पुलिस महानिदेशकों के 58वाँ अखिल भारतीय सम्मेलन का क्या सन्देश है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत के प्रधानमंत्री ने जयपुर, राजस्थान में पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षकों के 58वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाग लिया।
- यह तीन दिवसीय कार्यक्रम था जिसे हाइब्रिड मोड में पुलिस महानिदेशक (DGP), पुलिस महानिरीक्षक (IGP) तथा केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुखों के साथ आयोजित किया गया था।
- आयोजित सम्मेलन में साइबर अपराध, पुलिस व्यवस्था में प्रौद्योगिकी, आतंकवाद-रोधी चुनौतियाँ, वामपंथी उग्रवाद तथा जेल सुधार एवं आंतरिक सुरक्षा मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया।
- सम्मेलन का एक अन्य प्रमुख एजेंडा नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के लिये रोड मैप पर विचार-विमर्श है।
प्रधानमंत्री के संबोधन से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?
- आपराधिक न्याय में आदर्श बदलाव:
- प्रधानमंत्री ने नए आपराधिक कानूनों के अधिनियमन द्वारा लाए गए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पर प्रकाश डाला तथा नागरिक गरिमा, अधिकारों एवं न्याय पर ध्यान केंद्रित करने वाली न्याय प्रणाली को प्राथमिकता देते हुए दंडात्मक उपायों के स्थान पर डेटा-संचालित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
- उन्होंने नए कानूनों के तहत महिलाओं तथा लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला और पुलिस से उनकी सुरक्षा एवं कभी भी, कहीं भी निडर होकर कार्य करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया।
- पुलिस की सकारात्मक छवि:
- उन्होंने सकारात्मक जानकारी तथा संदेशों के प्रसार के लिये ज़मीनी स्तर पर सोशल मीडिया के उपयोग का सुझाव देते हुए नागरिकों के बीच पुलिस के प्रति सकारात्मक धारणा को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
- इसके अतिरिक्त आपदा चेतावनी तथा राहत प्रयासों के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करने का सुझाव दिया गया।
- नागरिक-पुलिस संबंध:
- उन्होंने नागरिकों तथा पुलिस बल के बीच संबंधों को सशक्त करने के लिये खेल आयोजनों के आयोजन का समर्थन किया।
- उन्होंने सरकारी अधिकारियों को स्थानीय लोगों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने के लिये सीमावर्ती ग्रामों में रहने के लिये भी प्रोत्साहित किया।
- पुलिस बल में परिवर्तन:
- भारत की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय प्रमुखता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने भारतीय पुलिस से वर्ष 2047 तक देश के विकास को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ एक अत्याधुनिक, विश्व स्तरीय बल के रूप में विकसित होने के लिये प्रोत्साहित किया।
पुलिस बलों से सम्बंधित मुद्दे क्या हैं?
- हिरासत में होने वाली मृत्यु:
- हिरासत/अभिरक्षा में होने वाली मृत्यु का आशय पुलिस अथवा अन्य विधि प्रवर्तन अभिकरणों की हिरासत में हुई किसी व्यक्ति की मृत्यु से है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के अनुसार निरंतर तीन वर्षों में हिरासत में होने वाली मृत्यु की संख्या वर्ष 2017-18 में 146 से घटकर वर्ष 2020-21 में 100 हो गई जबकि वर्ष 2021-22 में इसकी संख्या में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई तथा यह 175 हो गई।
- हिरासत/अभिरक्षा में होने वाली मृत्यु का आशय पुलिस अथवा अन्य विधि प्रवर्तन अभिकरणों की हिरासत में हुई किसी व्यक्ति की मृत्यु से है।
- बल का अत्यधिक प्रयोग:
- पुलिस द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग की घटनाएँ सामने आई हैं, जिससे चोटें आईं और मौतें हुईं।
- उचित प्रशिक्षण और निरीक्षण का अभाव कुछ मामलों में बल के दुरुपयोग में योगदान देता है।
- एक पुलिस अधिकारी एक लोक सेवक है और इसलिये उससे अपने नागरिकों के साथ वैध तरीके से व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है।
- भ्रष्टाचार:
- रिश्वतखोरी और अन्य प्रकार के कदाचार सहित पुलिस बल के भीतर भ्रष्टाचार, जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है।
