इजरायल की नाक में दम करने वाले हमास की पूरी कुंडली क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

फिलिस्तीन खासकर गाजा पट्टी में आज का दिन बमबारियों के बीच बीता। लोग मरे, जख्मी हुए, घर टूटे, जान बचाने की अफरा तफरी मची रही। इस बमबारी का बैकग्राउंड येरुशलम से जुड़ा है। इजरायल और ळिलिस्तनी के बीच हफ्तों से बना आ रहा तनाव 9 अक्टूबर के बाद काबू से बाहर हो गया। इसी दिन हमास की तरफ से इजरायल पर 5 हजार रॉकेट दागे गए। इसकी प्रतिक्रिया में इजरायल ने गाजा पर बमबारी शुरू कर दी।

इजरायली बमबारी में खबर लिखे जाने तक 3,785 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। वहीं हमास के रॉकेट के साथ ही जमीनी हमलों में इजरायल के लगभग 1,400 लोग मारे गए। एमआरआई के पिछले एपिसोड में हमने आपको इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में अल-अक्सा मस्जिद की भूमिका, संघर्ष के केंद्र येरुशेलम का इतिहास बताया था। दोनों देशों के इतिहास और संघर्ष में आप लगातार एक नाम सुन रहे होंगे।

एशिया के पश्चमी छोर पर बसा एक छोटा सा देश फिलिस्तीन है। जानकार बताते हैं कि इस देश को अपना नाम फिलिस्तिया से मिला। फिलिस्तिया पांच शहरों गाजा, एस्केलोन, ऐशडोड, गाथ और एक्रॉन का एक साझा ग्रुप था। फिलिस्तिया पर फिलिस्तीन लोगों का कंट्रोल था। ये तकरीबन तीन हजार ईसा पूर्व की बात है। आधुनिक इजरायल के गठन से पहले जहां फिलिस्तीन देश था। उस भूभाग पर कई समूहों का शासन था। इसमें असीरियंस, बेबीलोनियंस, पर्शियंस, ग्रीक, रोमंस, अरब, इजिप्टियंस शामिल था। 1517 से 1917 तक यहां ऑटोमन शासन रहा।

लेकिन पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद अंग्रेजों को फिलिस्त्नी पर शासन का अधिकार मिल गया। इस दौरान अंग्रेजों ने 1917 की बालफोर घोषणा में कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार ने फिलिस्तीन क्षेत्र (पूर्व में एक तुर्क क्षेत्र) में यहूदी आबादी के लिए मातृभूमि या दे की स्थापना का समर्थन करेगा। 1922 के बाद बड़ी संख्या में यहूदी शर्णार्थी फिलिस्तीन आने लगे। फिलिस्तीनी लोग इसका विरोध करने लगे।

फिलिस्तिनियों की तरफ से यहूदियों के खिलाफ पहला बड़ा विरोध 1929 में हुआ। 1935 में ब्रिटिश शासन ने पील कमीशन के जरिए फिलिस्तीन के बंटवारे की अनुशंसा कर दी। बाद में संयुक्त राष्ट्र ने रिश़ॉल्यूशन नं 181 के जरिए एक प्रस्ताव पारित किया और फिलिस्तीन का बंटवारा हो गया। इस दौरान इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हिंसा का दौर भी देखने को मिला। इजरायल के बनने के बाद ये उग्रता और तीव्र होता गया और इसी का एक हिस्सा हमास है।

क्या है हमास और कौन है इसका लीडर 

हमास का शाब्दिक अनुवाद उत्साह है। अरबी में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन का संक्षिप्त रूप है। इसका पूरा नाम इस्लामिक रेजीस्टेंस मूवमेंट है। समूह की स्थापना 1987 में गाजा में मिस्र में स्थित एक प्रमुख सुन्नी समूह मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में की गई थी। फिलिस्तीनी शेख अहमद यासीन इसके पहले लीडर थे। इसी साल फिलिस्तीन में इंतिफादा या विद्रोह के दौरान इज़राइल के कब्जे के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। इंतिफादा का मतलब है झकझोर देना।

