Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर क्या है?

भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण को धार ज़िले में भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर की मूल प्रकृति को स्पष्ट करने के लिये वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है।

भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर क्या है?

  • परिचय:
    • भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर मूल रूप से 11वीं शताब्दी ई. में परमार राजा भोज द्वारा निर्मित देवी सरस्वती का मंदिर था।
    • मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके किया गया है। स्मारक में संस्कृत और प्राकृत साहित्यिक कृतियों के साथ अंकित कुछ स्लैब भी मौजूद हैं।
    • मतों के अनुसार कला और साहित्य के महान संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध राजा भोज ने एक स्कूल की स्थापना की थी जिसे अब भोजशाला के नाम से जाना जाता है।
    • ASI के साथ एक समझौते के तहत हिंदू प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में उपासना करते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग प्रत्येक शुक्रवार को नमाज़ पढ़ते हैं।
  • विवाद:
    • हिंदू समुदाय इस परिसर की मूल स्थिति को मंदिर के रूप में दर्शाते हैं जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला की मस्जिद मानते हैं जिसके कारण यह विवाद का विषय बन गया है।
    • याचिकाकर्त्ता ने ASI रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि मस्जिद बनाने के लिये भोजशाला और वाग्देवी मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। साइट का वास्तविक इतिहास निर्धारित करने के लिये एक सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया था।
    • एक प्रतिवादी ने रेस ज्यूडिकाटा (निर्णय किया गया) के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी, यह देखते हुए कि इसी तरह की याचिका को वर्ष 2003 में उच्च न्यायालय की प्रधान पीठ ने खारिज कर दिया था।
  • उच्च न्यायालय का आदेश:
    • अदालत ने कहा कि मंदिर की स्थिति निर्धारित होने तक रहस्यमय बना हुआ है। सभी पक्ष स्मारक की प्रकृति को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर सहमत हैं, यह कार्य स्मारक अधिनियम, 1958 के तहत ASI को सौंपा गया है।
      • अदालत ने ASI को GPR-GPS और कार्बन डेटिंग जैसे उन्नत तरीकों का उपयोग करके तुरंत एक व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण, उत्खनन तथा जाँच करने का आदेश दिया, जिसमें न केवल साइट बल्कि इसके 50-मीटर पेरीफेरल रिंग क्षेत्र को भी शामिल किया गया।

उत्खनन हेतु ASI द्वारा क्या तरीके अपनाए जाते हैं?

  • आक्रामक विधि:
    • उत्खनन, सबसे आक्रामक पुरातात्त्विक तकनीक, जिसमें अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ उसे नष्ट करने के लिये स्ट्रैटिग्राफिक सिद्धांतों का उपयोग करके खुदाई करना शामिल है।
      • पुरातत्त्वविदों द्वारा परतों को उल्टे क्रम में हटाने और पुरातात्त्विक रिकॉर्ड के तार्किक गठन को समझने के लिये स्ट्रैटिग्राफी को अपनाया जाता है।
  • गैर-आक्रामक विधियाँ: गैर-आक्रामक तरीकों का उपयोग तब किया जाता है जब किसी निर्मित संरचना के अंदर जाँच की जाती है और किसी खुदाई की अनुमति नहीं होती है। इसकी कई विधियाँ हैं:
    • सक्रिय विधि: ज़मीन में ऊर्जा डालें और प्रतिक्रिया को मापना। विधियाँ ज़मीन के भौतिक गुणों, जैसे घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग का अनुमान प्रदान करती हैं।
      • भूकंपीय तकनीक: उपसतह संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये सदमे तरंगों का उपयोग करना।
      • विद्युत चुंबकीय विधियाँ: एनर्जी इंजेक्शन के बाद विद्युत चुंबकीय प्रतिक्रियाओं को मापें।
    • निष्क्रिय विधि: मौजूदा भौतिक गुणों को मापना।
      • मैग्नेटोमेट्री: दबी हुई संरचनाओं के कारण होने वाली चुंबकीय विसंगतियों का पता लगाना।
      • गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण: उपसतही विशेषताओं के कारण गुरुत्वाकर्षण बल भिन्नता का मापन।
    • ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR): 
      • ASI दफन पुरातात्त्विक विशेषताओं का 3-मॉडल तैयार करने के लिये GPR का प्रयोग किया जाता है।
      • GPR एक सतह एंटीना से एक छोटे रडार आवेग द्वारा संचालित होता है और उपमृदा से परावर्ती संकेतों के समय व परिमाण को रिकॉर्ड करता है।
      • रडार की किरणों का शंकु की तरह प्रकीर्णन होता है, जिससे एंटीना द्वारा वस्तु के ऊपर से गुज़रने से पूर्व प्रतिबिंब उत्पन्न होता है।
      • रडार की किरणों का शंकु की तरह प्रकीर्णन होता है, जिससे ऐसे प्रतिबिंब बनते हैं जो सीधे भौतिक आयामों के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे आभासी प्रतिबिंब बनते हैं।
    • कार्बन डेटिंग:
      • कार्बन सामग्री (C-14) का निर्धारण कर कार्बनिक पदार्थ की आयु निर्धारित करना।

पुरातत्त्व सर्वेक्षण में विभिन्न पद्धतियों की सीमाएँ क्या हैं?

  • विभिन्न सामग्रियों के समान भौतिक गुण समान प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे लक्ष्यों की पहचान करने में अस्पष्टता हो सकती है।
  • एकत्र किया गया डेटा सीमित है और इसमें निर्धारण संबंधी त्रुटियाँ हैं, जिससे संपत्तियों के स्थानिक वितरण का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • पुरातात्त्विक संरचनाएँ प्रायः जटिल ज्यामिति वाली विषम प्रकृति की सामग्रियों से बनी होती हैं, जिससे डेटा व्याख्या चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
  • भू-भौतिकीय उपकरण, विशेष रूप से जटिल परिदृश्यों में, लक्ष्य प्रतिबिंबों का सटीकता से पुनर्निर्माण नहीं कर सकते हैं।
  • धार्मिक स्थलों पर विवाद जैसे मामलों में भावनात्मक और राजनीतिक कारक व्याख्याओं एवं निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)

Leave a Reply

error: Content is protected !!