भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान स्थिति क्या है?

भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान स्थिति क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि गन्ने का उचित और पारिश्रमिक मूल्य (FRP) उचित बाज़ार मूल्य नहीं है, इसमें कहा गया है कि सीमांत किसान अपनी आजीविका तभी चला सकते हैं जब राज्य सरकारें उन्हें बहुत अधिक राज्य परामर्शित मूल्य (SAP) का भुगतान करती हैं।

गन्ने का मूल्य कैसे तय होते हैं? 

  • गन्ने का मूल्य केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर तय करती हैं।
  • केंद्र सरकार: उचित और लाभकारी मूल्य (FRP):
    • केंद्र सरकार FRP की घोषणा करती है जो कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर निर्धारित होती है, जिसे आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) द्वारा घोषित किया जाता है।
      • CCEA की अध्यक्षता भारत का प्रधानमंत्री करता है।
    • FRP, गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
  • राज्य सरकार: राज्य परामर्शित मूल्य (SAP):
    • SAP की घोषणा प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की सरकारों द्वारा की जाती है।
    • SAP आमतौर पर FRP से अधिक होता है।
      • मूल्य की गणना विशेषज्ञों द्वारा की जाती है, जो इनपुट लागत के माध्यम से फसल के संपूर्ण आर्थिक गणना करते हैं और फिर सरकार को सुझाव देते हैं।

चीनी उत्पादन बढ़ाने से लाभ: 

  • चीनी उत्पादन से कई उप-उत्पाद उत्पन्न होते हैं, जैसे कि गुड़, खोई और प्रेस मड, जिनका उपयोग इथेनॉल, कागज़ और जैविक-उर्वरक जैसे अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
  • चीनी मिलें अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल में बदल सकती हैं, जो पेट्रोल के साथ मिश्रित होता है, जो न केवल हरित ईंधन के रूप में काम करता है बल्कि कच्चे तेल के आयात के कारण विदेशी मुद्रा की बचत भी करता है।
    • भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन कोटि के इथेनॉल के 10% सम्मिश्रण और वर्ष 2025 तक 20% सम्मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
      • भारत ने नवंबर, 2022 की लक्षित समय-सीमा से पाँच माह पूर्व देश भर में औसतन 10% सम्मिश्रण का अपना लक्ष्य हासिल कर लिया।
  • गन्ने की खेती करने से किसानों को अपनी कृषि गतिविधियों में विविधता लाने और आय बढ़ाने का अवसर मिलता है।
  • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिये गन्ने की खेती को अन्य फसलों जैसे- सब्जियों, फलों और मसालों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। इससे मृदा स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है, कीट एवं रोगों का दबाव कम हो सकता है, साथ ही फसल की पैदावार में भी सुधार होने की संभावना रहती है।  

गन्ने की पैदावार से संबंधित चुनौतियाँ:

