भारत-पकिस्तान जलविद्युत परियोजना को लेकर क्या मतभेद है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है, हाल ही में हेग(Hague) स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) ने फैसला किया है कि उसके पास इस परियोजना से संबंधित पाकिस्तान की आपत्तियों/शिकायतें सुनने का अधिकार है।

  • हालाँकि, “मध्यस्थता न्यायालय” के संविधान को सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty- IWT) के प्रावधानों के खिलाफ मानते हुए भारत इसे अस्वीकार करता है।

सिंधु जल संधि:

  • परिचय:
    • भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की बातचीत के बाद सितंबर 1960 में IWT (जल साझाकरण संधि) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें विश्व बैंक भी इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता था।
    • यह संधि सिंधु नदी और उसकी पाँच सहायक नदियों सतलज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब के जल के उपयोग पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग तथा सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक तंत्र निर्धारित करती है।
    • इस संधि का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पार जल संसाधनों के सहयोग तथा शांतिपूर्ण प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
  • नदियों का आवंटन:
    • इस संधि के तहत, तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) को अप्रतिबंधित उपयोग के लिये भारत को आवंटित किया गया है।
    • पाकिस्तान के अप्रतिबंधित उपयोग के लिये तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) आवंटित की गई हैं।
    • भारत के पास घरेलू, गैर-उपभोग्य और कृषि उद्देश्यों के लिये पश्चिमी नदियों के सीमित उपयोग की अनुमति है।

मुख्य प्रावधान:

  • परियोजना निर्माण: 
    • इस संधि के तहत कुछ शर्तों के साथ भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की अनुमति है।
  • विवाद निपटान: 
    • स्थायी सिंधु आयोग के माध्यम से संवाद (Permanent Indus Commission- PIC):
      • इस आयोग में प्रत्येक देश का एक आयुक्त होता है।
      • इसके सदस्य देश एक-दूसरे को सिंधु नदी पर नियोजित परियोजनाओं के बारे में सूचित करते हैं।
      • PIC आवश्यक सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
      • इसका उद्देश्य मतभेदों को दूर करना और तनाव को बढ़ने से रोकना है।
    • तटस्थता कार्य विशेषज्ञ:
      • यदि PIC किसी समस्या को हल करने में विफल रहता है, तो इस समस्या को अगले स्तर पर भेज दिया जाता है।
      • विश्व बैंक एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करता है।
      • यह विशेषज्ञ मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करता है।
    • मध्यस्थता न्यायालय (CoA):
      • यदि उस मामले का निपटान तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा भी नहीं हो पाता है फिर मामले को मध्यस्थता न्यायालय में भेज दिया जाता है।
      • CoA मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का समाधान करती है।
      • सिंधु जल संधि में स्पष्ट है कि किसी दिये गए विवाद के लिये तटस्थ विशेषज्ञ और CoA में से एक समय में केवल एक का ही उपयोग किया जा सकता है।

भारत और पाकिस्तान के बीच जल-विद्युत परियोजना विवाद:

