MSP क्या है? कृषि कानून वापस होने के बाद भी क्यों गर्माया हुआ है यह मुद्दा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार ने पिछले साल लागू हुए तीन नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया। केंद्र सरकार सितंबर 2020 में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद कानून बन गए लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आए। उन्होंने उसी समय से इसका विरोध शुरू कर दिया। 26 नवंबर 2020 से काफी संख्‍या में किसान दिल्ली-हरियाणा बार्डर और गाजीपुर बार्डर पर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्‍या पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर के किसान थे।

केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से किसान खुश तो हैं, लेकिन अभी आंदोलन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

आखिर क्या है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी फसल का न्यूनतम मूल्य होता है जिस पर सरकार, किसानों से खरीदती है। यह किसानों की उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सरकार, किसान से खरीदी जाने वाली फसल पर उसे एमएसपी से नीचे भुगतान नहीं करेगी।

कौन तय करता है एमएसपी?

न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार की ओर से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP)की सिफारिश पर साल में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है। गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है।

क्यों तय किया जाता है एमएसपी?

किसी फसल की एमएसपी इसलिए तय की जाती है ताकि किसानों को किसी भी हालत में उनकी फसल का एक उच‍ित न्यूनतम मूल्य मिलता रहे।

किन फसलों का तय होता है एमएसपी?

सरकार फिलहाल 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है। इनमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और 4 व्‍यावसायिक फसलों को शामिल किया गया है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है।

पीएम मोदी ने एक समिति बनाने की घोषणा की

पीएम मोदी ने कहा है कि शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों के अनुसार खेती के तौर-तरीकों को बदलने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति गठित की जाएगी। इस समिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, किसानों के प्रतिनिधियों के साथ साथ कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री भी शामिल होंगे।

देश में कब शुरू हुआ एमएसपी का प्रावधान?

वर्ष 1965 में हरित क्रांत‍ि के समय एमएसपी को घोषणा हुई थी। साल 1966-67 में गेहूं की खरीद के समय इसकी शुरुआत हुई। आयोग ने 2018-19 में खरीफ सीजन के दौरान मूल्य नीति रिपोर्ट में कानून बनाने का सुझाव दिया था।

जानें क्‍यों एमएसपी की कानूनी गारंटी देने में क्‍या है अड़चन?

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कई कारणों से कानूनी गारंटी नहीं दी जा सकती। उ

1- एमएसपी उस समय की उपज है, जब देश खाद्यान्न संकट से गुजर रहा था और सरकार किसानों से अनाज खरीद कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली हेतु उसका भंडारण करती थी। आज अनाज की बहुलता है। यदि एमएसपी को कानूनी जामा पहनाया गया तो सरकार के लिए उसे खरीदना और भंडारण करना विकराल समस्या बन जाएगा।

2- सरकार उसका निर्यात भी नहीं कर पाएगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पाद सस्ते हो सकते हैं। यह संभव नहीं कि सरकार महंगा खरीद कर सस्ते में निर्यात करे।

3- यदि एमएसपी पर खरीद की कानूनी बाध्यता हो गई तो पैसा तो जनता की जेब से ही जाएगा और जो लोग एमएसपी को कानूनी बनाने का समर्थन कर रहे हैं, वे ही कल रोएंगे।

4- बड़े किसान छोटे किसानों से सस्ते दामों पर अनाज खरीद लेंगे और फिर सरकार को बढ़े एमएसपी पर बेचेंगे, जिससे मुट्ठीभर किसान पूंजीपति बन जाएंगे, जो टैक्स भी नहीं देंगे, क्योंकि कृषि आय पर टैक्स नहीं है। आज भी बड़े किसान अपनी अन्य आय को कृषि आय के रूप में दिखा कर टैक्स बचा रहे हैं और बोझ नौकरीपेशा या मध्य वर्ग पर पड़ रहा है।

5- नए कानून किसानों को यह विकल्प देते थे कि वे अपना उत्पाद एमएसपी पर मंडी शुल्क देकर बेचें या बिना शुल्क दिए मंडी के बाहर देश में कहीं भी। यह व्यवस्था छोटे किसानों को मंडी शुल्क और मंडियों पर काबिज दबंग नेताओं/बिचौलियों से मुक्ति दिला सकती थी।

5- शांताकुमार समिति के अनुसार छह फीसद किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है। यदि 94 प्रतिशत किसान एमएसपी से बाहर हैं तो क्या किसान नेता केवल छह फीसद किसानों के हितों को लेकर आंदोलनरत हैं?

 

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