उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन पर क्या चर्चा है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
संसद के एक विशेष सत्र में शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने “उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन” को लेकर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- इस रिपोर्ट में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में इस प्रमुख नीतिगत बदलाव को लागू करने में प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा की गई है।
- उच्च शिक्षा संस्थानों की विविधता:
- रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली का एक बड़ा भाग राज्य अधिनियमों के तहत संचालित होता है, जिसमें 70% विश्वविद्यालय इस श्रेणी में आते हैं।
- इसके अतिरिक्त, 94% छात्र राज्य या निजी संस्थानों में नामांकित हैं, केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकित छात्रों का अनुपात मात्र 6% है।
- यह उच्च शिक्षा प्रदान करने में राज्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
- चर्चा के प्रमुख बिंदु:
- अनुशासनात्मक कठोरता: पैनल ने विषयों के विभाजन में बरती जाने वाली सख्ती को लेकर चिंता जताई, जो अंतःविषय शिक्षा और नवाचार के लिये बाधक हो सकता है।
- वंचित क्षेत्रों में सीमित पहुँच: सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तक पहुँच सीमित है, जिससे शैक्षिक अवसरों के समान वितरण में बाधा आती है।
- भाषा संबंधी बाधाएँ: स्थानीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या काफी कम है, जिससे संभावित रूप से आबादी का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा से वंचित रह जाता है।
- संकाय की कमी: योग्य संकाय सदस्यों की कमी उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये सबसे प्रमुख बाधा बनती जा रही है, जिसका शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
- संस्थागत स्वायत्तता का अभाव: कई संस्थानों को स्वायत्तता की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे अनुकूलन और नवाचार करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- अनुसंधान पर ज़ोर: पैनल ने वर्तमान उच्च शिक्षा प्रणाली के अंदर अनुसंधान पर कम ज़ोर दिया।
- अप्रभावी नियामक प्रणाली: उच्च शिक्षा को नियंत्रित करने वाले नियामक ढाँचे को अप्रभावी माना गया, जिसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता थी।
- मल्टीपल एंट्री मल्टीपल एग्जिट प्रोग्राम से संबंधित चिंता: पैनल ने चिंता व्यक्त की कि भारतीय संस्थानों में MEME प्रणाली को लागू करना प्रभावी ढंग से संरेखित नहीं हो सकता है क्योकि यह सिद्धांत लचीला जरूर है किंतु इसमें छात्र प्रवेश और निकास अनिश्चित हैं। यह अनिश्चितता छात्र-शिक्षक अनुपात को बाधित कर सकती है।
- सिफारिशें:
- समान निधीकरण: केंद्र एवं राज्य दोनों को उच्च शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) को समर्थन प्रदान करने के लिये पर्याप्त धनराशि आवंटित करनी चाहिये।
- उच्च शिक्षा तक पहुँच में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु SEDG के लिये सकल नामांकन अनुपात के स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये।
- लैंगिक संतुलन: उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश हेतु लैंगिक संतुलन बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिये।
- समावेशी प्रवेश और पाठ्यक्रम: छात्रों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रवेश प्रक्रियाओं और पाठ्यक्रम को अधिक समावेशी बनाया जाना चाहिये।
- क्षेत्रीय भाषा पाठ्यक्रम: क्षेत्रीय भाषाओं और द्विभाषी रूप से पढ़ाए जाने वाले अन्य डिग्री पाठ्यक्रमों के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- दिव्यांगों के लिये पहुँच: उच्च शिक्षण संस्थानों को दिव्यांग छात्रों के लिये अधिक सुलभ बनाने के लिये विशिष्ट कदम उठाए जाने चाहिये, जिनमें ढाँचा आधारित कदम महत्त्वपूर्ण हैं ।
- भेदभाव-विरोधी उपाय: सुरक्षित एवं समावेशी वातावरण सुनिश्चित करने के लिये भेदभाव-रहित और उत्पीड़न-विरोधी नियमों को सख्ती से लागू करने की सिफारिश की जानी चाहिये।
- HEFA विविधीकरण: उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) को सरकारी आवंटन से परे अपने निधीकरण स्रोतों में विविधता लानी चाहिये।
- वित्त पोषण के लिये निजी क्षेत्र के संगठनों, परोपकारी फाउंडेशनों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी के विकल्प तलाशने चाहिये।
- समान निधीकरण: केंद्र एवं राज्य दोनों को उच्च शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) को समर्थन प्रदान करने के लिये पर्याप्त धनराशि आवंटित करनी चाहिये।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020:
- परिचय:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भारत की उभरती विकास आवश्यकताओं से निपटने का प्रयास करती है।
- यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों का सम्मान करते हुए, सतत् विकास लक्ष्य 4 (SDG4) सहित 21 वीं सदी के शैक्षिक लक्ष्यों के साथ संरेखित एक आधुनिक प्रणाली स्थापित करने के लिये इसके नियमों एवं प्रबंधन के साथ शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव का आह्वान करता है।
- यह वर्ष 1992 में संशोधित (NPE 1986/92) 34 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986, का स्थान लेती है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भारत की उभरती विकास आवश्यकताओं से निपटने का प्रयास करती है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- सार्वभौमिक पहुँच: NEP 2020 प्री-स्कूल से लेकर माध्यमिक स्तर तक स्कूली शिक्षा के सार्वभौमिक अभिगम पर केंद्रित है।
- प्रारंभिक बाल शिक्षा: 10+2 संरचना 5+3+3+4 प्रणाली में स्थानांतरित हो जाएगी, जिसमें 3-6 वर्ष के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाया जाएगा, जिसमें प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education– ECCE) पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- बहुभाषावाद: कक्षा 5 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी, जिसमें संस्कृत और अन्य भाषाओं के विकल्प भी होंगे।
- भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को मानकीकृत किया जाएगा।
- समावेशी शिक्षा: सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) को विशेष प्रोत्साहन, विकलांग बच्चों के लिए सहायता और “बाल भवन” की स्थापना।
- बाधाओं का उन्मूलन: इस नीति का लक्ष्य कला एवं विज्ञान, पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों तथा व्यावसायिक व शैक्षणिक धाराओं के बीच सख्त सीमाओं के बिना एक निर्बाध शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना है।
- GER वृद्धि: वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 26.3% से बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ना है।
- अनुसंधान फोकस: अनुसंधान संस्कृति और क्षमता को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का निर्माण।
- भाषा संरक्षण: अनुवाद और व्याख्या संस्थान (IITI) सहित भारतीय भाषाओं के लिये समर्थन एवं भाषा विभागों को मज़बूत करना।
- अंतर्राष्ट्रीयकरण: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सुविधा और शीर्ष क्रम वाले विदेशी विश्वविद्यालयों का आगमन।
- फंडिंग: शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक बढ़ाने के लिए संयुक्त प्रयास।
- परख मूल्यांकन केंद्र: राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र के रूप में परख (समग्र विकास के लिये प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) की स्थापना शिक्षा में योग्यता को आधार बनाने तथा समग्र मूल्यांकन करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- लिंग समावेशन निधि: यह नीति एक लिंग समावेशन निधि की शुरुआत करती है, जो शिक्षा में लैंगिक समानता के महत्त्व पर ज़ोर देती है और वंचित समूहों को सशक्त बनाने की पहल का समर्थन करती है।
- विशेष शिक्षा क्षेत्र: वंचित क्षेत्रों और समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विशेष शिक्षा क्षेत्रों की कल्पना की गई है, जो सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच की नीति की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हैं।
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