भारत के लिये समुद्री सुरक्षा का क्या महत्त्व है?

भारत के लिये समुद्री सुरक्षा का क्या महत्त्व है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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चार्ल्स डार्विन के अनुसार, बदलते परिवेश के साथ अनुकूलन और समायोजन करने की क्षमता मानव अस्तित्व एवं प्रगति की कुंजी है। उनका मानना था कि सबसे मज़बूत या सबसे बुद्धिमान प्रजाति अस्तित्व नहीं बनाए रखती, बल्कि वह प्रजाति अपना अस्तित्व बनाए रखती है जिसमें प्रत्यास्थ और अनुकूल बनने की क्षमता होती है। प्रत्यास्थ अनुकूलनशीलता (resilient adaptability) की यह धारणा समय के इतिहास में सत्य सिद्ध हुई है और यह समुद्री क्षेत्र के मामले में विशेष रूप से प्रासंगिक है जहाँ उभरती हुई चुनौतियों से निपटने के लिये एक लचीले दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

  • भारत 7000 किमी से अधिक लंबी तटरेखा रखता है जो इसे समुद्री डकैती या पाइरेसी, आतंकवाद, तस्करी, अवैध मत्स्यग्रहण (illegal fishing) और पर्यावरणीय क्षरण जैसे विभिन्न खतरों के प्रति संवेदनशील बनाता है। भारत को अपनी तटीय और अपतटीय आस्तियों—जैसे तेल एवं गैस प्रतिष्ठानों, मत्स्यग्रहण क्षेत्रों और बंदरगाहों को इन खतरों से बचाने की ज़रूरत है।
  • भारत की अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से समुद्री क्षेत्र पर निर्भर करती है, जहाँ इसका 70% से अधिक व्यापार मूल्य और लगभग 95% व्यापार समुद्र के माध्यम से संपन्न होता है। भारत अपनी अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं का आयात भी समुद्री क्षेत्र से, विशेषकर खाड़ी क्षेत्र से करता है।
    • इस परिदृश्य में, भारत को हिंद महासागर में और उससे आगे के क्षेत्रों में संचार के समुद्री मार्गों (Sea Lanes of Communication- SLOCs) की सुरक्षा एवं नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जो इसके आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region- IOR) में रणनीतिक हित रखता है, जो इसके कई मित्रवत एवं सहयोगी देशों के साथ-साथ कुछ संभावित शत्रुओं का भी क्रीड़ा क्षेत्र है।
    • भारत IOR में कई देशों के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्रवासी संबंध रखता है और उनके विकास एवं सुरक्षा में निवेश भी करता है।

