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भारत की विविधता में बहुभाषावाद का क्या योगदान है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्तमान में परस्पर जुड़े हुए वैश्विक परिवेश में बहुभाषावाद ने अपने बहुमुखी महत्त्व के लिये मान्यता प्राप्त की है। इसमें न केवल इसके संज्ञानात्मक लाभ बल्कि विविध संस्कृतियों को समृद्ध करने की क्षमता भी शामिल है।

  • बहुभाषावाद को अपनाने के महत्त्व का एक प्रमुख उदाहरण भारत है, जहाँ भाषाओं और लिपियों की प्रचुरता है।

भारत का बहुभाषी परिदृश्य:

  • बहुभाषी लैंडस्केप:
    • भारत विश्व में सबसे अधिक भाषायी विविधता वाले देशों में से एक है, पूरे देश में 19,500 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं।
      • यह विविधता भारतीयों को बहुभाषी होने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है, जिसका अर्थ है संचार में एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करने में सक्षम होना।
    • भारत की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 25% से अधिक जनसंख्या दो भाषाएँ बोलती है, जबकि लगभग 7% तीन भाषाएँ बोलते हैं।
      • अध्ययनों में कहा गया है कि युवा भारतीय अपनी बुजुर्ग पीढ़ी की तुलना में अधिक बहुभाषी हैं, 15 से 49 वर्ष आयु की लगभग आधी शहरी आबादी दो भाषाएँ बोलती है।
  • भारत की विविधता में बहुभाषावाद का योगदान:
    • भारत का बहुभाषावाद न केवल संख्या का मामला है, बल्कि संस्कृति, पहचान और इतिहास का भी मामला है।
      • भारत की भाषाएँ इसके विविध और बहुलवादी समाज को दर्शाती हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों, नस्लों, जातियों और वर्गों के लोग एक साथ रहते हैं और बातचीत करते हैं।
  • बहुभाषावाद के लाभ: 
    • बहुभाषावाद स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान और रचनात्मकता जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
      • शोध से पता चला है कि द्विभाषी और बहुभाषी लोगों के पास बेहतर कार्यकारी कार्यक्षमता होती है, वे मानसिक प्रक्रियाओं की योजना बनाने, उन्हें व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। शोध के अनुसार, मानसिक प्रक्रियाएँ योजना निर्माण, व्यवस्था और प्रबंधन से संबंधित कार्यों का कार्यान्वयन क्षेत्र है, जिसमें द्विभाषी तथा बहुभाषी व्यक्ति बेहतर प्रगति कर सकते हैं।
    • बहुभाषावाद सहानुभूति, परिप्रेक्ष्य और अंतर-सांस्कृतिक क्षमता जैसे सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल में भी सुधार कर सकता है।
      • विभिन्न भाषाएँ सीखकर लोग विभिन्न संस्कृतियों, मूल्यों और विश्व-दृष्टिकोण तक अभिगम कर सकते हैं, जो उन्हें विविधता को समझने तथा उसकी सराहना करने में मदद कर सकता है।
    • बहुभाषावाद व्यावहारिक लाभ भी प्रदान कर सकता है, जैसे कि कॅरियर के अवसर, यात्रा अनुभव और सूचना एवं मनोरंजन तक अभिगम।
      • एक से अधिक भाषाओं के ज्ञान से लोग अधिक लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं, अधिक स्थानों का पता लगा सकते हैं और अधिक संसाधनों का आनंद ले सकते हैं।

भारत में भाषाओं से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 29:
    • यह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है।
    • यह नस्ल, जाति, पंथ, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव पर भी रोक लगाता है।
  • आठवीं अनुसूची:
    • यह भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करता है। भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
      • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देती है:
        • असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
    • सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।
      • भारत में वर्तमान में छह भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध ‘शास्त्रीय’ भाषा का दर्जा प्राप्त है।
        • तमिल (वर्ष 2004 में घोषित), संस्कृत (वर्ष 2005), कन्नड़ (वर्ष 2008), तेलुगू (वर्ष 2008), मलयालम (वर्ष 2013), और उड़िया (वर्ष 2014)।
  • अनुच्छेद 343:
    • इसके अनुसार हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
      • इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्षों की कालावधि के लिये अंग्रेज़ी आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती रहेगी।
  • अनुच्छेद 345:
    • किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा राज्य में उपयोग में आने वाली किसी एक अथवा अधिक भाषाओं अथवा हिंदी को उस राज्य के सभी अथवा किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा।
  • अनुच्छेद 346:
    • यह आधिकारिक संचार में कई भाषाओं के उपयोग की अनुमति देकर भारत की भाषायी विविधता को मान्यता देता है। यह राज्यों के बीच तथा राज्य और संघ के बीच प्रभावी संचार सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 347:
    • यह राष्ट्रपति को किसी भाषा को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की शक्ति देता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा भाग चाहता है कि उस भाषा को मान्यता दी जाए। ऐसी मान्यता राज्य के एक हिस्से अथवा संपूर्ण राज्य के लिये हो सकती है।
  • अनुच्छेद 348(1):
    • इसमें प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी भाषा में होगी जब तक कि संसद विधि द्वारा अन्यथा प्रावधान न करे।
  • अनुच्छेद 348(2):
    • इसमें प्रावधान है कि अनुच्छेद 348(1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, में हिंदी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
  • अनुच्छेद 350:
    • प्रत्येक व्यक्ति किसी भी शिकायत के निवारण के लिये संघ या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ या राज्य में उपयोग की जाने वाली किसी भी भाषा में, जैसा भी मामला हो, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने का हकदार होगा।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350A में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करनी होगी।
    • अनुच्छेद 350B भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये “विशेष अधिकारी” की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 351:

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