Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या है रूप चतुर्दशी/ नरक चतुर्दशी त्योहार का वास्तविक संदेश? - श्रीनारद मीडिया

क्या है रूप चतुर्दशी/ नरक चतुर्दशी त्योहार का वास्तविक संदेश?

क्या है रूप चतुर्दशी/ नरक चतुर्दशी त्योहार का वास्तविक संदेश?
नारी, सत्य के आग्रही के सम्मान और सदैव सावधान रहने का संदेश देता है रूप चतुर्दशी/ नरक चतुर्दशी का त्योहार
आधुनिक बाजारवाद के मुताबिक नहीं हर त्यौहार को उसके नैसर्गिक परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक
 डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सनातनी परंपरा में पांच दिवसीय दीपोत्सव का त्योहार जीवन के हर आयाम को प्रकाशित करनेवाला माना जाता रहा है। शुरुआत धनतेरस से होती है, जिसके माध्यम से आरोग्य के महत्व को प्रकाशित किया जाता है। वहीं दूसरे दिन मनाए जाने वाले रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी के त्योहार का संदेश भी नारी व सत्य के आग्रही के सम्मान और सदैव सावधान रहने का ही होता है। इस तथ्य को इस त्योहार से जुड़ी मान्यताओं और कथाओं से समझा जा सकता है। यह अलग बात है कि आज के उपभोक्तावाद के दौर में हर त्यौहार बाजार के चकाचौंध में अपने असली उद्देश्य से विचलित होता दिखता है। आइए समझने का प्रयास करते हैं रूप चतुर्दशी त्योहार के वास्तविक संदेश को।
सनातन परंपरा में प्रचलित एक कथा के अनुसार, नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुर्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीयों की बारात सजाई जाती है। इस कथा का संदेश है कि हमारे समाज में नारी शक्ति को यथोचित सम्मान दिया जाना चाहिए और संदेश यह भी कि बुराई पर सदैव अच्छाई की जीत होती है।
हम देखते है कि प्रतिदिन भारत ही नहीं दुनिया के अन्य हिस्सों में नारी के साथ हर पल दुर्व्यवहार होता रहता है। इस दुर्व्यवहार की गूंज संयुक्त राष्ट्र जैसे प्रतिष्ठित अंतराष्ट्रीय निकायों में भी सुनाई पड़ती रहती है। अभी हाल में कोलकाता की घटना सबको याद ही होगा। नरक चतुर्दशी का यह पावन त्यौहार नारी शक्ति के सम्मान का संदेश देता है। जिसे हमें समझना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया, फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो? क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है? यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन्! एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है।
इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया, इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
यहां इस कथा के सही संदेश को समझने का प्रयास करना चाहिए। ब्राह्मण कोई जाति नहीं अपितु एक विचार का प्रतीक है। ब्राह्मण से आशय उस व्यक्ति से होता है, जो ब्रह्म को जानता है। ब्रह्म ही सृष्टि का सार तत्व होता है। जो ब्रह्म को जानता है, वहीं सत्य को जानता है। इस तरह जो सत्य का आग्रही है, सत्य का अन्वेषक है, वहीं ब्राह्मण है। मिथ्याचारी कभी ब्राह्मण नहीं हो सकता है। इसलिए ब्राह्मण का सम्मान करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराने का स्पष्ट आशय सत्य के आग्रही, सत्य के अन्वेषक के सम्मान से ही है। नरक चतुर्दशी त्योहार का एक प्रमुख संदेश यह भी है कि सत्य के आग्रही का सम्मान सदैव होना चाहिए।
नरक चतुर्दशी के दिन यह परंपरा भी है कि रात्रि के समय मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान किया जाता है और कामना की जाती है कि अकाल मृत्यु से रक्षा हो सके। सामान्यतया देखा जाता रहा है कि अकाल मृत्यु अधिकांश समय पर हमारी असावधानियों के कारण ही होती है। इसलिए वाहन चलाते समय, व्याधियों से ग्रसित होने पर सावधानी रखना अकाल मृत्यु से बचने का बड़ा सहारा होता है। इसलिए जिंदगी के हर कदम पर सावधानी, सजगता, सतर्कता का संदेश दे जाता है नरक चतुर्दशी का त्योहार।
दीपोत्सव का त्योहार चल रहा है। दीप जल रहे हैं, वातावरण प्रकाशित हो रहा है तो हमे अपने अंतर्मन को भी प्रकाशित करते चलते रहना चाहिए। रूप या नरक चतुर्दशी के त्योहार का संदेश भी नारी, सत्य के आग्रही के सम्मान और सदैव सतर्कता और सावधानी बरतने का संदेश है। जिसे हम समझें और उस पर अमल करें तो यही हमारे सनातनी त्योहारों की सार्थकता होगी। साथ ही बाजारवाद के प्रपंचों और आकर्षण से दूर रहकर हर त्यौहार को उसके वास्तविक संदेश को समझ कर मनाना चाहिए। इससे त्योहार की रंगत भी बढ़ती है उल्लास दिल में महसूस होता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!