संसद और राज्य विधानमंडलों में प्रश्न पूछना और प्रश्न उठाने की प्रक्रिया क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक संसद सदस्य (सांसद) से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और लोकसभा आचार समिति द्वारा ‘कैश फॉर क्वेरी’ आरोपों में उनकी कथित संलिप्तता को लेकर पूछताछ की गई है।

  • सदस्य ने किसी विशेष एजेंडे को आगे बढ़ाने या ऐसा करने के लिये मुआवज़ा प्राप्त करने के इरादे से लोकसभा में अपनी ओर से प्रश्न अपलोड करने के लिये एक व्यक्ति को अपने संसदीय लॉगिन और पासवर्ड का उपयोग करने की अनुमति दी थी।
  • इन आरोपों ने सांसदों के नैतिक आचरण और व्यक्तिगत लाभ के लिये उनके पदों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दीं।

संसद में प्रश्न उठाने की प्रक्रिया:

  • प्रक्रिया:
    • लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम: प्रश्न उठाने की प्रक्रिया “लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों” के नियम 32-54 तथा लोकसभा अध्यक्ष के निर्देशों के निर्देश 10-18 द्वारा शासित होती है।
      • प्रश्न पूछने के लिये एक सांसद को पहले निचले सदन के महासचिव को संबोधित करते हुए एक नोटिस देना होता है, जिसमें प्रश्न पूछने के अपने उद्देश्य की जानकारी देनी होती है।
      • नोटिस में आमतौर पर प्रश्न के टेक्स्ट, जिस मंत्री को प्रश्न संबोधित किया गया है उसका आधिकारिक पदनाम, वह तारीख जिस पर उत्तर वांछित है और प्रश्न के संदर्भ में प्राथमिकता का क्रम शामिल होता है जब सांसद एक ही दिन में प्रश्नों के कई नोटिस पेश करता है।
      • सांसद एक दिन में प्रश्नों की अधिकतम 5 सूचनाएँ (मौखिक और लिखित दोनों) जमा कर सकते हैं। इस सीमा से अधिक नोटिस पर उसी सत्र के अगले दिनों के लिये विचार किया जाता है।
    • नोटिस अवधि: आमतौर पर किसी प्रश्न के लिये नोटिस अवधि 15 दिनों से कम नहीं होती है।
      • सांसद अपने नोटिस या तो ऑनलाइन ‘सदस्य पोर्टल‘ के माध्यम से अथवा संसदीय सूचना कार्यालय से मुद्रित प्रपत्रों का उपयोग करके जमा कर सकते हैं।
      • लोकसभा अध्यक्ष उन प्राप्त नोटिसों की समीक्षा करते हैं एवं स्थापित नियमों के आधार पर उनकी स्वीकार्यता निर्धारित करते हैं।
  • प्रश्न की स्वीकार्यता के लिये शर्तें:
    • प्रश्न 150 शब्दों से अधिक नहीं होने चाहिये तथा तर्क, अनुमान अथवा मानहानिकारक कथन अथवा किसी व्यक्ति की शासकीय अथवा सार्वजनिक स्थिति के अतिरिक्त उसके चरित्र अथवा उच्चारण का उल्लेख करने से बचना चाहिये।
    • व्यापक नीतिगत मुद्दों के बारे में प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना व्यावहारिक नहीं है, इसलिये विशेष नीतिगत मुद्दों के बारे में प्रश्न स्वीकार्य नहीं हैं।
    • प्रश्न न्यायिक विचाराधीन अथवा संसदीय समितियों से जुड़े मामलों से संबंधित नहीं हो सकते। उन्हें ऐसी जानकारी मांगने से भी बचना चाहिये जो राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को कमज़ोर कर सकती हो

नोट:

राज्यसभा में प्रश्नों की स्वीकार्यता राज्य परिषद में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 47-50 द्वारा नियंत्रित होती है। विभिन्न मानदंडों के बीच प्रश्न “स्पष्ट, विशिष्ट एवं केवल एक मुद्दे तक ही सीमित होना चाहिये”

प्रश्नों की श्रेणियाँ:

  • तारांकित प्रश्न:
    • तारांकित प्रश्न एक सांसद द्वारा पूछा जाता है जिसका उत्तर प्रभारी मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है। प्रत्येक सांसद को प्रतिदिन एक तारांकित प्रश्न पूछने की अनुमति है। जब प्रश्‍न का उत्तर मौखिक होता है तो उस पर अनुपूरक प्रश्‍न पूछे जा सकते हैं।
  • अतारांकित प्रश्न:
    • अतारांकित प्रश्न वह होता है जिसका सदस्य लिखित उत्तर चाहता है और इसका उत्तर मंत्री द्वारा सभा पटल पर रखा गया माना जाता है। जिस पर कोई अनुपूरक प्रश्‍न नहीं पूछा जा सकता है।
  • अल्प सूचना प्रश्न:
    • इस प्रकार के प्रश्नों के अंतर्गत सार्वजनिक महत्त्व और अत्यावश्यक प्रकृति के मामलों पर विचार किया जाता है। ये दस दिनों से कम समय का नोटिस देकर पूछे जाते हैं और इनका मौखिक रूप से उत्तर दिया जाता हैं।
  • निजी सदस्यों द्वारा पूछा जाने वाला प्रश्न:
    • एक प्रश्न लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के नियम 40 के तहत या राज्यसभा के नियमों के नियम 48 के तहत एक निजी सदस्य को संबोधित किया जा सकता है, बशर्ते कि प्रश्न किसी विधेयक, संकल्प या अन्य मामले से जुड़े विषय से संबंधित हो जिसके लिये वह सदस्य ज़िम्मेदार है।

प्रश्न करने का महत्त्व:

  • संसदीय अधिकार:
    • प्रश्न पूछना सांसदों का एक अंतर्निहित और अप्रतिबंधित संसदीय अधिकार है, जो कार्यकारी कार्यों पर विधायी नियंत्रण के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
  • प्रश्न पूछने का अधिकार:
    • यह सांसदों को सरकारी गतिविधियों के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करने, नीतियों की आलोचना करने, सरकार की कमियों को उजागर करने और मंत्रियों को भलाई के लिये कदम उठाने की अनुमति देता है।
  • सरकार का दृष्टिकोण:
    • सरकार के लिये प्रश्न नीतियों और प्रशासन के संबंध में जनता की भावनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। वे संसदीय आयोगों के गठन, जाँच या कानून के अधिनियमन का नेतृत्व कर सकते हैं।

आगे की राह

  • संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत संसद में प्रश्न पूछना सदन के सदस्य का संवैधानिक अधिकार है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो संसद में प्रश्नकाल एक अलग स्तर पर होता है।
  • एक प्रकार से प्रत्येक प्रश्नकाल इस अर्थ में प्रचालन में प्रत्यक्ष प्रकार के लोकतंत्र की अभिव्यक्ति है कि लोगों का प्रतिनिधित्व शासन के मामलों पर सरकार से सीधे सवाल करना है और सरकार सदन में सवालों के जवाब देने के लिये बाध्य है।
  • संबंधित अधिकारियों को यह भी बताना चाहिये कि किसी प्रश्न को अस्वीकार क्यों किया जाना चाहिये। सदन के विशेषाधिकार के कारण सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) के माध्यम से भी इसका कारण नहीं पता किया जा सकता है और इसे न्यायालय में ले जाना भी कठिन है।
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