भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका का क्या महत्त्व है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत छोड़ो आंदोलन भारत में प्रतिवर्ष 8 अगस्त को मनाया जाता है। वर्ष 2024 में, भारत छोड़ो आंदोलन (QIM) की 82वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है।
- यह महात्मा गांधी के नेतृत्व में वर्ष 1942 में QIM के ऐतिहासिक शुभारंभ का स्मरण कराता है।
QIM क्या था?
- परिचय: यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था, जिसमें भारत से ब्रिटिश सेना की तत्काल वापसी का आह्वान किया गया था।
- इसका उद्देश्य ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध अहिंसक सविनय अवज्ञा अभियान में भारतीयों को संगठित करना था।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इसने ब्रिटिश जनता का सहानुभूतिपूर्ण समर्थन और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की शक्तियों से दबाव आकर्षित किया।
- QIM प्रारंभ करने के कारण:
- क्रिप्स मिशन की विफलता (वर्ष 1942): क्रिप्स मिशन ने संवैधानिक प्रगति पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रवैये को उजागर किया और यह स्पष्ट कर दिया कि अब और चुप्पी ब्रिटिशों के परामर्श के बिना भारतीयों के भाग्य का निर्णय करने के अधिकार को स्वीकार करने के समान होगी।
- इसने पूर्ण स्वराज के बजाय प्रभुत्व का दर्जा देने की पेशकश की। इसने प्रांतों को पृथक् होने का अधिकार प्रदान किया जो राष्ट्रीय एकता के सिद्धांत के विरुद्ध था।
- द्वितीय विश्व युद्ध का आर्थिक प्रभाव: बढ़ती कीमतों और चावल, नमक आदि की कमी के कारण लोगों में असंतोष था। जहाँ खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने गरीबों को प्रभावित किया, वहीं अमीरों को अत्यधिक लाभ कर से नुकसान हुआ। यह घोर कुप्रबंधन तथा उद्देश्यपूर्ण मुनाफाखोरी के कारण और भी बढ़ गया।
- दक्षिण-पूर्व एशिया से ब्रिटिशों का जल्दबाजी में निष्कासन: जापानी आक्रमण के बाद मलाया और बर्मा से लौटने वाले शरणार्थियों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश सत्ता के पतन एवं ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीय शरणार्थियों को छोड़ देने की सूचना दी।
- इससे यह भय उत्पन्न हो गया कि यदि जापान ने आक्रमण किया तो ब्रिटेन इसी प्रकार भारत को छोड़ सकता है।
- ब्रिटिश पतन की आशंका: मित्र राष्ट्रों की हार और दक्षिण-पूर्व एशिया एवं बर्मा से ब्रिटिशों की वापसी की खबरों ने भारत में लोगों को यह विश्वास दिलाया कि ब्रिटिश सत्ता जल्द ही समाप्त होने वाली है।
- जापानी आक्रमण की आशंका: नेताओं ने महसूस किया कि संघर्ष शुरू करना आवश्यक है क्योंकि उनका मानना था कि लोगों का मनोबल गिर रहा है और यदि जापान ने आक्रमण किया तो वे शायद विरोध न करें।
- क्रिप्स मिशन की विफलता (वर्ष 1942): क्रिप्स मिशन ने संवैधानिक प्रगति पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रवैये को उजागर किया और यह स्पष्ट कर दिया कि अब और चुप्पी ब्रिटिशों के परामर्श के बिना भारतीयों के भाग्य का निर्णय करने के अधिकार को स्वीकार करने के समान होगी।
- भारत छोड़ो संकल्प:
- काॅन्ग्रेस कार्यसमिति ने 14 जुलाई 1942 को वर्धा में ‘भारत छोड़ो’ संकल्प को अपनाया।
- अखिल भारतीय काॅन्ग्रेस समिति (AICC) ने 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक में कुछ संशोधनों के साथ इस संकल्प को स्वीकार कर लिया और गांधीजी को संघर्ष का नेता नामित किया गया।
- बैठक में ये संकल्प भी लिये गए:
- भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने की मांग।
- स्वतंत्र भारत की सभी प्रकार के फासीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वयं की रक्षा करने की प्रतिबद्धता की घोषणा करना।
- ब्रिटिश शासन के वापसी के बाद भारत की एक अनंतिम सरकार का गठन करना।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्वीकृति देना।
- गांधीजी को संघर्ष का नेता नामित किया गया।
- बैठक में ये संकल्प भी लिये गए:
- इस अवसर पर, गांधीजी ने अपना प्रसिद्ध “करो या मरो” का नारा दिया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि “हम या तो भारत को स्वतंत्र करेंगे या इस प्रयास में मर जाएंगे; हम अपनी गुलामी को जारी रखने के लिये जीवित नहीं रहेंगे।”
सरकार ने QIM के प्रसार पर क्या प्रतिक्रिया दी?
