वैश्विक शासन को आकार देने में G20 की क्या भूमिका है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
- आर्थिक समन्वय:
- आर्थिक मुद्दे राष्ट्रीय सीमाओं से परे प्रभाव रखते हैं, इसलिये समन्वित प्रयासों की आवश्यकता रखते हैं।
- G20 विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिये अपनी आर्थिक नीतियों पर चर्चा करने और उन्हें संरेखित करने तथा वैश्विक स्थिरता एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
- G20 वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 80% से अधिक की और वैश्विक व्यापार में लगभग 75% की हिस्सेदारी रखता है।
- संकट प्रबंधन:
- G20 का उभार वर्ष 2008 के वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था। तब से इसने तत्काल चुनौतियों का समाधान करने और रिकवरी के लिये रणनीति तैयार करने के लिये वैश्विक नेताओं को एक मंच पर लाकर संकट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी की प्रतिक्रिया में G20 के नेताओं ने वैश्विक प्रयासों के समन्वय के लिये एक असाधारण ‘वर्चुअल लीडर्स समिट’ का आयोजन किया था। इस अवसर पर उन्होंने अनुसंधान का समर्थन करने, चिकित्सा आपूर्ति तक पहुँच सुनिश्चित करने और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करने के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार:
- G20 वैश्विक वित्तीय प्रणाली की प्रत्यास्थता और स्थिरता को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। इसने भविष्य के संकटों को रोकने के लिये वित्तीय संस्थानों, विनियमों और निरीक्षण तंत्र में सुधारों पर बल दिया है।
- वित्तीय विनियमन के प्रति G20 की प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप ‘वित्तीय स्थिरता बोर्ड’ (Financial Stability Board- FSB) की स्थापना की गई, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी करता है और उसके बारे में अनुशंसाएँ करता है।
- जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास:
- हालाँकि यह इसके प्राथमिक कार्य-दायित्व में शामिल नहीं है, लेकिन G20 ने पर्यावरणीय मुद्दों और सतत् विकास को भी संबोधित करने का प्रयास किया है। इस समूह के निर्णय संसाधन आवंटन, ऊर्जा नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्रभावित करते हैं।
- एजेंडों को आकार देना:
- G20 एजेंडे तय कर सकता है और वैश्विक स्तर पर प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकता है। इसकी चर्चाएँ प्रायः अंतरराष्ट्रीय आख्यान को आगे बढ़ाती हैं और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों का मार्गदर्शन करती हैं।
वैश्विक शासन की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?
- विविध रुचियाँ और प्राथमिकताएँ:
- विभिन्न देशों के विविध और प्रायः परस्पर विरोधी हित और प्राथमिकताएँ हैं। साझा समाधानों की तलाश के क्रम में इन विविध दृष्टिकोणों को संतुलित करना बेहद चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
- पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं पर असहमति की स्थिति यह दर्शाती है कि विभिन्न देशों के विविध हित साझा समाधानों तक पहुँचने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- समन्वित कार्रवाई का अभाव:
- वैश्विक शासन के लिये सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और निजी क्षेत्र सहित विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।
- असमान संसाधन वितरण:
- वित्तीय और तकनीकी, दोनों तरह के संसाधनों का असमान वितरण वैश्विक चुनौतियों से निपटने के मामले में विषमता पैदा करता है।
- विकासशील देशों में प्रायः वैश्विक शासन पहलों में पूरी तरह से भागीदारी कर सकने और उनसे लाभ उठा सकने के लिये संसाधनों एवं आधारभूत संरचना की कमी पाई जाती है।
- निम्न आय देशों में कोविड-19 टीकों की सीमित पहुँच ने समतामूलक वैश्विक सार्वजनिक कल्याण प्रदान करने में संसाधन विषमताओं और चुनौतियों को उजागर किया।
- वैश्विक मुद्दों की जटिलता:
- कई वैश्विक चुनौतियाँ बहुआयामी प्रकृति रखती हैं जो आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक आयामों तक विस्तृत हैं।
- इन मुद्दों के समाधान के लिये व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसे विकसित करना और कार्यान्वित करना जटिल सिद्ध हो सकता है।
- शक्ति असंतुलन:
- विभिन्न देशों के बीच शक्ति असंतुलन से वैश्विक शासन प्रक्रियाओं पर असमान प्रभाव पड़ सकता है।
- शक्तिशाली राष्ट्र निर्णय लेने में कम शक्तिशाली देशों की आवाज़ को दरकिनार करते हुए असंगत रूप से अधिक नियंत्रण का प्रयोग कर सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे वैश्विक निर्णय लेने वाले निकायों में असमान प्रतिनिधित्व से दोषपूर्ण प्राथमिकताओं और समाधानों की स्थिति बन सकती है।
- पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं के प्रभाव को कम करने के लिये वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। उत्तरदायित्व, शमन रणनीतियों और संसाधन आवंटन पर असहमतियाँ प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रियाओं में बाधा उत्पन्न करती है।
- जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं और उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों पर साझा सहमति की कमी पर्यावरणीय मुद्दों पर वैश्विक सहयोग प्राप्त करने की कठिनाई को दर्शाती है।
- अल्पावधिवाद (Short-Termism) और राजनीतिक दबाव:
- संक्षिप्त राजनीतिक चक्र (short political cycles) और अलग-अलग देशों के भीतर घरेलू दबाव ऐसे निर्णय लेने की ओर ले जा सकते हैं जो तत्काल लाभ को दीर्घकालिक वैश्विक लाभों पर प्राथमिकता देते हैं।
- तात्कालिकता या अल्पावधि पर यह फोकस जटिल, क्रमिक चुनौतियों का समाधान करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- वैश्विक शासन के मामले में G20 की चुनौतियाँ:
- G20 की सदस्यता सीमित है जिसमें कई देश और भूभाग शामिल नहीं हैं, जो इसकी वैधता और प्रतिनिधित्व को कमज़ोर कर सकता है।
- सदस्य देशों, यहाँ तक कि कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच कलह की स्थिति भी वैश्विक स्तर पर बेहतर समन्वय में बाधा उत्पन्न करती है।
स्थानीय शासन को सशक्त करना वैश्विक शासन को कैसे सशक्त कर सकता है?
