भारतीय निर्यात का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिये वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए निर्यात लक्ष्यों की घोषणा के साथ टारगेट रेंज अप्रोच अपनाने का निर्णय लिया है।
- वर्ष 2022-23 के दौरान वस्तु निर्यात में रिकॉर्ड 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करने के बावजूद भारत के आउटबाउंड शिपमेंट को वर्ष 2023-2024 की पहली तिमाही में कई प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
टारगेट रेंज अप्रोच:
- चार प्रमुख मापदंडों पर आधारित लक्ष्य:
- वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का समग्र लक्ष्य:
- भारत की नई विदेश व्यापार नीति, 2023 के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल निर्यात लक्ष्य हासिल करना है, जिसमें सेवाओं और वस्तुओं के निर्यात का योगदान एक ट्रिलियन डॉलर का होगा।
- चालू वर्ष के लक्ष्य निर्धारित करते समय इस दीर्घकालिक उद्देश्य पर विचार किया जाएगा।
- आयातक देशों का आयात-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात:
- लक्ष्य निर्धारण में उन देशों के सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में आयात को ध्यान में रखा जाएगा जो भारतीय वस्तुओं के आयातक हैं।
- यह अनुपात विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय उत्पादों की संभावित मांग के संबंध में जानकारी प्रदान करेगा।
- भारत का सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात अनुपात:
- देश की निर्यात क्षमता का आकलन करने के लिये भारत के निर्यात से GDP अनुपात का आकलन किया जाएगा।
- पिछले वर्षों की वृद्धि प्रवृत्ति:
- भारत के व्यापार प्रदर्शन को समझने और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारण पर विचार करने के लिये निर्यात में पिछले विकास रुझानों का विश्लेषण किया जाएगा।
- वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का समग्र लक्ष्य:
- लक्ष्य सीमा:
- वित्त वर्ष 2022-23 में निर्यात 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इस आँकड़े के आधार पर और 10% की रूढ़िवादी विकास दर (Conservative Growth Rate) मानते हुए व्यापार विशेषज्ञ निम्नलिखित संभावित लक्ष्य सीमा का सुझाव देते हैं:
- रेंज का निचला स्तर: 451 बिलियन अमेरिकी डॉलर (पिछले वर्ष के निर्यात से थोड़ा ऊपर)।
- रेंज का ऊपरी स्तर: 495 बिलियन अमेरिकी डॉलर (10% की वृद्धि दर मानकर)।
- वित्त वर्ष 2022-23 में निर्यात 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इस आँकड़े के आधार पर और 10% की रूढ़िवादी विकास दर (Conservative Growth Rate) मानते हुए व्यापार विशेषज्ञ निम्नलिखित संभावित लक्ष्य सीमा का सुझाव देते हैं:
- निगरानी तंत्र:
- वाणिज्य विभाग हर महीने निर्यात प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिये एक निश्चित संख्या का उपयोग करेगा, जो मध्य-मूल्य या औसत हो सकता है।
- यह निगरानी तंत्र प्रगति की समय पर जानकारी प्रदान करेगा और यदि ज़रूरी हो तो आवश्यक समायोजन करने में मदद करेगा।
भारतीय निर्यात का वर्तमान परिदृश्य:
- निर्यात प्रदर्शन:
- हाल के महीनों में माल निर्यात में मंदी की एक शृंखला देखी गई है, जून 2023 में 22% की गिरावट के साथ, 37 महीनों में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई।
- जून 2023 में 32.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात अक्तूबर 2022 के बाद सबसे कम था।
- निर्यात सेवाओं में भी मंदी देखी गई है, अमूर्त निर्यात से विदेशी मुद्रा आय 2023-24 की पहली तिमाही में केवल 5.2% बढ़कर 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जबकि पिछले वर्ष 2022-23 में लगभग 28% की वृद्धि हुई थी, जहाँ आय 325 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई थी।
- हाल के महीनों में माल निर्यात में मंदी की एक शृंखला देखी गई है, जून 2023 में 22% की गिरावट के साथ, 37 महीनों में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई।
- निर्यात को प्रभावित करने वाले कारक:
- वैश्विक तेल कीमतें:
- पहली तिमाही में पेट्रोलियम निर्यात में 33.2% की भारी गिरावट देखी गई, जो मुख्य रूप से वैश्विक तेल की कीमतों में कमी के कारण हुई।
- इसके अतिरिक्त रूसी तेल शिपमेंट पर मूल्य सीमा प्रतिबंधों ने भी मांग में कमी लाने में योगदान दिया है।
- बाह्य कारक:
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का 2023 में धीमी वैश्विक व्यापार वृद्धि का पूर्वानुमान भारत के निर्यात दृष्टिकोण को प्रभावित कर रहा है, जिससे अधिक सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता हो रही है।
- वैश्विक तेल कीमतें:
- सरकार का व्यापक लक्ष्य:
