वैश्विक शासन एवं विकास के एक मंच के रूप में G20 की भूमिका और महत्त्व क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नई दिल्ली द्वारा सितंबर 2023 में आयोजित 18वाँ G20 शिखर सम्मेलन अफ्रीकी संघ (African Union- AU) के स्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश के साथ इस समूह का के ऐतिहासिक विस्तार का साक्षी बना। अफ्रीकी संघ 55 सदस्य देशों का एक महाद्वीपीय निकाय है जो अब यूरोपीय संघ (EU) के समान दर्जा रखता है और पूर्ण सदस्यता वाला (अफ्रीका के सभी 55 देशों की सदस्यता के साथ) एकमात्र क्षेत्रीय संगठन है।

अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव भारत द्वारा जून 2023 में प्रस्तुत किया गया और AU के साथ ही सभी G20 सदस्यों ने इसका स्वागत किया था। G20 में AU को शामिल किया जाना भारत की अध्यक्षता की एक उपलब्धि है और यह वैश्विक दक्षिण या ‘ग्लोबल साउथ’ के विकासात्मक एजेंडे के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारत की G20 अध्यक्षता के तहत विकास सहयोग  

  • भारत ने G20 की अध्यक्षता दिसंबर 2022 में ग्रहण की थी जहाँ इसका थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात ‘एक पृथ्वी – एक परिवार – एक भविष्य’ (One Earth · One Family · One Future) तय किया गया था। G20 अध्यक्षता के लिये भारत का दृष्टिकोण हरित विकास (green development), जलवायु वित्त (climate finance) एवं ‘पर्यावरण के लिये जीवन शैली’ (Lifestyle for Environment- LiFE) को बढ़ावा देने; समावेशी एवं प्रत्यास्थी विकास को गति प्रदान करने; सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) की दिशा में प्रगति करने; प्रौद्योगिकीय रूपांतरण (technological transformation) एवं ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ (DPI) को बढ़ावा देने; 21वीं सदी के लिये बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने; और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का समर्थन करने पर केंद्रित रहा।
  • भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यसमूह (Disaster Risk Reduction Working Group); स्टार्टअप 20 एंगेजमेंट ग्रुप (Startup 20 Engagement Group); ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंडटेबल (Global Sovereign Debt Roundtable) के शुभारंभ; और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance) के निर्माण जैसे अभिनव पहल भी किये।
  • भारत की G20 अध्यक्षता ने अफ्रीका और अन्य विकासशील भूभागों के साथ अपने विकास सहयोग को भी प्रदर्शित किया। भारत अफ्रीका का दीर्घकालिक भागीदार रहा है जो कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, अवसंरचना, डिजिटल प्रौद्योगिकी, क्षमता निर्माण और शांति स्थापना जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने अनुभव एवं विशेषज्ञता को साझा करता है।
  • भारत ने भारतीय निर्यात-आयात बैंक (Export-Import Bank of India) के माध्यम से अफ्रीका में 182 परियोजनाओं के लिये 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती ऋण सुविधा भी प्रदान की है। भारत ने पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क प्रोजेक्ट (Pan-African e-Network Project), टीम-9 पहल (Team-9 Initiative), भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (India-Africa Forum Summit), भारत-अफ्रीका व्यापार परिषद (India-Africa Trade Council), भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य विज्ञान सहयोग मंच (India-Africa Health Sciences Platform) और भारत-अफ्रीका कृषि एवं ग्रामीण विकास संस्थान (India-Africa Institute of Agriculture and Rural Development) जैसे कई प्रमुख कार्यक्रम भी शुरू किये हैं। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA), आपदा-रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) और नालंदा विश्वविद्यालय जैसे बहुपक्षीय मंचों पर अफ्रीका की भागीदारी का भी समर्थन किया है।

G20 सदस्यता के बाद अफ्रीका के लिये लाभ और अवसर 

  • G20 में AU को शामिल किया जाना अधिक समावेशी और प्रतिनिधिक वैश्विक शासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। AU 1.4 बिलियन लोगों और 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सामूहिक जीडीपी वाले महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करता है ।
  • वर्ष 2023 में 4.1% की अनुमानित विकास दर के साथ अफ्रीका विश्व के सबसे तेज़ी से विकास करते क्षेत्रों में से एक है।
  • गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सुरक्षा, डिजिटल रूपांतरण, व्यापार सुविधा, ऋण संवहनीयता और शांति एवं सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये अफ्रीका की आवाज़ और परिप्रेक्ष्य को शामिल करना आवश्यक है।
  • G20 में AU को शामिल करने से अफ्रीका और G20 सदस्यों, दोनों के लिये लाभ और अवसरों के द्वार खुलेंगे।
    • अफ्रीका के दृष्टिकोण से, यह वैश्विक मंच पर उसके साझा हितों और आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिये एक मंच प्रदान करेगा, जैसे कि:
      • एजेंडा 2063 और एजेंडा 2030 का कार्यान्वयन;
      • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area- AfCFTA) का क्रियान्वयन;
      • जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की लामबंदी; और
      • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का सुधार।
    • G20 सदस्यों के दृष्टिकोण से, यह अवसंरचना विकास, नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कृषि, पर्यटन और संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अफ्रीका के साथ सहयोग एवं साझेदारी के नए मार्ग खोलेगा।
      • यह G20 सदस्यों और अफ्रीकी देशों के बीच आपसी समझ एवं भरोसे को भी बढ़ावा देगा।

G20 के साथ AU की संलग्नता से अफ्रीका और विश्व के लिये कौन-सी प्रमुख चुनौतियों उत्पन्न होंगी? 

