कृष्णा जल विवाद और अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम (ISRWD)-1956 क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश (AP) राज्यों के बीच निर्णय हेतु अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम (ISRWD)-1956 के तहत मौजूदा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण- II (KWDT-II) के लिये एक अन्य संदर्भ की शर्तों (ToR) के मुद्दे को मंज़ूरी दे दी है। ।
कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II (KWDT-II):
- कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II का गठन केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2004 में ISRWD अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत कृष्णा नदी से संबंधित जल-वितरण/नियंत्रण विवादों को निपटाने और सुलझाने के लिये किया गया था।
- इसका गठन महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच कृष्णा नदी के जल-वितरण/नियंत्रण विवाद का समाधान करने के लिये किया गया था।
- KWDT-II ने जल की उपलब्धता, राज्यों को इसकी आपूर्ति और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर कृष्णा नदी के जल की अनुशंसा एवं आवंटन सुनिश्चित किया। इसने प्रत्येक राज्य को एक निश्चित मात्रा में जल उपलब्ध कराया, इसमें उस प्रत्येक हिस्से को रेखांकित किया गया जिसे वे प्राप्त करने के हकदार थे।
कृष्णा जल विवाद:
- परिचय:
- कृष्णा जल विवाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच कृष्णा नदी के जल के न्यायसंगत वितरण पर केंद्रित है।
- कृष्णा नदी इन राज्यों से होकर बहती है और विवाद उत्पन्न होने का प्रमुख कारण राज्यों की अलग-अलग ज़रूरतें, ऐतिहासिक मतभेद और राजनीतिक व प्रशासनिक परिदृश्य में बदलाव हैं।
- पृष्ठभूमि:
- विवाद का केंद्र: आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर स्थित श्रीशैलम बाँध विवाद का प्रमुख केंद्र है। आंध्र प्रदेश ने विद्युत उत्पादन के लिये श्रीशैलम बाँध के जल के तेलंगाना द्वारा उपयोग का विरोध किया।
- विवाद की पृष्ठभूमि: इस विवाद का संबंध वर्ष 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन से है और इसका समाधान वर्ष 1973 में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (KWDT) के माध्यम से किया गया था। कृष्णा नदी के जल को पुनः आवंटित करने के लिये वर्ष 2004 में दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।
- KWDT आवंटन (वर्ष 2010): दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 2010 में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कृष्णा नदी के जल का आवंटन इस पर 65% निर्भरता और अधिशेष प्रवाह के लिये निम्नानुसार किया गया:
- महाराष्ट्र के लिये 81 हज़ार मिलियन घन (TMC) फीट, कर्नाटक के लिये 177 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 190 TMC।
- आंध्र प्रदेश की चुनौतियाँ: वर्ष 2011 में आंध्र प्रदेश ने एक विशेष अनुमति याचिका सहित कानूनी कार्यवाही के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष KWDT द्वारा किये गये आवंटन को चुनौती दी।
- वर्ष 2013 में KWDT ने एक अन्य रिपोर्ट जारी की, जिसे वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश द्वारा फिर से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
- तेलंगाना के गठन के बाद वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश ने चार राज्यों के बीच कृष्णा जल आवंटन की समीक्षा की मांग की।
- महाराष्ट्र और कर्नाटक ने तर्क प्रस्तुत किया कि तेलंगाना का निर्माण आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद हुआ था। इसलिये जल का आवंटन आंध्र प्रदेश के हिस्से में से होना चाहिये, जिसे कोर्ट ने मंज़ूरी दे दी।
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करता है, जिससे संसद को इस उद्देश्य के लिये कानून बनाने की अनुमति मिलती है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 केंद्र सरकार को राज्यों के बीच जल विवादों को सुलझाने के लिये तदर्थ न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
- वर्तमान स्थिति:
- KWDT संदर्भ की नई शर्तें प्रदान करेगा जिसके तहत न्यायाधिकरण भविष्य में कृष्णा नदी के जल को दोनों राज्यों, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच विभाजित करेगा।
- यह दोनों राज्यों में विकासात्मक या भविष्य के उद्देश्यों हेतु प्रस्तावित परियोजनाओं के लिये परियोजना-वार जल आवंटित करेगा।
कृष्णा नदी:
- स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट होता है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
- ड्रेनेज: यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले चार राज्यों महाराष्ट्र (303 कि.मी.), उत्तरी कर्नाटक (480 कि.मी.) और शेष 1300 कि.मी. तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
- सहायक नदियाँ:
- दाईं ओर की सहायक नदियाँ: घटप्रभा, मल्लप्रभा और तुंगभद्रा।
- बाईं ओर की सहायक नदियाँ: भीमा, मुसी और मुन्नेरु।
- जलविद्युत विकास:
- कृष्णा नदी बेसिन में प्रमुख जल विद्युत स्टेशन कोयना, तुंगभद्रा, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर, अलमाटी, नारायणपुर और भद्रा हैं।
- पौराणिक महत्त्व:
- कृष्णा प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व की ओर बहने वाली एक विशालकाय नदी है । इसे पुराणों में कृष्णवेना अथवा योगिनीतंत्र (एक तांत्रिक ग्रन्थ) में कृष्णवेणी के नाम से जाना जाता है।
- इसे जातकों और खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में कान्हापेन्ना के नाम से भी जाना जाता है।
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