समुद्री क्षेत्र में विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • कठिन सुरक्षा चुनौतियाँ:
    • असममित रणनीति (Asymmetrical Tactics): असममित रणनीति का उपयोग—जैसा कि काला सागर में रूस के विरुद्ध यूक्रेन की कार्रवाइयों या दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा समुद्री मिलिशिया की तैनाती में देखा गया, समुद्री सुरक्षा के लिये एक नया आयाम पेश करता है। इसमें ऐसे अपरंपरागत और अप्रत्याशित तरीके शामिल हैं जो पारंपरिक सैन्य रणनीतियों का पालन नहीं भी कर सकते हैं।
    • ‘ग्रे-ज़ोन वारफेयर’ (Grey-Zone Warfare): ग्रे-ज़ोन रणनीति का उपयोग, जो परंपरागत और अपरंपरागत तरीकों के बीच आता है, प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में चुनौतियाँ पेश करता है क्योंकि ये रणनीतियाँ प्रायः विधिक एवं नीतिगत अस्पष्टताओं का लाभ उठाती हैं।
      • इस तरह की रणनीतियों में गुप्त अभियान (covert operations) और खुले संघर्ष की सीमा से नीचे की कार्रवाइयाँ शामिल हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों द्वारा SEZ का उल्लंघन।
    • लड़ाकू ड्रोन: लड़ाकू ड्रोन (combat drones) का उपयोग समुद्री अभियानों में एक नया आयाम जोड़ता है, जो राज्यों और गैर-राज्य अभिकर्ताओं को टोही अभियान, निगरानी और संभावित रूप से हमला करने में सक्षम बनाता है।
    • लैंड अटैक मिसाइल: समुद्री क्षेत्र में भूमि पर हमला करने में सक्षम मिसाइलों (Land Attack Missiles- LAM) की तैनाती समुद्री सुरक्षा के लिये प्रत्यक्ष खतरा पैदा करती है। इसमें उन मिसाइलों का उपयोग शामिल है जो समुद्री मंचों से भूमि-आधारित प्रतिष्ठानों को लक्षित कर सकती हैं और ये समुद्र-आधारित खतरों की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देती हैं।
  • अपरंपरागत सुरक्षा खतरे:
    • अवैध मत्स्यग्रहण (Illegal Fishing): अवैध मत्स्यग्रहण गतिविधियों से समुद्री सुरक्षा को खतरा पहुँचता है, जो समुद्री संसाधनों को कम कर सकता है और तटवर्ती समुदायों की आजीविका को नुकसान पहुँचा सकता है। उदाहरण के लिये श्रीलंकाई मछुआरों द्वारा भारतीय जल में मछली पकड़ना।
    • प्राकृतिक आपदाएँ: समुद्री क्षेत्र में चक्रवात और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता समुद्री सुरक्षा और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रयासों के लिये उल्लेखनीय चुनौतियाँ पैदा करती हैं।
    • समुद्री प्रदूषण: प्रदूषण (तेल रिसाव और प्लास्टिक अपशिष्ट सहित) समुद्री क्षेत्र के लिये पर्यावरणीय और आर्थिक खतरा उत्पन करता है।
    • मानव और मादक पदार्थों की तस्करी: मानव और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियाँ, जो प्रायः समुद्री मार्गों के माध्यम से की जाती हैं, समुद्री क्षेत्र में असुरक्षा की स्थिति में योगदान करती हैं।
    • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: समुद्र का बढ़ता जल स्तर, जलवायु परिवर्तन और संबंधित प्रभाव अल्पविकसित देशों को असंगत रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे वे पर्यावरणीय बदलावों और चरम मौसमी घटनाओं (extreme weather events) के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ज़ीरो-सम प्रतिस्पर्द्धा: हिंद-प्रशांत में शक्तिशाली देशों के बीच कथित शून्य-संचय या ज़ीरो-सम (Zero-Sum) प्रतिस्पर्द्धा को विशेष रूप से विकासशील विश्व के लिये एक खतरे के रूप में चिह्नित किया जाता है। यह प्रतिस्पर्द्धा एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र के तटीय देशों की सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करने से ध्यान एवं संसाधनों के विचलन की स्थिति उत्पन्न कर सकती है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शून्य-संचय प्रतिस्पर्द्धा (Zero-sum competition in the Indo-Pacific) शब्दावली इस विचार को संदर्भित करती है कि इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के हित एवं कार्य परस्पर अनन्य एवं असंगत हैं और एक पक्ष के लिये कोई भी लाभ दूसरे के लिये हानि की स्थिति है।
      • यह दृष्टिकोण मानता है कि हिंद-प्रशांत एक शून्य-संचय खेल (zero-sum game) है, जहाँ दो शक्तियाँ प्रभाव, संसाधन और सुरक्षा के लिये प्रतिद्वंद्विता में संलग्न हैं।
  • समुद्री प्रशासन से संबद्ध चुनौतियाँ:
    • समन्वय की कमी: एशिया और अफ्रीका के तटवर्ती देशो को समुद्री खतरों से निपटने के लिये अपने प्रयासों में समन्वय स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। असमान कानून-प्रवर्तन क्षमताएँ और अलग-अलग सुरक्षा प्राथमिकताएँ प्रभावशील सहयोग में बाधा उत्पन्न करती हैं। उदाहरण के लिये, आसियान (ASEAN) देश प्रायः दक्षिण चीन सागर में चीन की आधिपत्यवादी कार्रवाइयों का विरोध करने में अनिच्छा प्रकट करते हैं।
    • सहयोग करने में अनिच्छा: कुछ तटवर्ती राज्य बाह्य सहायता पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से विदेशी एजेंसियों के साथ समुद्री सहयोग का विरोध करते हैं। यह अनिच्छा व्यापक और समन्वित सुरक्षा उपायों के विकास में बाधा बन सकती है।
    • सूचना साझेदारी संबंधी चुनौतियाँ: हालाँकि सूचना साझेदारी की इच्छा नज़र आती है, लेकिन इस सहयोग की अपनी सीमाएँ हैं जहाँ विभिन राज्य प्रायः साझा सुरक्षा लक्ष्यों के लिये आवश्यक न्यूनतम सूचना ही साझा करते हैं। उदाहरण के लिये, भले ही भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने सूचना साझेदारी पर कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, लेकिन अभी भी सुरक्षा एवं संप्रभुता संबंधी चिंताओं के कारण व्यापक रूप से से सूचना साझेदारी की अनिच्छा रखते हैं।

समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिये भारत द्वारा कौन-सी पहलें की गई हैं?

