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सुरक्षा परिषद में सुधार की क्या आवश्यकता है? - श्रीनारद मीडिया

सुरक्षा परिषद में सुधार की क्या आवश्यकता है?

सुरक्षा परिषद में सुधार की क्या आवश्यकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council- UNSC) की स्थापना विश्व युद्ध काल में की गई थी। यह संगठन अपने पाँच स्थायी सदस्य देशों (P-5) को, जो उस काल के दौरान सर्वोच्च शक्तियों के रूप में उभरे थे, अत्यधिक और विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है। हालाँकि तत्कालीन वास्तविकताएँ वर्तमान समय के लिये पूर्णरूपेण अतुलनीय बन गई हैं।

लंबे समय से ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ की स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यता दोनों के विस्तार की मांग की जा रही है, ताकि इसे समकालीन वैश्विक परिस्थितियों का प्रतिनिधि बनाया जा सके।

लेकिन इस दिशा में सुरक्षा परिषद ने कोई भी उल्लेखनीय प्रगति नहीं की है। इसके मूल अस्तित्व के उद्देश्य को साकार कर सकने की इसकी क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।

इस संदर्भ में भारत—जो वर्तमान में UNSC की अपनी अस्थायी सदस्यता के दो वर्षों के कार्यकाल के दूसरे वर्ष में है, सुरक्षा परिषद में सुधार लाने की दिशा में एक बड़ी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और भारत

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विषय में: अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के अधिदेश के साथ कार्यरत ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को वैश्विक बहुपक्षीयता का केंद्र माना जाता है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र महासचिव (UN Secretary-General) का चयन करता है और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ) के न्यायाधीशों के चुनाव में संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ निकटस्थ भूमिका निभाता है।
      • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के अंतर्गत अंगीकार किये जाने वाले इसके सभी संकल्प सदस्य देशों के लिये बाध्यकारी होते हैं।
    • UNSC 15 सदस्यों से मिलकर बना है-  5 स्थायी और 10 अस्थायी।
      • पाँच स्थायी सदस्य: चीन, फ्राँँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
      • दस अस्थायी सदस्य: अस्थायी सदस्य देश महासभा द्वारा दो वर्ष के कार्यकाल हेतु चुने जाते हैं।
  • भारत की सदस्यता: भारत ने पूर्व में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में सात बार सेवा दी है और जनवरी 2021 में इसे आठवीं बार इसका सदस्य चुना गया है।
    • भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की मांग करता रहा है।

भारत का योगदान:

  • भारत ने वर्ष 1947-48 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) के निर्माण में सक्रिय भाग लिया था और दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध मुखरता से अपना पक्ष सामने रखा था।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पूर्व उपनिवेशों को शामिल किये जाने, मध्य-पूर्व में घातक संघर्षों को संबोधित करने और अफ्रीका में शांति बनाए रखने जैसे विभिन्न विषयों पर निर्णयन प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूमिका निभाता रहा है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र में, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के रखरखाव के लिये वृहत योगदान किया है।
    • भारत ने 43 शांति अभियानों (Peacekeeping Missions) में भाग लिया है, जिसमें 160,000 से अधिक सैनिकों और उल्लेखनीय संख्या में भारतीय पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है।
    • अगस्त 2017 तक की स्थिति के अनुसार भारत संयुक्त राष्ट्र में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्त्ता बना हुआ है।
  • भारत की जनसंख्या, क्षेत्रीय आकार, जीडीपी, आर्थिक क्षमता, सभ्यतागत विरासत, सांस्कृतिक विविधता, राजनीतिक व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में अतीत एवं वर्तमान में जारी योगदान को देखते हुए सुरक्षा परिषद ने भारत की स्थायी सदस्यता की मांग पूर्णतः तर्कसंगत नज़र आती है।

