांश राज्यों में प्रति न्यायाधीश लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई।
- उच्च न्यायालयों में औसत लंबितता उत्तर प्रदेश (11.34 वर्ष) और पश्चिम बंगाल (9.9 वर्ष) में सबसे अधिक है, जबकि त्रिपुरा (1 वर्ष), सिक्किम (1.9 वर्ष) और मेघालय (2.1 वर्ष) में सबसे कम है।
- पिछले पाँच वर्षों में अधिकांश राज्यों में प्रति न्यायाधीश लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई।
- मामलों की संख्या में वृद्धि:
- वर्ष 2018 और 2022 के मध्य 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्रति न्यायाधीश मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- मामले निपटान दर:
- वर्ष 2018-19 और 2022 के मध्य उच्च न्यायालयों में मामले निपटान दर (Case Clearance Rate) में छह प्रतिशत अंक (88.5% से 94.6%) का सुधार हुआ है, किंतु निचली अदालतों में 3.6 अंक (93% से 89.4%) की गिरावट दर्ज की गई है।
- अधीनस्थ न्यायालयों की तुलना में उच्च न्यायालय प्रतिवर्ष अधिक मामलों का निस्तारण कर रहे हैं।
- वर्ष 2018-19 में केवल चार उच्च न्यायालयों में 100% या उससे अधिक का CCR था। वर्ष 2022 में यह 12 उच्च न्यायालयों में दोगुना से भी अधिक हो गया है।
- कोर्ट हॉल (Court Halls):
- राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध न्यायाधीशों की संख्या के लिये कोर्ट हॉल की संख्या पर्याप्त प्रतीत होती है, किंतु यदि सभी स्वीकृत पद भरे जाते हैं तो स्थान एक समस्या बन जाएगी।
- अगस्त 2022 में 24,631 स्वीकृत न्यायाधीशों के पदों के लिये 21,014 कोर्ट हॉल थे, जो 14.7% की कमी दर्शाता है।
- सिफारिशें:
- न्यायाधीशों एवं बुनियादी ढाँचे की कमी भारतीय न्यायपालिका के लिये एक गंभीर चिंता का विषय है, जिससे लंबित मामलों में वृद्धि हुई है तथा निचले न्यायालयों में CCR में कमी आई है। सरकार को न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरकर एवं पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करके न्यायिक प्रणाली की दक्षता में सुधार के उपाय के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान करने की आवश्यकता है।
- बेहतर पुलिस प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचे में सुधार, कारागारों में भीड़भाड़ को कम करने एवं न्यायिक प्रणाली की गति और दक्षता में सुधार की आवश्यकता है।
- कानूनी सहायता और पीड़ित मुआवज़ा योजनाओं तक पहुँच में सुधार सहित अपराध पीड़ितों की ज़रूरतों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
- इन चुनौतियों का समाधान करके भारत अधिक न्यायसंगत एवं प्रभावी आपराधिक न्याय प्रणाली प्राप्त करने के करीब पहुँच सकता है।
अन्य निष्कर्ष:
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