इजरायली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनियों के पहले इंतिफादा या विद्रोह के रूप में जाने जाने वाले दौरान उभरते हुए हमास ने तुरंत सशस्त्र प्रतिरोध के सिद्धांत को अपनाया और इजरायल के विनाश का आह्वान किया। समूह ने इज़राइल को नष्ट करने की कसम खाई है और नागरिकों और इज़राइली सैनिकों पर कई आत्मघाती बम विस्फोटों और अन्य घातक हमलों के लिए जिम्मेदार है। अमेरिकी विदेश विभाग ने 1997 में हमास को एक आतंकवादी समूह नामित किया है। यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देश भी इसे एक आतंकवादी संगठन मानते हैं।

हमास ने 2006 के संसदीय चुनाव जीते और 2007 में हिंसक तरीके से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त फिलिस्तीनी प्राधिकरण से गाजा पट्टी का नियंत्रण छीन लिया। प्रतिद्वंद्वी फतह आंदोलन के प्रभुत्व वाला फिलिस्तीनी प्राधिकरण, इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक के अर्ध-स्वायत्त क्षेत्रों का प्रशासन करता है। इन वर्षों में हमास को कतर और तुर्की जैसे अरब और मुस्लिम देशों से समर्थन प्राप्त हुआ। हाल ही में, वह ईरान और उसके सहयोगियों के करीब चला गया है।

हमास के संस्थापक और आध्यात्मिक नेता यासीन एक लकवाग्रस्त व्यक्ति जो व्हीलचेयर का उपयोग करते थे। उन्होंने इज़राइली जेलों में वर्षों बिताए और हमास की सैन्य शाखा की स्थापना की देखरेख की, जिसने 1993 में अपना पहला आत्मघाती हमला किया। इज़रायली सेना ने वर्षों से हमास नेताओं को निशाना बनाया है, जिसमें 2004 में यासीन की मौत हो गई। एक निर्वासित हमास सदस्य खालिद मशाल जो पहले इजरायली हत्या के प्रयास में बच गया था, जल्द ही समूह का नेता बन गया। गाजा में येहिया सिनवार और निर्वासन में रह रहे इस्माइल हनियेह हमास के वर्तमान नेता हैं। उन्होंने समूह के नेतृत्व को ईरान और उसके सहयोगियों, जिनमें लेबनान का हिजबुल्लाह भी शामिल है।

हमास के कुछ आतंकी तुर्की में भी रहत हैं। इस्माइल हानिया और उसके बेटे के पास तुर्की का पासपोर्ट है। हमास ने तुर्की में भी अपना एक राजनीतिक कार्यालय खोला है। इस कार्यालय को चलाने के लिए फंडिंग तुर्की की सरकार देती है। हमास ने कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों को मुक्त कराने के साधन के रूप में हमेशा हिंसा का समर्थन किया है और इजरायल के विनाश का आह्वान किया है। हमास ने आत्मघाती बम विस्फोट किए हैं और पिछले कुछ वर्षों में गाजा से इजराइल की ओर हजारों शक्तिशाली रॉकेट दागे हैं। इसने हथियारों की तस्करी के लिए गाजा से मिस्र तक चलने वाली सुरंगों का एक नेटवर्क भी स्थापित किया, साथ ही इज़राइल में सुरंगों पर हमला किया। हाल के वर्षों में हमास इज़राइल पर हमला करने के बजाय गाजा को चलाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता हुआ दिखाई दिया है।

ये पहला, दूसरा इंतिफादा क्या है 

अंतरराष्ट्रीय पक्षों ने इजरायल और फिलिस्तीन के विवाद को सुलझाने की बहुत कोशिश की। हमास के गठन के कुछ वर्षों बाद 1993 में ओस्लो एग्रीमेंट हुआ। पहला फिलिस्तीनी नेतृत्व की ओर से इजरायल को मान्यता दी गई। गाजा और वेस्ट बैंक में स्वशासन के लिए फिलिस्तिनियों की अंतरिम सरकार पर समझौता हुआ। इज़राइल और फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। लेकिन 1993 में हमास ने अपना पहला फिदायीन हमला कर अपनी मंशा जाहिर कर दी। 28 सितंबर 2000 को इजयारल राजनेता आरियल शेरोन ने इजरायल के नियंत्रण वाले पूर्वी येरुशेलम का दौरा किया। इससे दूसरा इंतिफादा भड़ गया। फिलिस्तीनी नेताओं ने इसे अधिकृत इलाके और येरुशेलम के टेंपल माउंट पर स्थित अल अक्सा मस्जिद पर इजरायली दावेदारी के तौर पर देखा।

