बिम्सटेक का क्या औचित्य है?
बिम्सटेक की स्थापना के पच्चीस साल पूरे हो गये हैं.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सात देशों- भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड और श्रीलंका- के समूह बिम्सटेक की स्थापना के पच्चीस साल पूरे हो गये हैं. इसके पांचवें शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार का आह्वान किया है. दो साल से अधिक समय से जारी महामारी, आपूर्ति शृंखला से संबंधित समस्याओं, रूस-यूक्रेन संकट समेत विभिन्न भू-राजनीतिक हलचलों की पृष्ठभूमि में इस आह्वान का महत्व बहुत बढ़ जाता है.
इस क्रम में वर्तमान शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक चार्टर को अपनाया जाना एक बड़ी पहल है. इससे यह संगठन वैश्विक मंचों पर अधिक प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने के साथ अन्य क्षेत्रीय समूहों से सहयोग बढ़ा सकेगा. समूह के सचिवालय के कामकाज को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने दस लाख डॉलर मुहैया कराने का वादा भी किया है. बिम्सटेक के तीन मूल संस्थापक देशों में एक होने के नाते भारत के लिए यह समूह हमेशा महत्वपूर्ण रहा है.
इस सम्मेलन को जहां प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया है, वहीं इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर श्रीलंका में हैं. बिम्सटेक देशों और इनसे जुड़े एशियाई क्षेत्रों के लिए अतिवाद और आतंकवाद लंबे समय से बड़ी चुनौती हैं तथा इनसे विकास कार्यों में बड़ा अवरोध उत्पन्न होता है. भारतीय विदेश मंत्री ने इन समस्याओं से जूझने पर जोर दिया है. इस सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच सड़क और समुद्र मार्ग से जुड़ाव बढ़ाना एक मुख्य मुद्दा है.
बीते कुछ वर्षों से पड़ोसियों को महत्व देने तथा पूर्व से व्यापार बढ़ाने के संकल्प के साथ भारत इन देशों से संपर्क मजबूत करने में लगा हुआ है. सदस्य देश आपस में भूमि और समुद्र से जुड़े हुए हैं. यदि आवागमन बेहतर होता है, तो वस्तुओं की ढुलाई सुगम होगी, इन देशों को एक-दूसरे के बाजारों तक पहुंचना आसान होगा तथा लोगों की आवाजाही बढ़ने से पर्यटन, शिक्षा, संस्कृति आदि क्षेत्रों में भी सहभागिता बढ़ेगी.
सामुद्रिक सहयोग से ये देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र से भी जुड़ सकेंगे. बिम्सटेक देशों का परस्पर सहकार बंगाल की खाड़ी को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक बड़े बिंदु के रूप में स्थापित कर सकता है, जो भारत के प्रयासों से पहले से ही एक सक्रिय क्षेत्र बन चुका है. ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में हो रहे तीव्र परिवर्तनों में बिम्सटेक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है.
श्रीलंका बिम्सटेक की स्थापना के रजत जयंती वर्ष में पांचवें शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए तैयारी कर रहा है. यह विशेष अवसर नेताओं के लिए सभी की सुरक्षा और विकास के लिए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में सहयोग की गति के निर्माण में अपनी प्रतिबद्धताओं और प्रयासों को सुदृढ़ करना अनिवार्य बनाता है.
शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मार्च को वर्चुअल मोड में शामिल होंगे. सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि उन्होंने सराहनीय टीम वर्क किया है तथा क्षेत्रीय रणनीतिक और आर्थिक एकीकरण बढ़ाने के लिए कई समझौतों को अंतिम रूप दिया है. बिम्सटेक की अनूठी पारिस्थितिकी को भारत से समृद्ध राजनीतिक समर्थन और प्रतिबद्धता मिलती दिख रही है.
भारत के लिए बिम्सटेक का विशेष महत्व है. भारत ने बंगाल की खाड़ी को भारत की ‘पड़ोसी पहले’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों का अभिन्न अंग बना दिया है, जिससे क्षेत्रीय एकीकरण की प्रक्रिया तेज हो सकती है.
