रंगनाथ रिपोर्ट और धर्मांतरित दलितों के लिये आरक्षण क्या है?

रंगनाथ रिपोर्ट और धर्मांतरित दलितों के लिये आरक्षण क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सर्वोच्च न्यायालय ने धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की वर्ष 2007 की एक रिपोर्ट का पुनः अवलोकन किया, जिसमें ईसाई और इस्लाम में परिवर्तित दलितों के लिये अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण की सिफारिश की गई थी।

  • केंद्र ने इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया था, लेकिन शीर्ष न्यायालय का मानना है कि इसमें मौजूद जानकारियाँ महत्त्वपूर्ण हैं जिनका उपयोग यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि वर्ष 1950 के संविधान आदेश के अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग से धर्मांतरित दलितों को बाहर करना असंवैधानिक है अथवा नहीं।

नोट: 

  • मिश्रा रिपोर्ट को खारिज़ करते हुए सरकार ने हाल ही में एक पूर्व न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता में नया आयोग गठित किया था। सरकार ने “ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जातियों से संबंध रखने वाले परंतु हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले” लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के सवाल पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिये दो वर्ष का समय दिया।
  • इस रिपोर्ट को खारिज़ करने के पीछे केंद्र का तर्क है कि “ऐसे दलित जो जाति के कारण होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये ईसाई अथवा इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं, वे उन लोगों द्वारा प्राप्त आरक्षण लाभों का दावा नहीं कर सकते हैं जिन्होंने हिंदू धार्मिक व्यवस्था में बने रहने का विकल्प चुना है।”

रंगनाथ रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की वर्ष 2007 की रिपोर्ट में ईसाई तथा इस्लाम धर्म में धर्मांतरित होने वाले दलितों हेतु अनुसूचित जाति आरक्षण प्रदान किये जाने की सिफारिश की गई थी।
  • दलित ईसाइयों और मुसलमानों को न केवल अपने धर्म के उच्च जाति के सदस्यों से बल्कि व्यापक हिंदू-वर्चस्व वाले समाज से भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 
  • ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को SC श्रेणी से बाहर रखना समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है तथा इन धर्मों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जो जातिगत भेदभाव को अस्वीकार करते हैं। 
  • ईसाई और इस्लाम धर्म में धर्मांतरित होने वाले दलितों को SC का दर्जा देने से इनकार करने के कारण वे सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक रूप से पीछे रह गए हैं तथा उन्हें शिक्षा एवं रोज़गार के अवसरों में आरक्षण तक पहुँच से वंचित किया गया है (जैसा कि अनुच्छेद 16 के तहत प्रदान किया गया है)।

वर्ष 1950 के संविधान आदेश में कौन शामिल हैं?

  • अधिनियम पारित होने पर 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश शुरू में केवल हिंदुओं को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने के लिये प्रदान किया गया था, ताकि अस्पृश्यता के कारण उत्पन्न होने वाली सामाजिक अक्षमता को दूर किया जा सके।
  • इस आदेश में वर्ष 1956 में संशोधन किया गया था ताकि सिख धर्म अपनाने वाले दलितों को इसमें शामिल किया जा सके तथा वर्ष 1990 में एक बार फिर बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों को इसमें शामिल करने हेतु संशोधन किया गया।
    • दोनों संशोधनों को वर्ष 1955 में काका कालेलकर आयोग और वर्ष 1983 में क्रमशः अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों पर उच्चाधिकार प्राप्त पैनल (HPP) की रिपोर्टों से सहायता मिली थी।
  • 1950 का आदेश (1956 और 1990 में संशोधन के बाद) यह अनिवार्य करता है कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध नहीं है, उसे अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

दलित ईसाइयों और मुसलमानों को बाहर रखने का कारण: 

  • अनुसूचित जाति की जनसंख्या में वृद्धि से बचने हेतु: भारत के महापंजीयक (RGI) कार्यालय ने सरकार को आगाह किया था कि अनुसूचित जाति का दर्जा अस्पृश्यता की प्रथा (जो कि हिंदू और सिख समुदायों में प्रचलित थी) से उत्पन्न होने वाली सामाजिक अक्षमताओं से पीड़ित समुदायों के लिये है।
    • यह भी उल्लेख किया गया कि इस तरह के कदम से देश भर में अनुसूचित जाति की आबादी में काफी वृद्धि होगी।
  • विविध नृजातीय समूह जिन्होंने धर्मांतरण किया: RGI के अनुसार, वर्ष 2001 में इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलित किसी एक नृजातीय समूह से नहीं बल्कि अलग-अलग जातिगत समूहों से संबंधित हैं।
    • इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस सूची में शामिल किये जाने हेतु एकल जातीय समूह से संबंधित होने की आवश्यकता होती है।
  • अस्पृश्यता अन्य धर्मों में प्रचलित नहीं: RGI ने आगे कहा है कि चूँकि “अस्पृश्यता” की प्रथा हिंदू धर्म और इसकी शाखाओं की एक विशेषता थी ऐसे में दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को SCs के रूप में सूचीबद्ध करने किये जाने की अनुमति को “अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गलत समझा जा सकता है” और यह माना जा सकता है कि भारत ईसाइयों तथा मुसलमानों पर “अपनी जाति व्यवस्था को थोपने” की कोशिश कर रहा है।
    • वर्ष 2001 के नोट में यह भी कहा गया है कि दलित मूल के ईसाई और मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन के माध्यम से अपनी जातिगत पहचान खो दी थी और उनके नए धार्मिक समुदाय में अस्पृश्यता की प्रथा प्रचलित नहीं है।

भारत का महापंजीयक:

  • भारत का महापंजीयक की स्थापना वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा की गई थी।
  • यह भारत की जनगणना और भारतीय भाषाई सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षणों के परिणामों की व्यवस्था, संचालन एवं विश्लेषण करता है।
  • महापंजीयक का पद सामान्यतः  एक सिविल सेवक के पास होता है जो संयुक्त सचिव का पद धारण करता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!