भारत में पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों पर क्या संकट है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केंद्रीय जल आयोग द्वारा जारी आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर बहने वाली कम से कम 13 नदियों में इस समय जल नहीं है।
भारत में पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों पर क्या संकट है?
- पूर्व की ओर प्रवाहित नदियों के बेसिन में जल संकट:
- महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर प्रवाहित कम से कम 13 नदियों में इस समय पानी नहीं है, जिनमें रुशिकुल्या, बाहुदा, वंशधारा, नागावली, सारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पलेरु व मुनेरु शामिल हैं।
- ये नदियाँ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों से होकर सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
- इस वर्ष बेसिन में भंडारण का स्तर लगातार घट रहा है, 21 मार्च को शून्य तक पहुँच गया, जबकि पिछले वर्ष इसी समय क्षमता का 32.28% थी।
- अन्य नदी बेसिनों में जल संकट:
- पेन्नार और कन्याकुमारी के बीच कावेरी, पेन्नार और पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों भी कम या अत्यधिक कमी वाले जल भंडारण का सामना करना पड़ सकता है।
- देश के सबसे बड़े बेसिन गंगा बेसिन में इसकी कुल क्षमता का आधे से भी कम जल भंडारण दर्ज किया गया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में कम है।
- नर्मदा, तापी, गोदावरी, महानदी और साबरमती नदी घाटियों में भी उनकी क्षमता के सापेक्ष भंडारण स्तर दर्ज किया गया है।
- राष्ट्रीय जल संकट:
- भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में उनकी कुल क्षमता का केवल 36% जल भंडारण है, जबकि कम से कम छह जलाशयों में कोई जल भंडारण नहीं है।
- गंगा बेसिन पर स्थित 11 राज्यों के लगभग 286,000 गाँवों में जल की उपलब्धता में गिरावट देखी जा रही है।
- कुल मिलाकर, देश का कम से कम 35.2% क्षेत्र असामान्य से असाधारण स्तर तक सूखे के अधीन है, 7.8% अत्यधिक सूखे की स्थिति में एवं 3.8% असाधारण सूखे के अधीन है।
- कर्नाटक तथा तेलंगाना जैसे राज्य वर्षा की कमी के कारण सूखे एवं सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।
केंद्रीय जल आयोग
- केंद्रीय जल आयोग जल संसाधनों के विकास के लिये देश का सर्वोच्च तकनीकी संगठन है और साथ ही यह जल संसाधन मंत्रालय से भी संबद्ध है।
- आयोग राज्य सरकारों के परामर्श से सिंचाई, बाढ़ प्रबंधन, विद्युत उत्पादन, नेविगेशन आदि के प्रयोजनों हेतु विश्व के जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण, विकास एवं उपयोग के लिये योजनाएँ शुरू करने, समन्वय करने और आगे बढ़ाने के लिये उत्तरदायी है।
पूर्व की ओर बहने वाली नदियों के सूखने के कारण क्या हैं?
