भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

,भारत ने संयुक्त अरब अमीरात से खरीदे गए कच्चे तेल के लिये पहली बार रुपए में भुगतान किया है, जिससे भारतीय मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

  • जुलाई 2023 में, संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक समझौते ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (ADNOC) से दस लाख बैरल कच्चे तेल के लिये इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) को रुपए में भुगतान की सुविधा प्रदान की। इसी तरह, कुछ रूसी तेल आयात का निपटान रुपए में किया गया।
  • भारत, तेल आयात (85% से अधिक) पर बहुत अधिक निर्भर है, विशेष रूप से इसने यूक्रेन संघर्ष के बाद रूसी तेल विवाद के बीच, अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन किये बिना आपूर्तिकर्त्ताओं में विविधता लाते हुए सबसे अधिक लागत प्रभावी तेल की सोर्सिंग पर केंद्रित रणनीति अपनाया है।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?

  • परिचय:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सीमा पार विनिमय में स्थानीय मुद्रा का उपयोग बढ़ाना शामिल है।
    • इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना तथा फिर अन्य चालू खाता विनिमय के बाद पूंजी खाता विनिमय में इसका उपयोग करना शामिल है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • 1950 के दशक में, भारतीय रुपए का व्यापक रूप से संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर में वैधानिक निविदा के रूप में उपयोग किया जाता था।
    • हालाँकि, वर्ष 1966 तक भारत की मुद्रा के अवमूल्यन के कारण भारतीय रुपए पर निर्भरता कम करने के लिये इन देशों में संप्रभु मुद्राओं की शुरुआत हुई।
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ:
    • मुद्रा मूल्य की सराहना: इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए की मांग में सुधार होगा।
      • इससे भारत के साथ काम करने वाले व्यावसायों और व्यक्तियों के लिये सुविधा बढ़ सकती है तथा विनिमय लागत कम हो सकती है।
    • विनिमय दर की अस्थिरता में कमी: जब किसी मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण होता है, तो उसकी विनिमय दर स्थिर हो जाती है।
      • वैश्विक बाज़ारों में मुद्रा की बढ़ती मांग अस्थिरता को कम करने में सहायता प्रदान कर सकती है, जिससे इसे अंतर्राष्ट्रीय विनिमय के लिये अधिक पूर्वानुमानित और विश्वसनीयता निर्मित की जा सकता है।
    • भू-राजनीतिक लाभ: रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
      • यह अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंधों को मज़बूत कर सकता है, द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सुविधाजनक बना सकता है, साथ ही राजनीतिक संबंधों को भी बढ़ावा दे सकता है।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती: निपटान मुद्राओं में विविधता लाकर, विदेशी मुद्रा के दबाव के विरुद्ध भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया जा सकता है, साथ ही डॉलर की मांग कम की जा सकती है।
  • चुनौतियाँ:
    • ट्रिफिन विरोधाभास: ट्रिफिन विरोधाभास भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने और रुपए की वैश्विक मांग को पूरा करने के बीच संघर्ष के रूप में प्रकट हो सकती है। इन परस्पर विरोधी मांगों को संतुलित करना देश की आर्थिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना रुपए को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा निर्माण की प्रक्रिया में एक चुनौती प्रस्तुत करता है।
      • यह किसी देश की घरेलू मौद्रिक नीति लक्ष्यों और अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित मुद्रा जारीकर्त्ता के रूप में इसकी भूमिका के बीच संघर्ष का वर्णन करता है।
    • विनिमय दर में अस्थिरता: 
      • मुद्रा को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के लिये खोलने से इसकी विनिमय दर में अस्थिरता बढ़ सकती है, विशेषकर प्रारंभिक चरणों में। उतार-चढ़ाव व्यापार एवं निवेश पर असर डाल सकता है, जिससे आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
    • आयात लागत पर प्रभाव: यदि रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से वैश्विक बाज़ारों में मुद्रा की मांग बढ़ती है, तो इससे अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपया मज़बूत हो सकता है। एक मज़बूत रुपया संभावित रूप से चीन और रूस जैसे देशों से आयात की लागत को कम कर सकता है, जिससे व्यापार संतुलन प्रभावित हो सकता है।
    • सीमित अंतर्राष्ट्रीय मांग: वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की दैनिक औसत हिस्सेदारी केवल 1.6% के आसपास है, जबकि वैश्विक वस्तु व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 2% है।
    • परिवर्तनीयता संबंधी चिंता: INR पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है, जिसका अर्थ है कि पूंजी विनिमय जैसे कुछ उद्देश्यों के लिये इसकी परिवर्तनीयता पर प्रतिबंध हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त में इसके व्यापक उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
    • विमुद्रीकरण प्रभाव: वर्ष 2016 की विमुद्रीकरण प्रक्रिया और हाल ही में 2,000 रुपए के नोट को हटाने से रुपए की विश्वसनीयता प्रभावित हुआ है, विशेषरूप भूटान तथा नेपाल जैसे आस-पास के देशों में।
    • व्यापार निपटान में चुनौतियाँ: हालाँकि लगभग 18 देशों के साथ रुपए में व्यापार करने का प्रयास किया गया है किंतु विनिमय सीमित ही रहा है।
      • इसके अतिरिक्त रुपए में व्यापार करने के लिये रूस के साथ वार्ता प्रगति धीमी रही है तथा मुद्रा मूल्यह्रास संबंधी चिंताओं एवं व्यापारियों के बीच अपर्याप्त जागरूकता के कारण इसमें बाधा आ रही है।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम:
    • GIFT सिटी में विकास
    • एशियाई समाशोधन संघ (ACU):
      • एशियाई समाशोधन संघ (Asian Clearing Union- ACU) एक क्षेत्रीय भुगतान व्यवस्था है। यह बहुपक्षीय आधार पर अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार लेनदेन के निपटान की सुविधा प्रदान करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1974 में एशिया के दस केंद्रीय बैंकों द्वारा की गई थी। ACU में वर्तमान में 13 सदस्य देश हैं तथा भारत ACU का सदस्य है।
    • मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपए के व्यापार निपटान के लिये तंत्र स्थापित किया।
      • इन देशों के बैंकों को भारतीय रुपए में भुगतान के निपटान के लिये विशेष रुपी वोस्ट्रो खाते (Special Vostro Rupee Accounts- SVRA) खोलने की अनुमति दी गई है।
    • जुलाई 2022 में RBI ने “भारतीय रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान” पर एक परिपत्र जारी किया।
    • RBI ने रुपए में बाह्य वाणिज्यिक उधार (विशेष रूप से मसाला बॉण्ड) को सक्षम किया।