  • फसल की लंबी अवधि:
    • गन्ने को बढ़ने और कटाई के लिये तैयार होने में लंबा समय लगता है (लगभग 10 से 12 महीने)। गन्ना उगाना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें किसान को गन्ने की कटाई करने से पहले दो और फसलें लगाने और काटने की ज़रूरत होती है
    • इसका मतलब है कि गन्ना उगाने में लगभग तीन साल की अवधि में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
  • उच्च निवेश:
    • गन्ना उगाने के लिये किसानों को अधिक धन निवेश करने की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें बोने से पहले खेतों को ठीक से तैयार करना होता है। इसमें मिट्टी को अधिक गहराई तक जोतना, उसके बाद गन्ने के लिये मिट्टी को उपयुक्त बनाने हेतु हैरो चलाना और समतल करना शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त गन्ने की पौध खरीदना महँगा है और रोपण से पहले किसानों को मिट्टी में खाद और उर्वरक मिलाने की ज़रूरत होती है, जिसकी कीमत भी अधिक होती है।
  • उच्च श्रम लागत:
    • गन्ना काटने के लिये श्रम की लागत बहुत अधिक होती है और यदि कटाई का मौसम बारिश के बिना सूखा होता है, तो यह गन्ने के कुल वज़न को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और अगर बारिश होती है, तो रास्ते में कीचड़ के परिणामस्वरूप लॉरी/ट्रक गन्ने के खेत के पास नहीं आ पाएंगे
    • गन्ने को खेत से मुख्य सड़क तक मज़दूर लगाकर ले जाने में किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है।
  • अव्यवहार्य चीनी निर्यात: 
    • भारत को चीनी का निर्यात करने में कठिनाई हो रही है क्योंकि मुख्य रूप से गन्ने की उच्च लागत के कारण इसकी उत्पादन लागत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मूल्य की तुलना में अधिक है
    • इस अंतर को पाटने में सहायता के लिये सरकार निर्यात सब्सिडी प्रदान कर रही है, लेकिन अन्य देशों ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के समक्ष आपत्तियाँ उठाई हैं।
    • हालाँकि भारत को वर्तमान में दिसंबर 2023 तक इन सब्सिडी को जारी रखने की अनुमति है, लेकिन उसके बाद क्या होगा, इस बारे में अनिश्चितता है।
  • भारत के इथेनॉल कार्यक्रम के साथ समस्या:
    • ऑटो ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण की घोषणा पहली बार वर्ष 2003 में की गई थी, लेकिन कई चुनौतियों के कारण यह पहल बहुत सफल नहीं रही। सम्मिश्रण के लिये आपूर्ति किये गए इथेनॉल की कम कीमत प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • चूँकि इथेनॉल की कीमत अकसर पेट्रोल की कीमत से अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य हो जाता है। यह इथेनॉल उत्पादकों को सम्मिश्रण के लिये इथेनॉल की आपूर्ति करने से हतोत्साहित कर सकता है।

भारत में गन्ना क्षेत्र की स्थिति:

  • परिचय:
    • चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
      • भारत में कपास के बाद चीनी उद्योग दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है।
  • गन्ने की वृद्धि के लिये भौगोलिक स्थितियाँ:
    • तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 °C के मध्य।
    • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
    • मृदा का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मृदा।
    • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र> उत्तर प्रदेश> कर्नाटक।
  • गन्ना क्षेत्र की स्थिति:
    • भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है।
    • इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, वर्ष 2022 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान भारत का चीनी उत्पादन 3.69% बढ़कर 12.07 मिलियन टन हो गया।
      • पिछले साल इसी अवधि में यह 11.64 मिलियन टन था।
    • इथेनॉल निर्माण हेतु डायवर्ज़न के बाद कुल चीनी उत्पादन जनवरी 2023 तक बढ़कर 193.5 लाख टन हो गया, जो एक वर्ष पहले की अवधि में 187.1 लाख टन था।
  • योजना:
    • चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना (Scheme for Extending Financial Assistance to Sugar Undertakings- SEFASU)
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति
    • पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending with Petrol- EBP) कार्यक्रम

आगे की राह 

  • चीनी मिलें न केवल चीनी बनाने और बेचने पर निर्भर रहें बल्कि अन्य उत्पाद भी बनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • चीनी मिलों को लाभदायक बनाना होगा ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य और मिलों को लाभ मिल सके, अतः इसके लिये सह-उत्पादन संयंत्रों की स्थापना करके विद्युत का उत्पादन करना बहुत आवश्यक है, इथेनॉल, जो एक नवीकरणीय जैव ईंधन है, मिलों के समीप संयंत्र स्थापित किया जा सकता है क्योंकि यहाँ पर इसके लिये कच्चा माल उपलब्ध है।
  • रंगराजन समिति ने चीनी और अन्य उप-उत्पादों की कीमत में फैक्टरिंग करके गन्ने की कीमत तय करने हेतु रेवेन्यू शेयरिंग फॉर्मूला सुझाया है।

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