- SDGs के लिये समुदाय-आधारित समाधान:
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की चुनौतियों से सबसे अधिक प्रभावित लोगों, जैसे सतत् कृषि के लिये स्थानीय किसानों या स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के लिये स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल करने से संदर्भ-विशिष्ट और अभिनव समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय किसानों को उनके वातावरण के अनुकूल जलवायु-कुशल कृषि अभ्यासों को अपनाने हेतु संलग्न करने से कृषि उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की चुनौतियों से सबसे अधिक प्रभावित लोगों, जैसे सतत् कृषि के लिये स्थानीय किसानों या स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के लिये स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल करने से संदर्भ-विशिष्ट और अभिनव समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
- स्थानीय सेवाओं और प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करना:
- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल और सामाजिक सुरक्षा जाल जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने से प्रत्यक्ष रूप से कल्याण सुनिश्चित होता है और आघातों के प्रति संवेदनशीलता घटती है, जिससे समुदायों के लिये एक सुदृढ़ नींव का निर्माण होता है।
- उदाहरण के लिये, दूरदराज के गाँवों में जल शोधन इकाइयों का निर्माण स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को बढ़ाता है और स्वच्छ जल एवं स्वास्थ्य संबंधी SDGs को संबोधित करता है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल और सामाजिक सुरक्षा जाल जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने से प्रत्यक्ष रूप से कल्याण सुनिश्चित होता है और आघातों के प्रति संवेदनशीलता घटती है, जिससे समुदायों के लिये एक सुदृढ़ नींव का निर्माण होता है।
- सहभागी शासन और जवाबदेही:
- स्थानीय नागरिकों, नागरिक संगठनों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को संलग्न करते हुए पारदर्शी निर्णयन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना यह सुनिश्चित करता है कि क्रियान्वित नीतियाँ समुदाय की आवश्यकताओं, विश्वास-बहाली और जवाबदेही के अनुरूप हों।
- साझा प्रगति के लिये सहकारी नेटवर्क:
- स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, ज्ञान के आदान-प्रदान और संसाधन-साझाकरण के लिये मंच स्थापित करने से समुदायों को जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता जैसी चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने में मदद मिलती है।
भारत प्रगति के प्रक्षेपवक्र को कैसे बदल रहा है?
- भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन को बढ़ावा देता है जो विविधता का सम्मान करता है और राष्ट्रों एवं लोगों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देता है।
- भारत ‘LiFE’ के दृष्टिकोण की वकालत करता है जो संवहनीय जीवन शैली और उपभोग पैटर्न को प्रोत्साहित करता है, जो ग्रहीय सीमाओं और मानव गरिमा के अनुकूल है।
- भारत अन्य देशों को इसके उदाहरण का अनुसरण करने और इसकी सफलताओं एवं असफलताओं से सीखने के लिये प्रेरित करता है।
- इन कदमों के अलावा, भारत सरकार को स्थानीय समुदायों और स्थानीय सरकारों को अपने संसाधनों एवं ज्ञान का उपयोग करके अपनी समस्याओं का समाधान खोजने और इन्हें लागू करने के लिये सशक्त बनाना चाहिये।
- यह भी पढ़े………….
- G20 वैश्विक शासन को कैसे सुदृढ़ कर सकता है?
- Nuh : उपद्रवियों का ठिकाना बनीं अरावली की पहाड़ियां,कैसे?
- Article 370: 4 साल में बदल गई कश्मीर की कहानी,कैसे?
- विद्या भारती शैक्षणिक गुणवत्ता को लेकर करेगी मंथन