  • जल-विद्युत परियोजनाएँ:  
    •  इस मामले में भारत और पाकिस्तान के बीच किशनगंगा जल-विद्युत परियोजना (झेलम नदी की सहायक नदी किशनगंगा नदी पर) और जम्मू-कश्मीर में रतले जल-विद्युत परियोजना (चिनाब नदी पर) को लेकर विवाद शामिल है।
      • दोनों देश इस बात पर असहमत हैं कि क्या इन दोनों जल-विद्युत संयंत्रों की तकनीकी डिजाइन विशेषताएँ IWT का उल्लंघन करती हैं।
  • पाकिस्तान की आपत्तियाँ: 
    • पाकिस्तान IWT के उल्लंघन में कम जल प्रवाह, पर्यावरणीय प्रभाव तथा विभिन्न संधि व्याख्याओं के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए जल-विद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताता है।
    • वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने एक तटस्थ विशेषज्ञ का अपना अनुरोध वापस ले लिया साथ ही इसके स्थान पर एक CoA का प्रस्ताव रखा।
    • भारत ने इस प्रक्रिया में इसके महत्त्व पर ज़ोर देते हुए वर्ष 2016 में एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया, जिसे पाकिस्तान ने नजरअंदाज करने की कोशिश की।
  • विश्व बैंक का हस्तक्षेप: 
    • विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के अलग-अलग अनुरोधों के कारण प्रक्रिया पर रोक लगा दी, जिसमें PIC के माध्यम से समाधान का आग्रह किया गया था।
    • पाकिस्तान ने PIC बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से अस्वीकृत कर दिया, जिसके कारण विश्व बैंक को तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय पर कार्रवाई प्रारंभ करनी पड़ी।
      • यह संधि विश्व बैंक को यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं देती है कि एक प्रक्रिया को दूसरी प्रक्रिया से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिये या नहीं।
      • विश्व बैंक ने CoA और तटस्थ विशेषज्ञ दोनों के संबंध में अपने प्रक्रियात्मक दायित्वों को पूरा करने की मांग की।
  • भारत का विरोध: 
    • भारत, सिंधु-जल संधि प्रावधानों के उल्लंघन का हवाला देते हुए CoA के संविधान का विरोध करता है।
    • भारत ने CoA के अधिकार क्षेत्र और क्षमता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसका गठन संधि के अनुसार नहीं किया गया था।
    • भारत ने एकल विवाद समाधान प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल देते हुए मध्यस्थों की नियुक्ति नहीं की है या न्यायालय की कार्यवाही में भाग नहीं लिया है।

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का निर्णय

  • निर्णय:
    • PCA ने निर्णय दिया कि मध्यस्थता न्यायालय (CoA) के पास जम्मू-कश्मीर में भारत की जल-विद्युत परियोजनाओं के संबंध में पाकिस्तान की आपत्तियों पर विचार करने की क्षमता है।
    • यह सर्वसम्मत निर्णय पर आधारित था, जो दोनों पक्षों के लिये बाध्यकारी था साथ ही  इसमें अपील की कोई संभावना भी नहीं थी।
    • PCA ने CoA की क्षमता पर भारत की आपत्तियों को अस्वीकृत कर दिया, जैसा कि विश्व बैंक के साथ उसके संचार माध्यम से उठाया गया था।
  • भारत की प्रतिक्रिया:
    • भारत ने स्पष्ट किया कि वह PCA में पाकिस्तान द्वारा प्रारंभ की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा क्योंकि IWT के ढाँचे के अंर्तगत विवाद की जाँच पहले से ही एक तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा की जा रही है।
  • निहितार्थ:
    • PCA का निर्णय जल-विद्युत परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे विवाद में जटिलता तथा अनिश्चितता में वृद्धि करता है।
    • यह फैसला भारत की स्थिति को चुनौती देता है और IWT की प्रभावशीलता और विवेचना  पर सवाल उठाता है।
    • निर्णय के निहितार्थ विशिष्ट विवाद से परे हैं, जो संभावित रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों विशेष रूप से जल-बँटवारे और सहयोग से संबंधितको प्रभावित कर रहे हैं

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय 

  • इसकी स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय द हेग, नीदरलैंड में है।
  • उद्देश्य: यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सेवा करने और राज्यों के बीच मध्यस्थता तथा विवाद समाधान के अन्य रूपों को सुविधाजनक बनाने के लिये समर्पित है।
  • इसकी तीन-भागीय संगठनात्मक संरचना है जिसमें शामिल हैं:
    • प्रशासनिक परिषद – अपनी नीतियों और बजट की देखरेख के लिये,
    • न्यायालय के सदस्य – स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का एक पैनल, और
    • अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो – इसका सचिवालय, जिसका नेतृत्त्व महासचिव करता है
  • निधि: इसका एक वित्तीय सहायता कोष है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता या PCA द्वारा प्रस्तावित विवाद निपटान के अन्य तरीकों में शामिल लागतों का हिस्सा पूर्ण करने में सहायता करना है।
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