तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दलाई लामा ने अमेरिका में जन्मे एक मंगोलियाई मूल के लड़के को तिब्बती बौद्ध धर्म की जनांग परंपरा और मंगोलिया के बौद्ध आध्यात्मिक प्रमुख, 10वें खलखा जेटसन धम्पा के रूप में नामित किया है।
- इस घोषणा से दलाई लामा के स्वयं के पुनर्जन्म के बारे में व्यापक बहस छिड़ गई है, इस बहस का आधार तिब्बती बौद्ध धर्म के नियंत्रण वाले चीन और तिब्बतियों के बीच सभ्यताओं का संघर्ष है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म:
- तिब्बत में बौद्ध धर्म के संप्रदाय:
- 9वीं शताब्दी ईस्वी तक बौद्ध धर्म तिब्बत में प्रमुख धर्म बन चुका था। तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख संप्रदाय हैं: न्यिंग्मा, काग्यू, शाक्य और गेलुग।
- जनांग संप्रदाय उन छोटे संप्रदायों में से एक है जो शाक्य संप्रदाय की शाखा के रूप में विकसित हुआ। दलाई लामा का संबंध गेलुग संप्रदाय से है।
- पुनर्जन्म का इतिहास:
- जन्म, मृत्यु एवं पुनर्जन्म का चक्र बौद्ध धर्म की प्रमुख मान्यताओं में से एक है, हालाँकि प्रारंभिक बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास के आधार पर स्वयं को व्यवस्थित नहीं करता था।
- हालाँकि तिब्बत की पदानुक्रमित प्रणाली 13वीं शताब्दी में उभरी और लामाओं के पुनर्जन्म को औपचारिक रूप से मान्यता देने का पहला उदाहरण तात्कालिक समय में देखा जा सकता हैं।
- गेलुग संप्रदाय ने एक मज़बूत पदानुक्रम विकसित किया और पुनर्जन्म के माध्यम से उत्तराधिकार की परंपरा स्थापित की, जिसमें संप्रदाय के 5वें मुख्य लामा को दलाई लामा की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म:
- तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार एक मृत लामा की आत्मा एक बच्चे में पुनर्जन्म लेती है, जो क्रमिक पुनर्जन्म के माध्यम से उत्तराधिकार की एक निरंतर शृंखला को सुरक्षित करती है।
- ‘तुल्कस’ (मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म) को पहचानने के लिये कई प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, जिसमें पूर्ववर्ती अपने पुनर्जन्म के बारे में मार्गदर्शन छोड़ना, संभावित बच्चे को कई ‘परीक्षणों’ से गुजरना और अंतिम घोषणा करने से पूर्व दिव्यता की शक्ति के साथ अन्य ओरेकल (भविष्यवक्ता) और लामाओं से परामर्श करना शामिल है।
- विवादों को दूर करने के लिये भी प्रक्रियाएँ हैं, जैसे कि एक पवित्र मूर्ति के समक्ष आटा-बॉल विधि (Dough-Ball Method) का उपयोग करके अंतिम निर्णय लेना।
दलाई लामा के साथ भारत का जुड़ाव:
- भारत एवं दलाई लामा के बीच वर्ष 1959 से संबंध रहे हैं, जब दलाई लामा तिब्बत से भागकर आए और भारत में शरण ली थी।
- भारत तब से दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती सरकार का घर रहा है, उन्हें राजनीतिक शरण प्रदान करता रहा है तथा चीन से स्वायत्तता के लिये तिब्बती सरकार का समर्थन करता रहा है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत ने तिब्बती मुद्दे पर एक कूटनीतिक रुख अपनाया है। भारत ने दलाई लामा के पुनर्जन्म पर चीन के रुख का समर्थन करने से भी इनकार कर दिया है और ज़ोर देकर कहा है कि यह एक धार्मिक मामला है जिसका निर्णय तिब्बती लोगों को स्वयं करना चाहिये।
- हाल के वर्षों में भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण रहे हैं तथा भारत में दलाई लामा की उपस्थिति चीन के लिये एक विवादास्पद मुद्दा बन गई है।
दलाई लामा:
- दलाई लामा तिब्बती लोगों द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग या “येलो हैट” संप्रदाय के अग्रणी आध्यात्मिक नेता के लिये दी गई उपाधि है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के शास्त्रीय संप्रदायों में से सबसे नया है।
- 14वें और वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं।
- माना जाता है कि दलाई लामा ‘अवलोकितेश्वर’ या चेनरेज़िग, करुणा के बोधिसत्त्व और तिब्बत के संरक्षक संत हैं।
- बोधिसत्त्व सिद्ध प्राणी हैं जिन्होंने मानवता की सहायता हेतु इस दुनिया में लौटने का संकल्प लिया है और सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्त्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित हैं।
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