अंतर्राज्यीय जल विवाद और समाधान क्या है?

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श्रीनारद  मीडिया सेंट्रल डेस्क

ओडिशा ने अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम 1956 के तहत जल शक्ति मंत्रालय से शिकायत की है जिसमें छत्तीसगढ़ पर गैर-मानसून मौसम में महानदी में जल छोड़कर महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण (MWDT) को गुमराह करने का आरोप लगाया है।

  • MWDT का गठन मार्च 2018 में किया गया था। न्यायाधिकरण को जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा गया है।
  • महानदी बेसिन जल आवंटन के संबंध में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच कोई अंतर्राज्यीय समझौता नहीं है।

ओडिशा की चिंता:

  • छत्तीसगढ़ ने कलमा बैराज में 20 गेट खोले हैं, जिससे गैर-मानसून मौसम के दौरान महानदी के निचले जलग्रहण क्षेत्र में 1,000-1,500 क्यूसेक जल बह रहा है।
  • गैर-मानसून मौसम में छत्तीसगढ़ द्वारा जल छोड़ने की अनिच्छा के कारण अकसर महानदी के निचले जलग्रहण क्षेत्र में पानी की अनुपलब्धता होती है।
    • यह रबी फसलों को भी प्रभावित करता है और ओडिशा में पेयजल की समस्या को भी बढ़ाता है।
  • हालाँकि इस बार छत्तीसगढ़ ने बिना किसी सूचना के जल छोड़ दिया है, जिसने महानदी के जल प्रबंधन पर चिंता जताई है।
    • मानसून के दौरान राज्य को ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बाढ़ का सामना करना पड़ा और इस प्रकार ओडिशा को बिना सूचित किये गेट खोल दिये जाते हैं।

भारत में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद:

  • परिचय:
    • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद आज भारतीय संघ में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
      • कृष्णा जल विवाद, कावेरी जल विवाद और सतलुज यमुना लिंक नहर के हालिया मामले इसके कुछ उदाहरण हैं।
    • अब तक विभिन्न अंतर्राज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरणों का गठन किया गया है, लेकिन उनकी अपनी समस्याएँ थीं।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राज्य सूची की प्रविष्टि 17 जल से संबंधित है, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई, नहर, जल निकासी, तटबंध, जल भंडारण और जल विद्युत।
    • संघ सूची की प्रविष्टि 56 केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के नियमन एवं विकास के लिये संसद द्वारा सार्वजनिक हित में उचित घोषित सीमा तक शक्ति प्रदान करती है।
    • अनुच्छेद 262 के अनुसार, जल संबंधी विवादों के मामले में:
      • संसद विधि द्वारा किसी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन के लिये प्रावधान कर सकती है।
      • संसद विधि द्वारा यह प्रावधान कर सकती है कि न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय उपरोक्त वर्णित किसी भी विवाद या शिकायत के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगा।

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद समाधान के लिये तंत्र:

  • अनुच्छेद 262 के अनुसार, संसद ने निम्नलिखित को अधिनियमित किया है:
    • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: इसने भारत सरकार को राज्य सरकारों के परामर्श से अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के लिये बोर्ड स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया है। आज तक कोई नदी बोर्ड नहीं बनाया गया है।
    • अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956: यदि कोई विशेष राज्य अथवा राज्यों का समूह अधिकरण के गठन के लिये केंद्र से संपर्क करते हैं तो केंद्र सरकार को संबद्ध राज्यों के बीच परामर्श करके मामले को हल करने का प्रयास करना चाहिये। यदि यह काम नहीं करता है तो केंद्र सरकार इस न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
    • नोट: सर्वोच्च न्यायालय अधिकरण द्वारा दिये गए फॉर्मूले पर सवाल नहीं उठाएगा, लेकिन वह अधिकरण के कामकाज़ पर सवाल खड़े कर सकता है।
  • सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करने के लिये अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 को वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था।
    • इन संशोधनों के बाद से जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये एक वर्ष की समय-सीमा और निर्णय देने के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा को अनिवार्य हो गया।

अंतर्राज्यीय जल विवाद प्राधिकरण के मुद्दे:

  • लंबे समय तक चलने वाली कार्यवाही और विवाद समाधान में अत्यधिक देरी। भारत में गोदावरी और कावेरी जैसे जल विवाद के समाधान में काफी देरी हुई है।
  • इन कार्यवाहियों को परिभाषित करने वाले संस्थागत ढाँचे और दिशा-निर्देशों एवं अनुपालन सुनिश्चितता में अस्पष्टता।
  • प्राधिकरण की संरचना बहुआयामी नहीं है, इसमें केवल न्यायपालिका के लोग शामिल हैं।
  • सभी पक्षों के लिये स्वीकार्य जल संबंधी आँकड़ों का न होने से वर्तमान में अधिनिर्णय के लिये एक आधार रेखा स्थापित करना मुश्किल हो जाता है।
  • जल और राजनीति के बीच बढ़ते गठजोड़ ने इन विवादों को वोट बैंक की राजनीति में बदल दिया है।
    • इस राजनीतिकरण के कारण राज्यों द्वारा बढ़ती अवहेलना, विस्तारित मुकदमों और समाधान तंत्र प्रभावहीन हो गए है।

जल विवादों के समाधान संबंधी उपाय:

  • अंतर्राज्यीय जल विवादों को अनुच्छेद 263 के तहत राष्ट्रपति द्वारा निर्मित अंतर्राज्यीय परिषद के तहत लाना, साथ ही आम सहमति आधारित निर्णय लेने की आवश्यकता है।
  • राज्यों को प्रत्येक क्षेत्र में जल उपयोग दक्षता और जल संचयन एवं जल पुनर्भरण हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये ताकि नदी के जल तथा स्वस्थ जल स्रोत की मांग को कम किया जा सके।
  • संघीय, नदी बेसिन, राज्य और ज़िला स्तरों पर वैज्ञानिक आधार पर भूजल एवं सतही जल का प्रबंधन करने तथा जल प्रबंधन व संरक्षण हेतु तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये एकल एजेंसी की आवश्यकता है।
  • अधिकरण फास्ट ट्रैक एवं तकनीकी रूप से युक्त होना चाहिये, साथ ही समयबद्ध तरीके से निर्णय लागू करने योग्य तंत्र भी होना चाहिये।
  • उचित निर्णय लेने हेतु जल डेटा का एक केंद्रीय भंडार आवश्यक है। केंद्र सरकार के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वह अंतर्राज्यीय जल विवादों को सुलझाने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए।
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