बिहार में जातिवार जनगणना की क्या आवश्यकता है ?

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क्या झारखंड और तमिलनाडु राज्य की तरह यहां भी व्यवस्था लागू होगी?

क्या है नीतीश कुमार का गेमप्लान?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नीतीश सरकार 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है. नीतीश कुमार ने तय किया है कि 7 जनवरी से दो चरणों में कास्ट सेंसस(Caste-based census) कराया जाएगा। पहला चरण 21 जनवरी तक चलेगा।

जातिवार जनगणना की मांग इसलिए महत्वपूर्ण है कि अलग-अलग क्षेत्रों में ओवर-रीप्रेज़ेंटेड व अंडर-रीप्रेज़ेंटेड लोगों का एक हकीकी डेटा सामने आ सके जिनके आधार पर कल्याणकारी योजनाओं व संविधानसम्मत सकारात्मक सक्रियता की दिशा में तेज़ी से बढ़ा जा सके.

तर्क है की भारत की हर जाति के लोगों को गिना जाए. जब गाय-घोड़ा-गधा-कुत्ता-बिल्ली-भेड़-बकरी-मछली-पशु-पक्षी, सबकी गिनती होती है, तो इंसानों की क्यों नहीं? आखिर पता तो चले कि भीख मांगने वाले, रिक्शा खींचने वाले, ठेला लगाने वाले, फुटपाथ पर सोने वाले लोग किस समाज से आते हैं. उनके उत्थान के लिए सोचना वेलफेयर स्टेट की ज़िम्मेदारी है और इस भूमिका से वह मुंह नहीं चुरा सकता.

तमिलनाडु की जनसंख्या 7 करोड़ 20 लाख है,इसमें 68% ओबीसी 20.1% अनुसूचित जाति, 1.10% अनुसूचित जनजाति, 10.7% ऊंची जाति है। तमिलनाडु में धर्मवार प्रतिशत हिंदू 87.5%, 6.0% ईसाई, 5.86% मुस्लिम, एवं अन्य 0.5 % है। जबकि तमिलनाडु में आरक्षण 69% है। वहीं झारखंड में आरक्षण अनुसूचित जाति+ जनजाति+ पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग मिलाकर 67%है। अगर EWS के 10% आरक्षण को जोड़ दी जाए तो यह 77% हो जाती है।

बिहार में वर्तमान में आरक्षण अनुसूचित जाति 16%, अनुसूचित जनजाति 1%, दिव्यांग 3%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 18%, पिछड़ा वर्ग 12% और अनारक्षित 50% है ।आरक्षण में ही महिलाओं को 36.95% आरक्षण प्राप्त है।बिहार की जातीय संरचना देखें तो कुछ इस प्रकार है- कुर्मी (जिस जाति से नीतीश स्वयं आते हैं) 2-3 प्रतिशत हैं। बिहार की कुल ओबीसी जनसंख्या, बहरहाल, 45-48 प्रतिशत है जिनमें आर्थिक रूप से पिछड़े, यानी केवल ईबीसी 26 प्रतिशत हैं। पिछड़ी जातियों में कुशवाहा और कोयरी 5 प्रतिशत हैं, यादव 12 प्रतिशत हैं और मुसलमान 17 प्रतिशत हैं। सवर्णो में राजपूत 5-8 प्रतिशत होंगे, भूमिहार 5 प्रतिशत हैं, ब्राह्मण 4-5 प्रतिशत हैं और कायस्थ 1 प्रतिशत हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहते हैं कि जातिवार जनगणना कराई जाए, इसके बाद आंकड़े प्रस्तुत करके आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 75% तक ले जाया जा सकेगा। बिहार में जाति जनगणना के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं। पहले से ही देश भर में कई आन्दोलन व्यापक ओबीसी या एससी कोटा में सब-कोटा देने की मांग उठा रहे हैं। बिहार में दलित ‘दलित’ व ‘महादलित’ में विभाजित हैं.

समाज को जाति के विद्वेष से ग्रसित करने वाले यह भी जान लें कि कोई भी राज्य सरकार अपने स्तर पर जातिगत जनगणना करा भी लेता है तो उसका बहुत महत्व नहीं होगा क्योंकि केंद्र उसे नहीं मानेगा। इसका कारण यह भी है कि जनगणना कराने की जिम्मेदारी केंद्र की है राज्य सरकार की नहीं।

इसके पीछे सियासत का गणित यह है कि 1990 के दशक में मंडल आयोग के बाद ही लालू यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार की जेडीयू का उदय हुआ था।नीतीश कुमार जातिगत जनगणना से बिहार में आरक्षण की सीमा को बढ़ाना चाहते हैं और वह इस तरह की व्यवस्था पूरे भारतवर्ष में देखना चाहते हैं ताकि केंद्र के मोदी सरकार का वर्चस्व समाप्त हो। नीतीश कुमार का गेमप्लान है की बिहार के राजनीति व समाज पर सवर्ण वर्चस्व को समाप्त किया जाए।

जाति जनगणना में कर्नाटक मॉडल का जिक्र होता है जिसने जातिगत जनगणना कराई थी लेकिन उसका डाटा सामने नहीं आया। 2015 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जातीय जनगणना कराई थी, इस पर ₹162 खर्च हुए थे लेकिन वहां के लिंगायत और बोककालिंगा समुदाय की नाराजगी से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार की जातिगत जनगणना को अगले 7 जनवरी से अंजाम देने जा रही है जिस पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे,बिहार एक बार फिर से जातिगत द्वेष में झूलसेगा। समाज विभाजित होगा,तनाव होगा और इसका नुकसान बिहार को होगा।

क्या है सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC)?

  • SECC का आशय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक भारतीय परिवार की निम्नलिखित स्थितियों के बारे में पता करना है: 
    • आर्थिक स्थिति पता करना ताकि केंद्र और राज्य के अधिकारियों को वंचित वर्गों के क्रमचयी और संचयी संकेतकों की एक शृंखला प्राप्त करने तथा उन्हें इसमें शामिल करने की अनुमति दी जा सके, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकरण द्वारा एक गरीब या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिये किया जा सकता है। 
    • इसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति से उसका विशिष्ट जातिगत नाम पूछना है, जिससे सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने में आसानी हो कि कौन से जाति समूह आर्थिक रूप से सबसे खराब स्थिति में थे और कौन बेहतर थे। 
  • SECC में व्यापक स्तर पर ‘असमानताओं के मानचित्रण’ की जानकारी देने की क्षमता है। 
  • जाति आधारित जनगणना के माध्यम से ‘OBC आबादी के आकार के बारे में जानकारी  के अलावा OBC की आर्थिक स्थिति (घर के प्रकार, संपत्ति, व्यवसाय) के बारे में नीति संबंधी प्रासंगिक जानकारी, जनसांख्यिकीय जानकारी (लिंग अनुपात, मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा), शैक्षिक डेटा (पुरुष और महिला साक्षरता, स्कूल जाने वाली आबादी का अनुपात, संख्या) प्राप्त होगा। 
  • आरक्षण का प्रावधान नहीं बल्कि आरक्षण का दुरुपयोग हमारे समाज में विभाजन पैदा करता है।

 

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