डीप ओशन मिशन के प्रमुख स्तंभ से क्या तात्पर्य है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत समुद्र की गहराई का पता लगाने और उसका दोहन करने के लिये एक ऐतिहासिक डीप ओशन मिशन की तैयारी कर रहा है, यह एक ऐसी सीमा है जिसके बारे में काफी कम जानकारी प्राप्त है तथा इसमें वैज्ञानिक व आर्थिक लाभ की अपार संभावनाएँ हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और जापान जैसे देश पहले ही गहरे समुद्री मिशन में सफलता हासिल कर चुके हैं।
डीप ओशन मिशन:
- परिचय:
- डीप ओशन मिशन (DOM) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य गहरे समुद्र में खोज के लिये प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास करना है।
- इसके अलावा DOM प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PMSTIAC) के तहत नौ मिशनों में से एक है।
- डीप ओशन मिशन (DOM) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य गहरे समुद्र में खोज के लिये प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास करना है।
- मिशन के प्रमुख स्तंभ:
- गहरे समुद्र में खनन और क्रूड सबमर्सिबल के लिये तकनीकी प्रगति।
- महासागरीय जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाएँ।
- गहरे समुद्र में जैवविविधता अन्वेषण और संरक्षण के लिये नवाचार।
- गहरे महासागर के खनिजों का सर्वेक्षण और अन्वेषण।
- महासागर से ऊर्जा और मीठे जल का संचयन।
- महासागर जीव विज्ञान के लिये एक उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना।
- DOM उद्देश्यों में प्रमुख प्रगति:
- समुद्रयान और Matsya6000: DOM के एक भाग के रूप में भारत के प्रमुख डीप ओशन मिशन, समुद्रयान को वर्ष 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्री द्वारा शुरू किया गया था।
- समुद्रयान के साथ भारत मध्य हिंद महासागर में समुद्र तल में 6,000 मीटर की गहराई तक पहुँचने के लिये एक अभूतपूर्व चालक दल अभियान शुरू कर रहा है।
- यह ऐतिहासिक यात्रा Matsya6000 द्वारा पूरी की जाएगी, जो डीप ओशन में चलने वाली एक पनडुब्बी है जिसे तीन सदस्यों के दल को समायोजित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- इसका निर्माण टाइटेनियम मिश्र धातु से किया गया है, गोले को 6,000 बार तक के दबाव को झेलने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- समुद्रयान और Matsya6000: DOM के एक भाग के रूप में भारत के प्रमुख डीप ओशन मिशन, समुद्रयान को वर्ष 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्री द्वारा शुरू किया गया था।
नोट: पॉलीमेटेलिक नोड्यूल और सल्फाइड जैसे मूल्यवान संसाधनों की उपस्थिति के कारण 6,000 मीटर की गहराई को लक्षित करने का निर्णय रणनीतिक महत्त्व रखता है। आवश्यक धातुओं से युक्त ये संसाधन 3,000 से 5,500 मीटर की गहराई के बीच पाए जाते हैं।
- वराह- भारत का डीप-ओशन माइनिंग सिस्टम: MoES के तहत एक स्वायत्त संस्थान, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी ने मध्य हिंद महासागर में 5,270 मीटर की गहराई पर जल के नीचे खनन प्रणाली ‘वराह’ का उपयोग करते हुए गहरे समुद्र की गति का परीक्षण किया है।
- इन परीक्षणों ने गहरे समुद्र में संसाधन अन्वेषण में एक महत्त्वपूर्ण स्थिति का संकेत दिया।
डीप ओशन अन्वेषण में प्रमुख चुनौतियाँ:
- समुद्री दबाव की चुनौतियाँ: डीप ओशन में उच्च दबाव की स्थितियाँ एक विकट चुनौती पेश करती है, जो लगभग 10,000 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर वज़न उठाने के बराबर वस्तुओं पर अत्यधिक दबाव डालती हैं।
