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ममता सरकार के सामने नया संकट क्या है?

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संविधान के अनुच्छेद 167 का अनुपालन करने का अनुरोध

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आरजी कर घटना को लेकर बंगाल में ममता सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। इस बीच राज्यपाल डॉ सीवी आनंद बोस ने अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से संविधान के अनुच्छेद 167 (सी) का अनुपालन करने का अनुरोध किया है।

यह अनुच्छेद राज्यपाल को राज्य के प्रशासन और विधायी प्रस्तावों के संबंध में मंत्रिमंडल (कैबिनेट) के सभी निर्णयों के बारे में सूचित करने के लिए मुख्यमंत्री के कर्तव्यों को परिभाषित करता है। ममता बनर्जी को जवाहर सरकार ने आईना दिखाने की कोशिश की है, बशर्ते अब भी मुद्दे की बात उनको समझ में आ जाये. और ये मुद्दा वही है जिसकी वजह से अभिषेक बनर्जी भी खफा बताये जा रहे थे.

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजे इस्तीफे में कोलकाता रेप-मर्डर केस को हैंडल करने में उनके स्टैंड को गलत बताया है – ध्यान देने वाली बात ये है कि ममता बनर्जी ने खुद फोन करके जवाहर सरकार को मनाने की कोशिश की है, लेकिन वो टीएमसी छोड़ देने के अपने फैसले पर अडिग बताये जा रहे हैं. जवाहर सरकार का कहना है कि 11 सितंबर को दिल्ली जाकर वो अपना इस्तीफा राज्यसभा के उपसभापति को भी सौंप देंगे.

आज तक से बातचीत में जवाहर सरकार का कहना था, मैं करीब एक महीने तक एक अनुशासित सांसद की तरह सब कुछ देखता रहा, और शांत रहा… मुझे लगता है… हालात को संभालने में बहुत सारी गलतियां हो रही हैं, और अब ये मामला बहुत अधिक जटिल हो गया है… मैंने पार्टी नेतृत्व से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी.

जवाहर सरकार को ममता बनर्जी ने दिल्ली के मोर्चे पर लगाया था, और वो अपनी ड्यूटी भी पूरी शिद्दत से निभाते आ रहे थे, लेकिन लगता है कोलकाता रेप-मर्डर केस ने उनको भी अंदर से झकझोर कर रख दिया है. हो सकता है, ये उनके सियासी एहसास का भी हिस्सा हो – लेकिन ये सब ममता बनर्जी के लिए तो मुश्किलें बढ़ाने वाला ही है.

नौकरशाह से राज्यसभा सांसद बने जवाहर सरकार से ममता बनर्जी को ऐसी उम्मीद तो बिलकुल नहीं रही होगी, लेकिन उनके पत्र से तो लगता है कि ममता बनर्जी ने खुद उनकी उम्मीदें तोड़ डाली है. अपने पत्र में जवाहर सरकार लिखते हैं कि उनको उम्मीद थी कि आरजी कर अस्पताल में हुई दरिंदगी को लेकर ममता बनर्जी फौरन कोई कड़ा कदम उठाएंगी.

जवाहर सरकार को लग रहा था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ‘पुरानी ममता बनर्जी’ की तरह ही कोलकाता रेप-मर्डर केस में एक्शन लेंगी, लेकिन एक तो कोई ठोस कदम उठाया भी नहीं, दूसरे जो भी कदम उठाये बहुत देर से उठाये गये.

जवाहर सरकार ने लिखा है, ‘आरजी कर अस्पताल में हुई भयानक घटना के बाद से पीड़ित हूं… और ममता बनर्जी की पुरानी शैली में आंदोलनकारी जूनियर डॉक्टर के साथ आपके सीधे हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहा था… लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’

संविधान के अनुच्छेद 167 का अनुपालन करने का अनुरोध

आरजी कर कांड को लेकर एक बार फिर नबान्न और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बन गयी है. रविवार को राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कैबिनेट की आपात बैठक बुलाने को कहा था. अब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से संविधान के अनुच्छेद 167 (सी) का अनुपालन करने का अनुरोध किया है. इससे पहले बांग्लादेश के हालात पर मुख्यमंत्री की टिप्पणी के बाद राज्यपाल ने संविधान के इस अनुच्छेद के मुताबिक राज्य से रिपोर्ट मांगी थी.

संविधान का अनुच्छेद 167 राज्यपाल को किसी भी निर्णय के बारे में सूचित करने में मुख्यमंत्री के कर्तव्यों को परिभाषित करता है. अनुच्छेद 167 के तहत मुख्यमंत्री राज्यपाल और राज्य मंत्रिमंडल के बीच संपर्क का कार्य करते हैं. किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री की यह जिम्मेदारी है कि वह राज्य के प्रशासन और विधायी प्रस्तावों के संबंध में मंत्रिमंडल के सभी निर्णयों के बारे में राज्यपाल को सूचित करे. इसके अलावा अगर राज्यपाल चाहें, तो किसी भी मामले पर विचार के लिए कैबिनेट को भेज सकता है, जिस पर मंत्री ने निर्णय तो ले लिया है, लेकिन कैबिनेट ने उस पर विचार नहीं किया है.

आरजी कर कांड को एक महीने हो गये हैं. जांच सीबीआइ कर रही है. इस बीच अपराजिता बिल विधानसभा में पारित किया गया. इसे राज्यपाल के पास भेजा गया. लेकिन राजभवन की ओर से बताया गया कि राज्यपाल इस बिल पर अपनी सहमति नहीं दे सकते, क्योंकि बिल के साथ कोई जरूरी तकनीकी रिपोर्ट नहीं है.

राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने विगत शुक्रवार को राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी. इसके बाद राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया. इसके बाद रविवार शाम को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से संपर्क कर तुरंत कैबिनेट बैठक बुलाने को कहा.

 

 

 

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