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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन क्या है? - श्रीनारद मीडिया

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन क्या है?

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

श्रीनगर में आवारा कुत्तों के हमलों की एक हालिया घटना ने स्ट्रीट डॉग्स के हमलों और खराब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बीच संबंध को उजागर किया है।

खराब अपशिष्ट प्रबंधन और स्ट्रीट डॉग्स द्वारा बढ़ते हमलों में संबंध:

  • भारतीय घरों ने औसतन 2019 में प्रति व्यक्ति 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न किया, जो भूखे-पीड़ित, खुले में घूमने वाले कुत्तों के लिये भोजन के स्रोत के रूप में काम करता है जिससे वे शहरों में घनी आबादी वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं।
    • यह भोजन अक्सर शहरी क्षेत्रों में भूख से पीड़ित आवारा कुत्तों के लिये भोजन का स्रोत बन जाता है, जो भोजन की तलाश में लैंडफिल या अपशिष्ट डंप जैसे कचरा डंपिंग साइटों के आसपास घूम रहे होते हैं।
  • जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है किंतु नगर निगम के कचरे और इसके कुप्रबंधन ने सीधे तौर पर कुत्तों के काटने, सुस्त पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों और अपर्याप्त बचाव केंद्रों के साथ-साथ खराब अपशिष्ट प्रबंधन में वृद्धि की, जिसके परिणामस्वरूप भारत में सड़क पर रहने वाले जानवरों का प्रसार हुआ और जिसके कारण हमले हुए।

भारत के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ क्या समस्या है?

  • परिदृश्य:
    • ठोस अपशिष्ट में ठोस या अर्द्ध-ठोस घरेलू अपशिष्ट जैसे सैनिटरी वेस्ट, कमर्शियल वेस्ट, इंस्टीट्यूशनल वेस्ट, खानपान और बाज़ार का अपशिष्ट और अन्य गैर-आवासीय वेस्ट, सड़क की सफाई, सतही नालियों से निकाली गई गाद, बागवानी वेस्ट, कृषि और डेयरी वेस्ट, औद्योगिक अपशिष्ट को छोड़कर उपचारित बायोमेडिकल अपशिष्ट, बायो-मेडिकल वेस्ट तथा ई-वेस्ट, बैटरी वेस्ट, रेडियो-एक्टिव वेस्ट आदि शामिल हैं।
    • भारत में विश्व की आबादी का लगभग 18% और वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट उत्पादन में 12% का योगदान है।
      • भारत प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पादन करता है। इनमें से लगभग 43 मिलियन टन (70%) एकत्र किया जाता है, जिसमें से लगभग 12 मिलियन टन को उपचारित किया जाता है तथा 31 मिलियन टन लैंडफिल साइट्स में फेंक दिया जाता है।
    • खपत के बदलते पैटर्न और तेज़ी से आर्थिक विकास के साथ यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 में शहरी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगा।
  • मुद्दा:
    • नियमों का खराब क्रियान्वयन:
      • वर्ष 2020 के एक शोध पत्र में कहा गया है कि अधिकांश मेट्रो शहरों में अपशिष्ट को संग्रह करने वाले डिब्बे या तो पुराने हैं या क्षतिग्रस्त हैं या ठोस अपशिष्ट को रखने के लिये अपर्याप्त हैं।
      • अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी स्थानीय निकाय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के तहत नियमों को लागू करने और बनाए रखने में संघर्ष कर रहे हैं, जैसे- घर-घर जाकर अलग-अलग प्रकार के अपशिष्ट का संग्रह करना।
      • नियमों के तहत कचरा संग्रह स्थल निर्धारित हैं, लेकिन नियमों के कार्यान्वयन और जागरूकता की कमी है।
      • इसके कारण इधर-उधर बिखरा अपशिष्ट देखा जाता है।
    • मलिन बस्तियों के साथ डंपिंग साइट्स की निकटता:
      • अधिकांश लैंडफिल और डंपिंग साइट शहरों की परिधि में, झुग्गी बस्तियों और बस्ती कॉलोनियों के बगल में स्थित हैं।
      • मुंबई में सबसे सस्ते आवास देवनार के पास पाए जा सकते हैं जो 256 झुग्गियों और 13 पुनर्वास कॉलोनियों के निकट स्थित हैं।
      • शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों में कुत्ते के काटने के मामले बेहिसाब आते रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021 में पुणे के शिवनेरी नगर झुग्गी में रहने वाले 300 लोगों ने इलाके में आवारा कुत्तों के काटने की शिकायत की थी।
    • डेटा संग्रह तंत्र का अभाव:
      • भारत में ठोस अथवा तरल अपशिष्ट के संबंध में समयबद्ध डेटा अथवा पैनल डेटा की कमी है, जिससे निजी संस्थाओं के लिये अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों की लागत और लाभों के बीच संबंध को समझना मुश्किल हो जाता है।

अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित पहल:

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016:
    • ये कानून, जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) कानून, 2000 को प्रतिस्थापित करते हैं, स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण, सैनिटरी और पैकेजिंग अपशिष्ट के निपटान हेतु निर्माता की ज़िम्मेदारी एवं बल्क जनरेटर से संग्रह, निपटान तथा प्रसंस्करण के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क पर ज़ोर देते हैं।
  • वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल:
    • इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, सामग्रियों का पुनर्चक्रण करने और कचरे के उपचार हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और तैनाती करना है।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा:
    • अपशिष्ट-से-ऊर्जा या ऊर्जा-से-अपशिष्ट संयंत्र औद्योगिक प्रसंस्करण के लिये नगरपालिका एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को विद्युत और/या ऊष्मा में परिवर्तित करता है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016:
    • यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक अपशिष्ट को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर अपशिष्ट का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
    • फरवरी 2022 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 को अधिसूचित किया गया था।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN):
    • इसका उद्देश्य 20:80 के अनुपात में कपास के रेशों के साथ प्रसंस्कृत एवं उपचारित प्लास्टिक अपशिष्ट को मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022:
    • नियम विभिन्न हितधारकों जैसे- निर्माताओं, आयातकों, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं की ज़िम्मेदारियों को निर्दिष्ट करते हैं। इन सभी हितधारकों को यह सुनिश्चित करने में भूमिका निभानी है कि प्लास्टिक अपशिष्ट का उचित प्रबंधन किया जाए एवं इससे पर्यावरण प्रदूषित न हो।

आगे की राह

  • सार्वजनिक स्थानों पर अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार और बेकरियों के आसपास भोजन को विनियमित करने से पर्यावरण की वहन क्षमता कम हो सकती है।
  • ऐसी घटनाओं को कम करने हेतु अपशिष्ट निपटान सुविधाओं में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि केवल कुत्तों की नसबंदी और टीकों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा।
  • सामुदायिक स्तर पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ शुरू की जा सकती हैं ताकि एक केंद्रीकृत स्थान पर बड़ी मात्रा में नगर निगम के कचरे को संभालने का बोझ कम किया जा सके। अनौपचारिक श्रमिकों के लिये नौकरी के अवसर प्रदान किये जा सकें और परिवहन एवं भंडारण लागत को कम किया जा सके।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी-संचालित रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
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