- उपकरण डिज़ाइन एवं कार्यक्षमता: कठोर परिस्थितियों के लिये मज़बूत सामग्रियों से निर्मित सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किये गए उपकरणों की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉनिक्स तथा उपकरण अंतरिक्ष अथवा निर्वात स्थितियों में अधिक कुशलता से कार्य करते हैं, जबकि खराब डिज़ाइन वाली वस्तुएँ जल के भीतर ढह जाती हैं अथवा नष्ट हो जाती हैं।
- लैंडिंग संबंधी चुनौतियाँ: समुद्र तल की नरम एवं दलदलीय सतह के परिणामस्वरूप भारी वाहनों के लिये लैंडिंग अथवा युद्धाभ्यास करना असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- सामग्री निष्कर्षण एवं बिजली की मांग: समुद्र तल से सामग्री निकालने के लिये उन्हें सतह पर पंप करने के लिये भारी मात्रा में शक्ति एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- विद्युत चुंबकीय तरंग प्रसार के अभाव के कारण दूर से संचालित किये जाने वाले वाहन गहरे महासागरों में अप्रभावी होते हैं।
- दूरबीनों द्वारा अंतरिक्ष अवलोकनों की सुविधा के विपरीत गहरे समुद्र के अन्वेषण में दृश्यता सीमित होती है, क्योंकि प्राकृतिक प्रकाश समुद्र जल के भीतर केवल कुछ मीटर तक ही प्रवेश कर पाता है।
- अन्य जटिल चुनौतियाँ: तापमान भिन्नता, संक्षारण, लवणता आदि विभिन्न कारक गहरे समुद्र में अन्वेषण को और जटिल बनाते हैं, जिसके लिये व्यापक स्तर पर समाधान की आवश्यकता होती है।
नोट: संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2021-2030 को ‘समुद्र विज्ञान के दशक’ के रूप में घोषित किया गया है। |
आगे की राह
- जैविक रूप से प्रेरित डिज़ाइन: नवीन इंजीनियरिंग समाधानों के लिये समुद्री जीवों जैसी प्रकृति से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
- बायोमिमिक्री से उन संरचनाओं एवं सामग्रियों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है जो प्राकृतिक रूप से गहरे समुद्र की स्थितियों के लिये अनुकूल हैं, जो लचीलापन बढ़ाते हैं एवं अनुकूलनशीलता प्रदान करते हैं।
- ऊर्जा नवाचार: लंबी अवधि के मिशनों का समर्थन करने के लिये स्थायी ऊर्जा स्रोतों का विकास किया जाना चाहिये।
- इसमें समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण, बिजली के लिये समुद्र में तापमान प्रवणता का उपयोग अथवा ज्वारीय व समुद्री लहरों की ऊर्जा क्षमता की खोज जैसी ऊर्जा संचयन प्रौद्योगिकियों में प्रगति शामिल हो सकती है।
- मल्टी-सेंसर एकीकरण: समुद्र जल की सीमित दृश्यता के समाधान के लिये विविध सेंसर प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- इसमें गहन समुद्र के वातावरण को व्यापक बनाने के लिये सोनार, लिडार और अन्य इमेजिंग तकनीकों का संयोजन शामिल हो सकता है, जिससे बेहतर नेविगेशन एवं अन्वेषण में सहायता मिल सके।
- पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार: गहन समुद्र पारिस्थितिकी तंत्र पर न्यूनतम प्रभाव के साथ अन्वेषण पहल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- पर्यावरण संरक्षण के साथ वैज्ञानिक प्रगति को संतुलित करते हुए ज़िम्मेदार और नैतिक प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु गहन समुद्र में अन्वेषण को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियम तथा नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
- यह भी पढ़े…………….
- भारत द्वारा एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद का क्या महत्त्व है?
- विज़न इंडिया@2047:जो भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान दे सकते हैं?
- भोजपुर में दवा व्यवसायी की हत्या, दिनदहाड़े अपराधियों ने गला रेतकर मार डाला; विरोध में बवाल