वे कौन-से सुधार हैं जिन्हें भारत रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिये अपना सकता है?

  • रुपए को अधिक स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय बनाना:
    • वर्ष 2060 तक पूर्ण परिवर्तनीयता के लक्ष्य के साथ वित्तीय निवेश को भारत तथा विदेशों के बीच स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करना।
    • इससे विदेशी निवेशकों को रुपए के सरलता से क्रय तथा विक्रय की सुविधा मिलेगी, जिससे इसकी तरलता बढ़ेगी एवं यह अधिक आकर्षक बन जाएगा।
  • तारापोर समिति द्वारा सुझाए गए सुधार:
    • सुदृढ़ राजकोषीय प्रबंधन: इसके तहत राजकोषीय घाटे को 3.5% से कम करना, सकल मुद्रास्फीति दर को 3%-5% तक कम करना एवं सकल बैंकिंग गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को 5% से कम करना का सुझाव दिया गया था।
    • व्यक्तिगत प्रेषण के लिये उदारीकृत योजना: विदेशी मुद्रा का आदान-प्रदान वाले व्यक्तियों के लिये आसान लेनदेन की सुविधा हेतु व्यक्तिगत प्रेषण के लिये एक अधिक उदार योजना की शुरुआत।
    • कर्मचारी स्टॉक विकल्पों के लिये प्रतिबंधात्मक खंडों को हटाना: कर्मचारियों के स्टॉक विकल्पों को रियायती दरों पर जारी करने से संबंधित प्रतिबंधात्मक खंडों को हटाना, स्टॉक विकल्पों से संबंधित लेनदेन एवं संचालन को सरल बनाने की अनुमति देना।
    • विभाग का नाम परिवर्तन एवं पुनर्विन्यास: समिति ने नाम बदलने और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 के कार्यान्वयन को संभालने के लिये ज़िम्मेदार विभाग को विनिमय नियंत्रण विभाग से विदेशी मुद्रा विभाग में पुनर्निर्देशित करने का सुझाव दिया, जिसमें एक दुर्बल तथा अधिक रणनीतिक कार्यबल दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया।
  • गहन बॉन्ड बाज़ार का अनुसरण (Pursue a Deeper Bond Market): विदेशी निवेशकों और भारतीय व्यापार भागीदारों को रुपए में अधिक निवेश विकल्प उपलब्ध कराने से इसका अंतर्राष्ट्रीय उपयोग संभव हो सकेगा।
  • निर्यातकों/आयातकों को रुपए में लेनदेन के लिये प्रोत्साहित (Encourage Exporters/Importers for Transactions in Rupee): रुपए के आयात/निर्यात लेनदेन के लिये व्यापार निपटान औपचारिकताओं को अनुकूलित करने से काफी मदद मिलेगी।
  • अतिरिक्त मुद्रा विनिमय समझौतों पर हस्ताक्षर:
    • श्रीलंका की तरह, भारत को डॉलर जैसी आरक्षित मुद्रा का सहारा लिये बिना, रुपए में व्यापार और निवेश लेनदेन निपटाने की अनुमति देना।
      • भारत के पास वर्तमान में किसी भी भुगतान संतुलन के मुद्दे के मामले में समर्थन की बैकस्टॉप लाइन के रूप में जापान के साथ 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक की द्विपक्षीय स्वैप व्यवस्था (BSA) है।
  • मुद्रा प्रबंधन स्थिरता सुनिश्चित करना और विनिमय दर व्यवस्था में सुधार करना:
    • अवमूल्यन या विमुद्रीकरण जैसे अचानक या बड़े बदलावों से बचना जो आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकते हैं।
    • नोटों और सिक्कों का लगातार तथा पूर्वानुमानित जारी/पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करना।

राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति दर और बैंकिंग गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करने सहित तारापोर समिति की सिफारिशों (1997 और 2006 में) को रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में प्राथमिक कदम के रूप में अपनाया जाना चाहिये। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में रुपए को आधिकारिक मुद्रा बनाने की वकालत करने से इसकी रूपरेखा (profile) और स्वीकार्यता बढ़ेगी।

 

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