G20 में AU को शामिल किये जाने से कुछ चुनौतियाँ भी पैदा होंगी और इसकी प्रभावशीलता एवं संवहनीयता को सुनिश्चित करने के लिये कुछ कार्रवाइयों की आवश्यकता होगी। इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:

  • G20 के साथ अपनी संलग्नता में सुसंगतता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये AU को अपने सदस्य राज्यों एवं क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों के साथ अपनी स्थिति और प्राथमिकताओं का समन्वय करना होगा।
  • AU को विभिन्न ट्रैक्स एवं वर्क-स्ट्रीम में G20 प्रक्रियाओं और बैठकों में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये अपनी संस्थागत क्षमता और मानव संसाधनों को सुदृढ़ करना होगा।
  • AU को अफ्रीकन यूनियन कमीशन (AUC), अफ्रीकन यूनियन डेवलपमेंट एजेंसी (AUDA-NEPAD), संयुक्त राष्ट्र (UN), यूरोपीय संघ (EU), राष्ट्रमंडल (Commonwealth)फ़्रैंकोफ़ोनी (Francophonie) जैसे अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं एवं दायित्वों को संतुलित करना होगा।
  • AU को ऐसे अन्य G20 सदस्यों के साथ अपनी अपेक्षाओं और हितों का प्रबंधन करना होगा जिनके पास विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग एजेंडे और दृष्टिकोण हो सकते हैं।
  • AU को यह सुनिश्चित करना होगा कि G20 में उसकी भागीदारी से अफ्रीका के विकास के लिये ठोस परिणाम और लाभ प्राप्त हों।

आगे की राह 

AU को G20 के साथ अपनी संलग्नता को समन्वित करने के लिये अपनी संरचनाओं के भीतर एक समर्पित तंत्र या इकाई स्थापित करनी चाहिये। इस तंत्र या इकाई को G20 एजेंडे पर अफ्रीका की स्थिति और प्राथमिकताओं को तैयार करने तथा संप्रेषित करने के लिये AUC, AUDA-NEPAD, क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों, सदस्य राज्यों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और अन्य हितधारकों के साथ निकटता से संपर्क बनाना चाहिये।

  • AU को G20 प्रक्रियाओं और बैठकों में प्रभावी ढंग से भागीदारी करने के लिये अपनी क्षमता और संसाधनों को बढ़ाने हेतु G20 सदस्यों और अन्य भागीदारों से तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्राप्त करनी चाहिये।
  • AU को अपनी G20 भागीदारी हेतु समर्थन जुटाने के लिये भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन, अफ्रीका-EU साझेदारी, अफ्रीका-चीन फोरम जैसी पहले से मौजूद साझेदारियों और मंचों का भी लाभ उठाना चाहिये।
  • AU को अपनी G20 संलग्नता को एजेंडा 2063, एजेंडा 2030, AfCFTA जैसे अपने मौजूदा ढाँचे और रणनीतियों के साथ संरेखित करना चाहिये।
  • AU को अपनी G20 संलग्नता और AUC, AUDA-NEPAD, UN, EU, कॉमनवेल्थ, फ्रैंकोफोनी जैसी अपनी अन्य क्षेत्रीय एवं वैश्विक संलग्नताओं के बीच सुसंगतता एवं संपूरकता सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • AU को अपनी G20 संलग्नता में रचनात्मक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, जहाँ विभिन्न मुद्दों पर अन्य G20 सदस्यों के साथ साझा आधार और आम सहमति की तलाश की जा सकती है। AU को बदलती परिस्थितियों और वैश्विक क्षेत्र में उभरती चुनौतियों के प्रति लचीला और अनुकूलनीय भी बनना होगा।

AU को अपनी G20 भागीदारी की निगरानी और मूल्यांकन करना होगा, जहाँ अफ्रीका के विकास पर इसके प्रभाव एवं परिणामों की माप करनी होगी। AU को सदस्य राज्यों और अन्य हितधारकों के बीच अपनी G20 भागीदारी का प्रसार एवं संचार करना होगा, जहाँ यह अपनी उपलब्धियों और चुनौतियों को रेखांकित करे।

निष्कर्ष 

G20 में AU को शामिल किया जाना भारत की अध्यक्षता की एक उपलब्धि है और यह ‘ग्लोबल साउथ’ के विकासात्मक एजेंडे के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रकट करता है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था और शासन में अफ्रीका के महत्त्व एवं क्षमता की मान्यता भी है। AU को वैश्विक सार्वजनिक कल्याण में योगदान करते हुए वैश्विक मंच पर अपने हितों और आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिये इस ऐतिहासिक अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिये।

 

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