भारत में नीली अर्थव्यवस्था का क्या महत्त्व है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय प्रधानमंत्री ने मुंबई में ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट 2023 का उद्घाटन करते हुए भारतीय समुद्री नीली अर्थव्यवस्था के लिये दीर्घकालिक प्रारूप ‘अमृत काल विज़न 2047‘ का अनावरण किया।
- इसमें उन्नत मेगा पोर्ट, एक इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट, द्वीप विकास, विस्तारित अंतर्देशीय जलमार्ग एवं कुशल व्यापार के लिये मल्टी-मॉडल हब जैसी पहल शामिल हैं।
- प्रधानमंत्री ने समुद्री क्षेत्र के लिये सरकार के दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला, जो ‘समृद्धि के लिये बंदरगाह एवं प्रगति के लिये बंदरगाह‘ वाक्यांश में समाहित है।
ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट 2023
- परिचय:
- ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट (GMIS) 2023 एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य वैश्विक एवं क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने और निवेश की सुविधा प्रदान करके भारतीय समुद्री अर्थव्यवस्था/मैरीटाइम इकोनॉमी को आगे बढ़ाना है।
- यह उद्योग से जुड़े प्रमुख मुद्दों को संबोधित करने और क्षेत्र को आगे लाने के लिये विचारों का आदान-प्रदान करने हेतु भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री समुदाय की एक वार्षिक बैठक है।
- ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट (GMIS) 2023 एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य वैश्विक एवं क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने और निवेश की सुविधा प्रदान करके भारतीय समुद्री अर्थव्यवस्था/मैरीटाइम इकोनॉमी को आगे बढ़ाना है।
- आयोजनकर्त्ता:
- पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय
- भारतीय पत्तन संघ
- भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI)
नीली अर्थव्यवस्था:
- परिचय:
- ” विश्व बैंक के अनुसार, नीली अर्थव्यवस्था “समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के लिये समुद्री संसाधनों का संधारणीय उपयोग है।”
- नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व:
- खाद्य सुरक्षा: मत्स्यपालन और जलीय कृषि नीली अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं, जो विश्व के प्रोटीन स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं। वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये इन क्षेत्रों में धारणीय प्रथाएँ आवश्यक हैं।
- पर्यावरण संरक्षण: ज़िम्मेदार संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देकर, नीली अर्थव्यवस्था सागरीय जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण का समर्थन करती है।
- स्वस्थ महासागर जलवायु विनियमन और कार्बन पृथक्करण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- पर्यटन और मनोरंजन: तटीय और समुद्री पर्यटन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- नीली अर्थव्यवस्था पर्यटन और मनोरंजन के अवसरों को बढ़ाती है, तटीय क्षेत्रों में पर्यटकों को आकर्षित करती है और संरक्षण के लिये जागरूकता को बढ़ावा देती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा: यह अपतटीय पवन, ज्वारीय और तरंग ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास को प्रोत्साहित करती है, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करती है और जलवायु परिवर्तन को कम करती है।
- परिवहन और व्यापार: समुद्री नौवहन वैश्विक व्यापार के लिये एक जीवन रेखा है। कुशल और टिकाऊ समुद्री परिवहन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
नोट: भारत में 7500 किमी. लंबी तटरेखा है, साथ ही इसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) 2.2 मिलियन वर्ग किमी. तक विस्तृत हैं। इसके अतिरिक्त भारत 12 प्रमुख बंदरगाहों तथा 200 से अधिक अन्य बंदरगाहों एवं 30 शिपयार्ड और विविध समुद्री सेवा प्रदाताओं का एक व्यापक केंद्र है। इसका अर्थ है कि भारत में स्वस्थ नीली अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनने की अत्यधिक संभावनाएँ हैं।
भारत में नीली अर्थव्यवस्था से संबंधित चुनौतियाँ:
- असंबद्ध मत्स्यपालन क्षेत्र: भारतीय मत्स्य उद्योग अत्यधिक विखंडित है, जिसमें मुख्य रूप से छोटे मछुआरे शामिल हैं जिनके पास ऋण तथा आधुनिक तकनीक तक पहुँच नहीं है, जो उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा उत्पन्न करता है।
- इसके अतिरिक्त विनियमन की कमी के कारण अत्यधिक मछली पकड़ने से उद्योग की स्थिरता को और अधिक खतरा उत्पन्न होता है।
- जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाएँ: जलवायु परिवर्तन समुद्र के स्तर में वृद्धि, समुद्र की अम्लता में वृद्धि के साथ ही चरम मौसमी घटनाओं के माध्यम से नीली अर्थव्यवस्था के लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
- दीर्घकालिक स्थिरता के लिये इन प्रभावों के लिये तैयारी करना और इन्हें कम करना आवश्यक है।
- अपशिष्ट एवं प्रदूषण: समुद्री कचरा, रासायनिक प्रदूषकों तथा अनुपचारित सीवेज सहित प्रदूषण, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिये खतरा है।
- तेल रिसाव में गैर-देशी, आक्रामक प्रजातियों को शामिल करके समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को असंतुलित करने की क्षमता होती है, साथ ही यह देशी प्रजातियों एवं अर्थव्यवस्थाओं को हानि भी पहुँचता है।
- बंदरगाहों में भीड़: कई भारतीय बंदरगाह अपर्याप्त रखरखाव बुनियादी ढाँचे, अकुशल संचालन के साथ अधिक कार्गो संख्या के चलते भीड़भाड़ का अनुभव करते हैं, जिससे देरी होती है एवं लागत में वृद्धि होती है।
नीली अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें:
- डीप ओशन मिशन
- सागरमाला परियोजना
- O-स्मार्ट
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन
- नाविक (NavIC)
आगे की राह
- नीति सुधार और विनियमन: नीली अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के लिये एक व्यापक और स्थिर नियामक ढाँचा विकसित करना, विखंडन एवं विसंगतियों को संबोधित करना तथा प्रभावी प्रवर्तन व प्रोत्साहन के माध्यम से ज़िम्मेदार और धारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
- बंदरगाहों में कार्गो निकासी में तेज़ी लाने के लिये सीमा शुल्क और दस्तावेज़ीकरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: बढ़ती कार्गो मात्रा को कुशलतापूर्वक समायोजित करने के लिये बर्थ, टर्मिनल और उपकरण सहित बंदरगाह बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण और विस्तार में निवेश करना।
- भीतरी इलाकों से माल की निर्बाध आवाजाही के लिये बंदरगाहों तक सड़क और रेल कनेक्टिविटी में सुधार करना।
- सतत् मत्स्यपालन: अत्यधिक मछली पकड़ने और पर्यावरणीय क्षरण को संबोधित करते हुए शिक्षा, प्रोत्साहन और विनियमन के माध्यम से मत्स्यन तथा जलीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना।
- समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिये सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपाय और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू करना।
- निवेश और वित्तपोषण: सार्वजनिक-निजी भागीदारी, प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से नीली अर्थव्यवस्था क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना।
- नीली अर्थव्यवस्था में छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SME) के विकास को बढ़ावा देने के लिये उन्हें ऋण और वित्त तक पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
- जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ाना: जहाज़ निर्माण और मरम्मत में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये भारत को उन्नत सामग्रियों एवं हरित प्रौद्योगिकियों पर विशेष ध्यान देने के साथ निजी क्षेत्र के सहयोग से अनुसंधान तथा विकास केंद्र स्थापित करना चाहिये।
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