Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के बदले-बदले रुख का कारण क्या है? - श्रीनारद मीडिया
Breaking

शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के बदले-बदले रुख का कारण क्या है?

शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के बदले-बदले रुख का कारण क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुई शांघाई सहयोग संगठन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक काफी सार्थक रही। सबसे पहली बात तो यह अच्छी हुई कि भारतीय और पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के बीच कोई कहा-सुनी नहीं हुई। पिछली बैठक में हमारे प्रतिनिधि अजित डोभाल को बैठक का बहिष्कार करना पड़ा था, क्योंकि पाकिस्तानी नक्शे में भारतीय कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया था लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

ताजिकिस्तान इस वर्ष इस संगठन का अध्यक्ष है। वह मुस्लिम बहुल राष्ट्र है। उसके राष्ट्रपति ई. रहमान ने अपने भाषण में आतंकवाद, अतिवाद, अलगाववाद, अंतरराष्ट्रीय तस्करी और अपराधों की भर्त्सना तो की ही है, उनसे भी ज्यादा मजहबी उग्रवाद की की है। आश्चर्य है कि पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने इस बयान पर कोई एतराज़ नहीं किया।

मज़हब के नाम पर दुनिया में यदि कोई एक राष्ट्र बना है तो वह पाकिस्तान है। इस मजहबी जोश के कारण ही आज पाकिस्तान बेहद परेशान है। लाहौर के जौहर टाउन इलाके में ताज़ा बम-विस्फोट इसका प्रमाण है। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों की मेहरबानी से जितने लोग भारत और अफगानिस्तान में मारे गए हैं, उनसे कहीं ज्यादा पाकिस्तान में मारे गए हैं।

पाकिस्तान के नेताओं और फौजी अफसरों को अब शायद अपनी गलती का अहसास हो रहा है। इसीलिए अफगानिस्तान में भी वे शांति की बातें कर रहे हैं। उनका बार-बार यह कहना कि वे अफगानिस्तान में भी आतंकवाद का विरोध करते हैं, यदि सचमुच यह सच है तो मुझे आश्चर्य है कि दुशांबे में डोभाल और यूसुफ ने आपस में दिल खोलकर बात क्यों नहीं की? यह मौका वे क्यों चूके ? यदि यूसुफ को कुछ झिझक थी तो डोभाल को पहल करने में कोई बुराई नहीं थी। आखिर, पूरे दक्षिण एशिया की शांति, सुरक्षा और समृद्धि की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा किस की है ? भारत की है।

दुशांबे में अफगानिस्तान के सवाल पर सभी राष्ट्रों ने इस बैठक में बहुत ज्यादा ध्यान दिया। क्या ही अच्छा होता कि शांघाई सहयोग संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग करता कि अमेरिकी वापसी के बाद अफगानिस्तान में जो शांति-सेना भेजी जाए, उसमें भारत और पाकिस्तान के सैनिक प्रमुख रूप से हों। उनमें दक्षिण और मध्य एशिया के सैनिकों को भी जोड़ा जा सकता है।

अमेरिका, रूस और चीन के सैनिकों से अफगान नेताओं को एतराज हो सकता है लेकिन सभी पड़ौसी देश तो महान आर्यावर्त्त परिवार के अभिन्न अंग ही हैं। भारत सरकार के कुछ अफसर गोपनीय तौर पर तालिबान से आजकल संपर्क करने लगे हैं, यह अच्छी बात है लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अजित डोभाल और पाकिस्तान के फौजी और गुप्तचरी नेताओं के बीच भी आजकल गुपचुप संपर्क बढ़ा है। इस बैठक में चीनी प्रतिनिधि की गैर-हाजिरी आश्चर्यजनक है, हालांकि चीन भी अफगानिस्तान के सवाल पर चिंतित है। उसके उइगर मुसलमानों ने उसकी नाक में दम कर रखा है। जो भी हो, भारत और पाक अब भी पहल कर सकते हैं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!