  • समुद्री सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता बढ़ाना: इसमें देश के समुद्री क्षेत्रों की निगरानी एवं गश्त के लिये अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारतीय नौसेनातट रक्षक एवं समुद्री पुलिस का आधुनिकीकरण और विस्तार करना शामिल है।
    • इसके तहत विमान वाहक, पनडुब्बी, फ्रिगेट, हेलीकॉप्टर, रडार एवं उपग्रह जैसे उन्नत प्लेटफॉर्मों, प्रणालियों एवं उपकरणों का अधिग्रहण करना भी शामिल है।
  • तटीय एवं अपतटीय क्षेत्रों की उन्नत प्रौद्योगिकीय निगरानी: इसमें तटीय निगरानी नेटवर्क (Coastal Surveillance Network), नेशनल कमांड कंट्रोल कम्युनिकेशन एंड इंटेलिजेंस नेटवर्कराष्ट्रीय स्वचालित पहचान प्रणाली (National Automatic Identification System) और राष्ट्रीय समुद्री डोमेन जागरूकता परियोजना (National Maritime Domain Awareness Project) जैसी विभिन्न परियोजनाओं एवं योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है।
    • इनका उद्देश्य समुद्री क्षेत्र की एक व्यापक एवं एकीकृत तस्वीर प्रदान करना और किसी भी खतरे या घटना का समय पर पता लगाने तथा प्रतिक्रिया देने में सक्षमता प्राप्त करना है।
  • इंटर-एजेंसी समन्वय के लिये तंत्र की स्थापना करना: इसमें समुद्री और तटीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये राष्ट्रीय समिति (National Committee for Strengthening Maritime and Coastal Security), राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक (National Maritime Security Coordinator), संयुक्त संचालन केंद्र (Joint Operations Centres) और तटीय सुरक्षा संचालन केंद्र (Coastal Security Operations Centres) जैसे विभिन्न निकायों एवं समितियों का गठन करना शामिल है।
    • इनका उद्देश्य नौसेना, तट रक्षक, सीमा शुल्क विभाग, मात्स्यिकी और बंदरगाहों जैसे समुद्री सुरक्षा में शामिल विभिन्न हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय एवं सूचना साझेदारी की सुविधा प्रदान करना है।
  • मछुआरों और तटवर्ती समुदायों का एकीकरण: इसमें बायोमीट्रिक पहचान पत्र जारी करना, ट्रांसपोंडर एवं संकट चेतावनी ट्रांसमीटरों की स्थापना, सामुदायिक जागरूकता एवं शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन और आजीविका एवं कल्याण योजनाओं के प्रावधान जैसे विभिन्न उपायों का कार्यान्वयन शामिल है।
    • इनका उद्देश्य मछुआरों और तटवर्ती समुदायों को समुद्री सुरक्षा ढाँचे में शामिल करना तथा उनकी सुरक्षा एवं कल्याण को बढ़ाना है।
  • क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (Security and Growth for All in the Region- SAGAR)
  • हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium- IONS)
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association- IORA)

चुनौतियों को दूर करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (Quadrilateral Security Dialogue- QUAD), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और आसियान क्षेत्रीय फोरम (ASEAN Regional Forum- ARF) जैसे द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय या बहुपक्षीय तंत्र के माध्यम से समान विचारधारा वाले देशों के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग को बेहतर बनाना।
    • इस तरह के सहयोग में सूचना साझेदारी, संयुक्त अभ्यास, क्षमता निर्माण, अंतरसंचालनीयता (interoperability) और साझा खतरों के प्रति प्रतिक्रियाओं का समन्वयन शामिल हो सकता है।
  • समुद्री क्षेत्र के लिये एक साझा आचार संहिता या मानदंडों एवं नियमों का एक समूह विकसित करना जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) पर आधारित हो।
    • ऐसी आचार संहिता विवादों को रोकने या प्रबंधित करने, तनाव कम करने और समुद्री शक्तियों के बीच विश्वास निर्माण उपायों को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
  • तट रक्षकों और अन्य समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका एवं क्षमता को सुदृढ़ करना, क्योंकि वे समुद्री डकैती, तस्करी, मानव तस्करी और प्रदूषण जैसे गैर-पारंपरिक खतरों के प्रति प्रायः प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता होते हैं।
    • वे समुद्री क्षेत्र संबंधी जागरूकता को बढ़ाने, तटीय देशों की संप्रभुता एवं अधिकारों की रक्षा करने और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत प्रदान करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • सतत् विकास, क्षेत्रीय एकीकरण और बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से गरीबी, असमानता, भ्रष्टाचार, शासन और जलवायु परिवर्तन जैसे गैर-पारंपरिक खतरों के मूल कारणों एवं प्रेरकों को संबोधित करना। ये तटीय समुदायों की आजीविका, प्रत्यास्थता एवं सुरक्षा में सुधार करने और आपराधिक गतिविधियों के लिये प्रोत्साहन एवं अवसरों को कम करने में मदद कर सकते हैं।

भारत समुद्री सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध है और इसने उभरते परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिये SAGAR और IONS जैसी पहलें की है। भारत का क्षमता निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग न केवल इसकी तटरेखा की रक्षा करता है बल्कि वैश्विक समुद्री स्थिरता में भी योगदान देता है। सुरक्षित समुद्र का दृष्टिकोण भारत को एक ऐसे भविष्य की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करता है जो प्रत्यास्थता, अनुकूलनशीलता और सहयोग को महत्त्व देता है।

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