इस दौरे के वक्त शेरोन इजरायल संसद में विपक्ष के नेता थे। लेकिन इसके कुछ महीने के भीतर ही वो पीएम चुन लिए गए। हमास ने 6 अक्टूबर 2000 को आक्रोश दिवस मनाया और लोगों से इस्राएली सेना के ठिकानों पर हमला करने को कहा है। इससे इस्राएल-फलस्तीन विवाद और जटिल हो गया, जो बरसों बाद आज भी खिंचता चला जा रहा है। पहले इंतिफादा में फलस्तीनी इस्राएली सेना पर पत्थर और बोतल बम ही फेंकते थे लेकिन दूसरे इंतिफादा में हमास और अन्य जिहादी समूह इस्राएली सेना के साथ बंदूकों और गोलियों के साथ लड़े और इस्राएली शहरों पर भी गोलाबारी भी की गयी। दोनों ही पक्षों की तरफ से खूब खून खराबा किया गया।

इजरायल और अरब देशों के बीच का अब्राहम समझौता 

अब मौजूदा प्रकरण पर आते हैं। एक बार फिर हमास और इजरायल के बीच जंग छिड़ गई है। दोनों एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। मिडिल ईस्ट का हालिया घटनाक्रम हमास के ताजा हमले की एक बड़ी वजह है। इजरायल का यूएई से समझौता हुआ। जिसे अब्राहम समझौता नाम दिया गया। इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच 13 अगस्त 2020 को हुआ था। उसी रात 11 सितंबर को इन दोनों देशों ने समझौता पर हस्ताक्षर किए। अब्राहम के नाम की खासियत ये है कि इसे इस्लाम, ईसाई और यहूदी तीनों ही धर्मों में पवित्रता के साथ लिया जाता है। इसका मतलब सहयोग की भावना है।

अब्राहम समझौते का मुख्य मकसद अरब और इजरायल के बीच आर्थिक, राजनयिक और सांस्कृतिक स्तर पर संबंधों को सामान्य बनाना था। सितंबर 2020 में हस्ताक्षरित ऐतिहासिक अब्राहम समझौते ने इज़राइल और यूएई और बहरीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की, जिससे 41 साल का गतिरोध टूट गया और भूराजनीतिक भूकंप आया। सूडान और मोरक्को ने भी इसका अनुसरण किया। फ़िलिस्तीनी मुद्दे के कारण 1948, 1967 और 1973 में अरब-इज़राइल युद्ध हुए, जब तक कि इज़राइल और दो अरब राज्यों, मिस्र और जॉर्डन के बीच शांति संधि नहीं हो गई, जिन्होंने पहले इज़राइल से निपटने पर अन्य अरब राज्यों के साथ संबंध तोड़ दिए। हालाँकि, सऊदी अरब अब्राहम समझौते का समर्थक था, लेकिन उसने इसका पालन नहीं किया। यह कोई रहस्य नहीं है कि अमेरिका सऊदी अरब पर इजराइल के साथ संबंध सामान्य करने के लिए दबाव बना रहा है।

अब्राहम समझौते के तहत, इज़राइल किसी भी विलय योजना को रोकने के लिए सहमत हुआ। हालाँकि, फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में यहूदी बस्तियों के निर्माण पर इज़राइल की रुको और जाओ नीति को रोका नहीं गया था। पीएम नेतन्याहू की वर्तमान सरकार में अति-दक्षिणपंथी मंत्री हैं जो पूरे वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करना चाहते हैं और शेष सभी फिलिस्तीनियों को बसने के लिए अन्य अरब देशों में भेजना चाहते हैं। वेस्ट बैंक में यहूदी बसने वालों और फिलिस्तीनियों के बीच झड़पें कई गुना बढ़ गई हैं और 2023 में सबसे ज्यादा लोग हताहत हुए हैं।

यानी अब फिलिस्तीन की साइड लेने के लिए तुर्की और ईरान शेष रह गए। ईरान पहले से ही दुनिया में अलग थलग है और एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की के मुस्लिम लीडर बनने को इस्लामिक देश सपोर्ट नहीं करते। तो आज हमने आपको हमास की कहानी बताई। अब इजरायल फिलिस्तीन विवाद के आखिरी एपिसोड में आपको हमेशा फिलिस्तीन समर्थक रहे भारत की इजरायल संग रिश्तों की कहानी बताएंगे। कैसे आखिर छोटा सा दिखने वाला देश देखते ही देखते बन गया ऐसा दोस्त जिसका दिल भारत के लिए धड़कता है।

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