UNSC का स्‍थायी सदस्‍य बनाने में क्‍या है सबसे बड़ी दिक्‍कत ?

UNSC का स्‍थायी सदस्‍य बनाने में क्‍या है सबसे बड़ी दिक्‍कत ?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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संयुक्‍त राष्‍ट्र की आम सभा का का 77वां सत्र शुरू हो चुका है। इस सत्र के दौरान अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थायी सीट की दावेदारी का समर्थन किया है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इस तरह के बयान कई देशों से लगभग हर बार सुनने को आते हैं। इसके बाद भी भारत को आज तक इसका स्‍थायी सदस्‍य नहीं बनाया जा सका है। इसकी दो सबसे बड़ी वजह हैंं। इसकी पहली बड़ी वजह है चीन तो दूसरी वजह है सीटों में बदलाव के लिए यूएन चार्टर में संशोधन।

चीन बना है सबसे बड़ा रोड़ा

चीन भारत की इस दावेदारी में ये कहकर वीटो का इस्‍तेमाल करता आया है कि यदि भारत इसका दावेदार हो सकता है तो फिर पाकिस्‍तान को ही क्‍यों पीछे छोड़ा जाए। आपको जानकर हैरानी होगी कि जो चीन यूएनएससी के में भारत की स्‍थायी सीट की दावेदारी में रोड़ा बना हुआ है कभी उसको इस परिषद का स्‍थायी सदस्‍य बनाने में भारत ने ही अहम भूमिका निभाई थी।

पंडित नेहरू ने चीन की सदस्‍यता का किया था समर्थन

ये कड़वी ही सही लेकिन सच्‍चाई है। कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने इसका जिक्र अपनी एक किताब नेहरू- द इंवेंशन ऑफ इंडिया’ में भी किया है। उन्‍होंने लिख है कि आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही यूएन में पीपुल्‍स रिपब्लिक आफ चाइना को स्‍थायी सदस्‍य बनाने की वकालत की थी। वर्ष 1949 में यूएन ने चीन को सुरक्षा परिषद की सदस्‍यता देने से इनकार कर दिया था। 1950 में भारत चीन की इस पक्ष में वकालत करने वाला सबसे बड़ा समर्थक था।

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पंडित नेहरू ने की बड़ी गलती

भाजपा की सरकार के पूर्व वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने भी इसको लेकर एक ट्वीट 14 मार्च 2019 को किया था, जिसमें कहा गया था कि कश्‍मीर और चीन को लेकर लगातार एक ही इंसान ने बड़ी गलतियां की थीं। उन्‍होंने यहां तक लिखा था कि पंडित नेहरू ने मुख्‍यमंत्रियों को लिखे पत्र में भी इस बात का समर्थन किया था कि चीन को सुरक्षा परिषद की सदस्‍या मिलनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो चीन के साथ ये नाइंसाफी होगी। जेटली ने इस दौरान पंडित नेहरू के अगस्‍त 1955 में लिखे पत्र का हवाला दिया था।

यूएन चार्टर में संशोधन अहम

भारत को सुरक्षा परिषद बनाने की राह में एक समस्‍या संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन भी है, जो कि अब तक नहीं किया गया है। सुरक्षा परिषद का सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ाने के लिए इसमें संशोधन बेहद जरूरी है। इसके बाद भी सदस्‍य बनने के लिए सुरक्षा परिषद के सभी 5 देशों के बीच सहमति जरूरी होती है। चीन हमेशा से ही भारत की सुरक्षा परिषद में मौजूदगी का विरोधी रहा है। इतना ही नहीं नवंबर 2020 में जब भारत को सुरक्षा परिषद का अस्‍थायी सदस्‍य बनाया गया था तब भी चीन ने कोई खुशी का इजहार नहीं किया था। उस वक्‍त संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 192 सदस्यों में से भारत के समर्थन में 184 वोट पड़े थे। इसमें चीन का वोट भारत के खिलाफ था।

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सुरक्षा परिषद का ढांचा

गौरतलब है कि सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में 5 स्थाई सदस्य होते हैं। चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका इसके स्‍थायी सदस्‍य हैं। इसके अलावा परिषद की 10 अस्थाई सीटों के लिये हर दो वर्षों में चुनाव होता है। इस तरह से ये सदस्य हर दो वर्ष में बदलते रहते हैं। भारत की नवंबर 2022 में सदस्‍यता खत्‍म हो जाएगी। बता दें कि सुरक्षा परिषद विश्‍व की शांति और सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी होती है। 1965 तक UNSC में कुल 11 सदस्य होते थे। 1965 में यूएन चार्टर में बदलाव कर इनकी संख्‍या 15 की गई थी।

 

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