- उच्च-रैंकिंग के पुलिस अधिकारियों को कभी-कभी भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने के रूप में उजागर किया गया है और निचली-रैंकिंग के पुलिस अधिकारियों को रिश्वत लेने के रूप में भी उजागर किया गया है।
- उदाहरणार्थ: निषेध कानून प्रवर्तन।
- ये कानून शराब जैसे प्रतिबंधित पदार्थों की मांग को बढ़ाकर पुलिस भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
- बढ़ी हुई लाभप्रदता और कानून प्रवर्तन विवेक का संयोजन अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण में शामिल होने के लिये प्रेरित करता है।
- विश्वास के मुद्दे:
- पुलिस और समुदाय के बीच विश्वास की बहुत कमी है, जिससे सहयोग तथा सूचना साझाकरण प्रभावित हो रहा है।
- पुलिस कदाचार के हाई-प्रोफाइल मामले जनता में संदेह और अविश्वास को बढ़ावा देते हैं।
- पुलिस द्वारा न्यायेतर हत्या:
- आत्मरक्षा के नाम पर पुलिस द्वारा न्यायेतर हत्याओं के कई मामले सामने आए हैं, जिन्हें आमतौर पर ‘मुठभेड़’ के रूप में जाना जाता है।
- भारतीय कानून में ऐसा कोई रहस्यमय/अज्ञेय प्रावधान या कानून नहीं है जो मुठभेड़ में की गई हत्या को वैध बनाता हो। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में नीतिगत ज़्यादतियों/अतिरेक के उपयोग को सीमित कर दिया था।
- वर्ष 2020-2021 के दौरान एनकाउंटर के नाम पर 82 लोगों की हत्या की गई जो वर्ष 2021-2022 के दौरान बढ़कर 151 हो गई।
पुलिस सुधार के लिये क्या सिफारिशें हैं?
- पुलिस शिकायत प्राधिकरण:
- प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ, 2006 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के सभी राज्यों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करने का निर्देश दिया।
- पुलिस शिकायत प्राधिकरण पुलिस अधीक्षक से उच्च, नीचले स्तर के पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार के कदाचार से संबंधित मामलों की जाँच करने के लिये अधिकृत है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिसिंग/पुलिस व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये जाँच एवं कानून व्यवस्था कार्यों को अलग करने, राज्य सुरक्षा आयोग (State Security Commission- SSC) की स्थापना करने का भी निर्देश दिया, जिसमें नागरिक समाज के सदस्य होंगे और एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन किया जाएगा।
- प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ, 2006 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के सभी राज्यों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करने का निर्देश दिया।
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशें:
- भारत में राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1977-1981) ने कार्यात्मक स्वायत्तता और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल देते हुए पुलिस सुधारों के लिये सिफारिशें कीं।
- श्री रिबेरो समिति:
- पुलिस सुधारों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा करने और आयोग की सिफारिशों को लागू करने के तरीके सुझाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर वर्ष 1998 में श्री रिबेरो समिति का गठन किया गया था।
- रिबेरो समिति ने कुछ संशोधनों के साथ राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1978-82) की प्रमुख सिफारिशों का समर्थन किया।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार पर मलिमथ समिति:
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार पर वर्ष 2000 में वी.एस. की अध्यक्षता में मलिमथ समिति की स्थापना की गई। मलिमथ ने एक केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसी की स्थापना सहित 158 सिफारिशें कीं।
- मॉडल पुलिस अधिनियम:
- मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006 के अनुसार, प्रत्येक राज्य को सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, नागरिक समाज के सदस्यों, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों एवं दूसरे राज्य के सार्वजनिक प्रशासकों से बना एक प्राधिकरण स्थापित करना होगा।
- इसने पुलिस एजेंसी की कार्यात्मक स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित किया, व्यावसायिकता को प्रोत्साहित किया और प्रदर्शन एवं आचरण दोनों के लिये जवाबदेही को सर्वोपरि बनाया।
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