- नई विदेश व्यापार नीति के अनुसार, निर्यात के लिये भारत का व्यापक उद्देश्य वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करना है, जिसमें सेवाओं और वस्तुओं के निर्यात में प्रत्येक का योगदान एक ट्रिलियन डॉलर होगा।
भारत में निर्यात क्षेत्र की स्थिति:
- व्यापार की स्थिति:
- व्यापार घाटा, जो निर्यात और आयात के बीच का अंतर है, वर्ष 2022-23 में 39% से अधिक बढ़कर रिकॉर्ड 266.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2022-23 में व्यापारिक आयात में 16.51% की वृद्धि हुई, जबकि व्यापारिक निर्यात में 6.03% की वृद्धि हुई।
- हालाँकि कुल व्यापार घाटा वर्ष 2022-23 में 122 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि वर्ष 2022 में यह 83.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसे सेवाओं में व्यापार अधिशेष से समर्थन मिला।
- भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्र:
- इंजीनियरिंग वस्तुएँ: इसमें वित्त वर्ष 2012 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ 50% की वृद्धि दर्ज की गई।
- कृषि उत्पाद: महामारी के बीच भोजन की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये सरकार के दबाव में कृषि निर्यात में वृद्धि हुई । भारत 9.65 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का चावल निर्यात करता है, जो कृषि वस्तुओं में सबसे अधिक है।
- कपड़ा और परिधान: भारत का कपड़ा और परिधान निर्यात (हस्तशिल्प सहित) वित्त वर्ष 2012 में 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा, जो प्रत्येक वर्ष के आधार पर 41% की वृद्धि है।
- सरकार की मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीज़न एंड अपैरल (MITRA) पार्क जैसी योजनाएँ इस क्षेत्र को बढ़ावा दे रही हैं।
- फार्मास्यूटिकल्स और ड्रग्स: भारत मात्रा के हिसाब से दवाओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
- भारत अफ्रीका की जेनरिक दवा मांग का 50% से अधिक, अमेरिका में जेनेरिक मांग का लगभग 40% और UK में सभी दवाओं की 25% हिस्से की आपूर्ति करता है।
भारत में निर्यात क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- वित्त की उपलब्धता में चुनौतियाँ:
- निर्यातकों के लिये किफायती और समय पर वित्त उपलब्ध करना महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि अनेक भारतीय निर्यातकों को उच्च ब्याज दरों, संपार्श्विक आवश्यकताओं और वित्तीय संस्थानों से ऋण उपलब्धता की कमी के कारण वित्त प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है विशेष रूप से लघु और मध्यम उद्योगों (SME) के लिये।
- सीमित विविधीकरण:
- भारत का निर्यात इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स जैसे कुछ क्षेत्रों पर केंद्रित है जो इसे वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव तथा बाज़ार जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- निर्यात का सीमित विविधीकरण भारत के निर्यात क्षेत्र के लिये एक चुनौती है क्योंकि बदलती वैश्विक व्यापार गतिशीलता इसकी व्यापकता को सीमित कर सकती है।
- संरक्षणवाद और विवैश्वीकरण में वृद्धि:
- बाधित वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था (रूस-यूक्रेन युद्ध) और आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण के कारण विश्व भर के देश संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की ओर बढ़ रहे हैं जिससे भारत की निर्यात क्षमताएँ कम हो रही हैं।
निर्यात वृद्धि हेतु प्रमुख सरकारी पहल:
- निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना (TIES)
- पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (NMP)
- ड्यूटी ड्रॉ-बैक योजना
- निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर छूट योजना (RoDTEP)
- राज्य और केंद्रीय कर एवं लेवी में छूट
आगे की राह
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये बेहतर बुनियादी ढाँचा और लॉजिस्टिक्स महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत को परिवहन नेटवर्क, बंदरगाहों, सीमा शुल्क निकासी प्रक्रियाओं और निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढाँचे जैसे निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्रों तथा विशेष विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- निर्यातोन्मुख उद्योगों में कुशल श्रमिकों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु कौशल विकास कार्यक्रम लागू किये जाने चाहिये।
- इसके अतिरिक्त स्वचालन, डिजिटलीकरण और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों जैसी प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिये। साथ ही यह निर्यात क्षेत्र में उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार को भी बढ़ावा दे सकता है।
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