बिम्सटेक चार्टर को अंतिम रूप देना, परिवहन संपर्क के लिए बिम्सटेक मास्टर प्लान, आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता पर बिम्सटेक कन्वेंशन, बिम्सटेक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा, राजनयिक अकादमियों/ प्रशिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग तथा बिम्सटेक केंद्रों/ संस्थाओं की भविष्य में स्थापना के लिए सहकार आशावाद के संकेत हैं
तथा एक नये आर्थिक और रणनीतिक स्थान के रूप में बंगाल की खाड़ी की वापसी को इंगित करते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार के फिर से उभरने के साथ बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और रणनीतिक महत्व भी बढ़ रहा है. पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों के बीच बढ़ते आर्थिक, भू-राजनीतिक और सुरक्षा संबंध एक साझा रणनीतिक स्थान बना रहे हैं. खाड़ी फिर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के केंद्र के रूप में विकसित हो रही है. नये सिरे से फोकस ने क्षेत्र में विकासात्मक प्रयासों, विशेष रूप से बिम्सटेक, को एक नया जीवन दिया है.
बिम्सटेक प्रक्रिया सदस्य देशों के बीच ठोस सहयोग को आगे बढ़ा कर स्पष्ट प्रगति करने के लिए तैयार है. तेजी से बदलते हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकास सहयोग के लिए एक प्राकृतिक मंच के रूप में बिम्सटेक के पास विशाल क्षमता है और बंगाल की खाड़ी क्षेत्र दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़नेवाले पुल के रूप में अपनी अनूठी स्थिति का लाभ उठा सकता है.
सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, खुफिया जानकारी साझा करने, साइबर सुरक्षा और तटीय सुरक्षा, परिवहन संपर्क और पर्यटन सहित कई क्षेत्रों में बिम्सटेक सहयोग में ठोस प्रगति हुई है. इसके बढ़ते महत्व और सदस्य देशों द्वारा सामूहिक प्रयासों के माध्यम से तालमेल उत्पन्न करने के इसके प्रयास को तीन प्रमुख कारणों से समझा जा सकता है. सबसे पहले, इस क्षेत्र में गहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भौगोलिक निकटता, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक और मानव संसाधन, समृद्ध ऐतिहासिक संबंध और सांस्कृतिक विरासत के कारण बिम्सटेक की क्षमता की अधिक सराहना हो रही है.
वास्तव में, एक बदले हुए आख्यान और दृष्टिकोण के साथ बंगाल की खाड़ी में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का केंद्र बनने की क्षमता है, एक ऐसा स्थान, जहां पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित प्रतिच्छेद करते हैं. बिम्सटेक को एक गतिशील और प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाने के लिए सभी सदस्य देशों से राजनीतिक समर्थन और उनकी मजबूत प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है.
दूसरा, बिम्सटेक एशिया के दो प्रमुख उच्च-विकास केंद्रों- दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक सेतु जैसा है. बंगाल की खाड़ी के शांतिपूर्ण, समृद्ध और टिकाऊ क्षेत्र को विकसित करने के लिए कनेक्टिविटी आवश्यक है. इसलिए बिम्सटेक को दो आयामों पर ध्यान देने की आवश्यकता है- क्षेत्रीय रोडमैप में राष्ट्रीय कनेक्टिविटी का उन्नयन और संयोजन तथा हार्ड और सॉफ्ट बुनियादी ढांचे का विकास.
बिम्सटेक मास्टर प्लान कनेक्टिविटी को आवश्यक बढ़ावा प्रदान करेगा. विभिन्न मंचों और सम्मेलनों के माध्यम से शैक्षणिक संस्थानों, उद्योगों और व्यापार मंडलों की बढ़ती भागीदारी है, जो शिक्षा, व्यापार और निवेश, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. बड़े-बड़े वादों के प्रलोभन से बचते हुए बिम्सटेक नेताओं ने समय पर एक ठोस कार्य योजना के माध्यम से प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है.
तीसरा, बिम्सटेक सचिवालय गतिविधियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का समन्वय, निगरानी और सुविधा प्रदान करता है. नेताओं को सचिवालय की संस्थागत क्षमता को मजबूत करने के लिए सहमत होना चाहिए. शिखर सम्मेलन के दौरान चार्टर की मंजूरी से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी दृश्यता और कद में और वृद्धि होगी.
इसी तरह, भारत ने बंगाल की खाड़ी में कला, संस्कृति और अन्य विषयों पर शोध के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में बंगाल की खाड़ी अध्ययन केंद्र स्थापित करने के अपने वादे को लागू किया है. सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग से आर्थिक विकास और समृद्धि को प्राप्त किया जा सकता है. इस प्रयास में बिम्सटेक ढांचे के तहत क्षेत्रीय सहयोग को तेज करने और इसे जीवंत, मजबूत और परिणामोन्मुखी बनाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है.