सुरक्षा परिषद के कार्यकलाप से संबद्ध समस्याएँ

  • बैठकों के रिकॉर्ड और टेक्स्ट की अनुपलब्धता:सुरक्षा परिषद में प्रगति की वर्तमान दर इसके अस्तित्व के उद्देश्य की पूर्ति कर सकने की क्षमता के संबंध में गंभीर प्रश्न उठाती है।
    • संयुक्त राष्ट्र के आम नियम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विचार-विमर्श प्रक्रिया पर लागू नहीं होते और बैठकों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
    • इसके अतिरिक्त,वार्ता, संशोधन या आपत्ति के लिये बैठक का कोई टेक्स्ट या पाठ उपलब्ध नहीं है।
      • ‘टेक्स्ट’ (Text) औपचारिक दस्तावेज़ के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जिसमें राजनयिक बैठकों में प्रस्ताव और विकल्प दर्ज किये जाते हैं।
  • सुरक्षा परिषद में ‘पावरप्ले’: वर्तमान प्रणाली के साथ मुख्य समस्या यह है कि कुछ देशों के अभिजात समूह द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधों की शासन क्षमता पर नियंत्रण कर लिया गया है।
    • UNSC के पाँच स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्तियों का उपभोग वर्तमान समय के अनुरूप ‘कालभ्रम’ (Anachronism) की स्थिति है।
      • निर्णय लेने की अभिजात संरचना वर्तमान वैश्विक सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
    • सुरक्षा परिषद अपने वर्तमान स्वरूप में मानव सुरक्षा और शांति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों और गतिशीलता को समझ सकने के लिये बाधाकारी हो गया है।
  • ‘P5’ के बीच मतभेद: संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के भीतर एक गहरे ध्रुवीकरण की स्थिति मौजूद है, इसलिये निर्णय या तो लिये नहीं जाते, या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।
    • P-5 देशों के बीच बार-बार उत्पन्न मतभेद प्रमुख निर्णयों को अवरुद्ध कर देते हैं।
    • इन समस्याओं को कोरोना वायरस महामारी के दौरान वैश्विक समुदाय द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के उदाहरण में देखा जा सकता है, जहाँ संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) संक्रमण के प्रसार से निपटने में देशों को सहयोग देने के मामले में कोई प्रभावी भूमिका निभा सकने में विफल रहे।
  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाला संगठन: सुरक्षा परिषद मुख्य रूप से अपनी अप्रतिनिधित्व प्रकृति के कारण ही विश्वसनीयता के साथ कार्य करने में असमर्थ रहा है।
    • भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे महत्त्वपूर्ण देशों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अनुपस्थिति चिंता का विषय है।
    • विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका से अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के मामले में मौजूदा अंतराल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को नियंत्रित कर सकने वाली वैश्विक संस्था के रूप में पंगु बना रहा है।

आगे की राह

  • सुरक्षा परिषद का लोकतंत्रीकरण: P5 और शेष विश्व के बीच शक्ति संबंधों में असंतुलन को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है।
    • UNSC को अधिक लोकतांत्रिक बनाना और इसे शासन के लिये अधिक वैधता प्रदान करना आवश्यक है , जहाँ यह सुनिश्चित हो कि अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और व्यवस्था के सिद्धांतों का वैश्विक स्तर पर सार्वभौमिक रूप से सम्मान किया जाता है।
  • UNSC का विस्तार: विश्व शांति और सुरक्षा के लिये वैश्विक शासन की मौजूदा आवश्यकताएँ अतीत की तुलना में व्यापक रूप से अलग हैं और इसलिये UNSC के शासन तंत्र में उल्लेखनीय सुधारों की आवश्यकता है।
    • स्थायी और अस्थायी सीटों में विस्तार के माध्यम से सुरक्षा परिषद में सुधार लाना अपरिहार्य है ताकि संयुक्त राष्ट्र का यह अंग अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के समक्ष दिनानुदिन उभरती नई और जटिल चुनौतियों को बेहतर तरीके से संबोधित कर सके।
  • न्यायसंगत प्रतिनिधित्व: UNSC में सभी भू-भागों का न्यायसंगत प्रतिनिधित्व राष्ट्रों पर इसकी शासी शक्ति और अधिकार के विकेंद्रीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • यह परिवर्तन सभी भू-भागों के राष्ट्रों को उनके देशों में शांति और लोकतांत्रिक स्थिरता को प्रभावित करने वाली चिंताओं को इस मंच के समक्ष उठा सकने का समान अवसर प्रदान करेगा।
    • UNSC की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का विकेंद्रीकरण एक अधिक प्रतिनिधिक और सहभागी निकाय के रूप में इसके परिवर्तन को सक्षम करेगा।
  • भारत की भूमिका- गैर-स्थायी सदस्यता का लाभ उठाना: वर्तमान में सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्यों में से एक के रूप में भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये प्रस्तावों की एक व्यापक शृंखला का मसौदा तैयार करने के साथ आगे कदम बढ़ा सकता है।
    • समान विचारधारा वाले देशों (जैसे G4: भारत, जर्मनी, जापान और ब्राज़ील) से अधिकाधिक संपर्क और पक्ष में अधिकाधिक देशों के समर्थन के साथ संयुक्त राष्ट्र आमसभा के समक्ष इस प्रस्ताव को रखा जा सकता है जहाँ मतदान में जीतने का वास्तविक अवसर उत्पन्न होगा।
    • भारत को ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) के अपने पारंपरिक भागीदारों के साथ, UNSC में इस भूभाग की शांति और सुरक्षा चिंताओं को व्यक्त करते हुए अपनी संलग्नताओं और संबंध को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है।
      • इस संदर्भ में, वैश्विक दक्षिण के दो उप-समूहों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

वर्ष 2022 भारत की UNSC की आठवीं अस्थायी सदस्यता का दूसरा और अंतिम वर्ष होगा। यह कार्यकाल विशेष रूप से तब सफल माना जाएगा, जब UNSC में सुधार के लिये एक अधिक सार्थक एवं यथार्थवादी प्रक्रिया की शुरुआत की जाए। एक उभरते हुए देश के प्रभाव और शक्ति का इससे बेहतर प्रदर्शन नहीं हो सकता।

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