- वनों की कटाई तथा मृदा अपरदन: नदी के किनारे एवं जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की कटाई से मृदा की जल को बनाए रखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है और साथ ही नदी का प्रवाह भी कम हो जाता है।
- जलवायु परिवर्तन: अनियमित वर्षा तथा ताप वृद्धि सहित बदलते मौसम के कारण नदियों का प्रवाह प्रभावित होता हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक सूखा पड़ सकता है, जिससे नदियों में जल का प्रवाह कम हो सकता है।
- बाँधों का निर्माण: बाँधों के निर्माण एवं सिंचाई प्रयोजनों हेतु जल प्रवाह में परिवर्तन से भी नदियों का बहाव कम हो गया है, जिससे नदी के प्राकृतिक प्रवाह प्रणाली एवं पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हुए हैं।
- औद्योगिक, कृषि और घरेलू कचरे के साथ-साथ जलकुंभी जैसी आक्रामक प्रजातियों से जल प्रदूषण एवं नदी के जल की गुणवत्ता खराब होती है, साथ ही जलीय जीवन एवं समग्र नदी स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।
- रेत खनन: नदी तल पर अनियंत्रित रेत खनन ने नदी के प्रवाह को बाधित कर दिया है और साथ ही इसे कटाव का कारण बना, जिससे नदी का अधिकांश भाग सूख जाते हैं।
- शहरीकरण और अतिक्रमण: शहरी विस्तार और नदी तटों पर अतिक्रमण ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बदल दिया है तथा नदी के लिये जल की उपलब्धता सीमित कर दी है।
- जागरूकता और संरक्षण प्रयासों का आभाव: नदी संरक्षण के महत्त्व के बारे में सीमित जागरूकता और प्रभावी संरक्षण उपायों का अभाव इन नदियों के सूखने में योगदान करते हैं।
नदियों के सूखने की समस्या के समाधान के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
- जल संरक्षण के उपाय: वर्षा जल संचयन, वाटरशेड प्रबंधन और मृदा की नमी संरक्षण जैसी जल संरक्षण तकनीकों को लागू करने से भूजल को फिर से भरने में सहायता मिल सकती है।
- इससे नदी के जल पर निर्भरता कम हो जाएगी, जिससे नदियों में जल का न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने में सहायता मिलेगी।
- कुशल सिंचाई पद्धतियाँ: किसानों को ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने से जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा जल संसाधनों का स्थायी उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
- वनीकरण और वनस्पति आवरण: वनीकरण और पुनर्वनीकरण के माध्यम से वनस्पति आवरण बढ़ाने से मृदा के कटाव को कम करके तथा भूजल पुनर्भरण को बढ़ाकर नदी के प्रवाह को बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- भूजल निष्कर्षण का विनियमन: भूजल निष्कर्षण पर कठोर नियम लागू करने से नदियों के आधार प्रवाह को बनाए रखने और उन्हें सूखने से रोकने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- नदियों को आपस में जोड़ना: जल-समृद्ध क्षेत्रों से अधिशेष जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिये नदियों को जोड़ने की व्यवहार्यता का पता लगाने से नदी के प्रवाह को बनाए रखने में सहायता मिल सकती है। उदाहरण के लिये केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना।
- सामुदायिक भागीदारी: जल प्रबंधन और संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से जल संसाधनों का सतत् उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है तथा नदी के प्रवाह को बनाए रखा जा सकता है।
- नीति सुधार: स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने और जल उपयोग को विनियमित करने के लिये नीतिगत सुधारों को लागू करने से नदियों के सूखने से निपटने में सहायता मिल सकती है।
- अनुसंधान और विकास: जल संरक्षण और प्रबंधन के लिये नई प्रौद्योगिकियों एवं प्रथाओं के अनुसंधान व विकास में निवेश करने से समस्या से निपटने के लिये नवीन समाधान खोजने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- कई नदी घाटियों में कुल भंडारण स्तर वर्तमान में पिछले पाँच वर्षों के औसत की तुलना में ‘सामान्य से बेहतर’ या ‘सामान्य’ बताया गया है, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि इन घाटियों के भीतर कुछ क्षेत्र गंभीर से अत्यधिक सूखे की स्थिति से जूझ रहे हैं।
- यह असमानता विशेष रूप से कृषि, आजीविका और प्रभावित क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे पर इसके प्रतिकूल प्रभावों के कारण चिंताजनक है।
- सूखे की इन स्थितियों के प्रभाव को कम करने तथा प्रभावित समुदायों के हित की रक्षा के लिये तत्काल और लक्षित हस्तक्षेप आवश्यक हैं।
- यह भी पढ़े…………
- भारत में मेडिकल शिक्षा में सुधार हेतु क्या हो रहा हैं?
- पत्रकारिता के अनेक नाम राजनीति में सफल रहे।
- दुबई में अचानक से हुई बारिश से बाढ़ क्यों आ गई?