- आंदोलन का प्रसार:
- जनता उग्र हो गई: आम जनता ने सत्ता के प्रतीकों का विरोध व उनपर हमला किया। विरोध के कारण कई सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी हुई, पुल उड़ा दिये गए, रेल की पटरियाँ हटा दी गईं और टेलीग्राफ लाइनें काट दी गईं।
- भूमिगत गतिविधि: भूमिगत गतिविधि करने वाले मुख्य व्यक्तित्व राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ़ अली, उषा मेहता और आर.पी. गोयनका थे। उषा मेहता ने बॉम्बे में एक भूमिगत रेडियो शुरू किया।
- प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण, एक युवा और तब तक अपेक्षाकृत अज्ञात अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त को AICC सत्र की अध्यक्षता की और ध्वजारोहण किया, बाद में कॉन्ग्रेस पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- समानांतर सरकारें: बलिया (उत्तर प्रदेश), तामलुक (बंगाल) और सतारा (महाराष्ट्र) में समानांतर सरकारें स्थापित की गईं।
- जन भागीदारी की सीमा: युवा, महिलाएँ, श्रमिक और किसान अग्रणी रहे।
- ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया:
- 9 अगस्त, 1942 की सुबह कॉन्ग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया।
- इस घटना ने लोगों में तुरंत प्रतिक्रिया उत्पन्न की। देश के विभिन्न भागों में अधिकारियों के साथ झड़पें, हड़तालें, सार्वजनिक प्रदर्शन और जुलूस निकाले गए।
- सरकार ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया। समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड (National Herald) और साप्ताहिक पत्रिका हरिजन (Harijan ) ने संघर्ष की पूरी अवधि के लिये प्रकाशन बंद कर दिया, जबकि अन्य ने कम अवधि हेतु प्रकाशन बंद कर दिया।
- आंदोलनकारी भीड़ पर लाठीचार्ज किया गया, आँसू गैस के गोले छोड़े गए और गोलियाँ चलाई गईं। मरने वालों की अनुमानित संख्या 10,000 थी।
- सेना ने कई शहरों पर कब्ज़ा कर लिया और पुलिस तथा गुप्तचर सेवा सर्वोच्च हो गयी।
- विद्रोही गाँवों पर भारी ज़ुर्माना लगाया गया तथा कई गाँवों में सामूहिक कोड़े मारे गए।
- 9 अगस्त, 1942 की सुबह कॉन्ग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया।
QIM के दौरान समानांतर सरकारें
- बलिया, उत्तर प्रदेश: इसकी स्थापना चित्तू पांडे ने की थी और यह लोगों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा तथा अन्य सेवाएँ प्रदान करती थी।
- सतारा, महाराष्ट्र: इसे “प्रति सरकार” के नाम से जाना जाता है, इसे वाई. बी. चव्हाण, नाना पाटिल और अन्य नेताओं द्वारा स्थापित किया गया था। ‘गांधी विवाह’ आयोजित किये गए थे।
- तामलुक, बंगाल: इसे ताम्रलिप्त जातीय सरकार के नाम से जाना जाता था और इसकी स्थापना अंबिका चक्रवर्ती ने की थी।
क्या QIM एक स्वतःस्फूर्त विस्फोट था या एक संगठित आंदोलन?
- QIM की सहज प्रकृति:
- वायसराय लिनलिथगो (Viceroy Linlithgow) ने इसे “1857 के बाद का अब तक का सबसे गंभीर विद्रोह” बताया।
- यह हिंसक और पूरी तरह से अनियंत्रित था, क्योंकि इसके शुरू होने से पहले ही कॉन्ग्रेस नेतृत्व का पूरा उच्च वर्ग सलाखों के पीछे था।
- इसलिये इसे “स्वतःस्फूर्त क्रांति” भी कहा जाता है, क्योंकि “कोई भी पूर्व-निर्धारित योजना ऐसे तात्कालिक और एकसमान परिणाम उत्पन्न नहीं कर सकती थी”।
- QIM की संगठित प्रकृति:
- उग्रवादी आंदोलन: पिछले दो दशकों में, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (All India Trade Union Congress- AITUC), कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (Congress Socialist Party- CSP), ऑल इंडिया किसान सभा (All India Kisan Sabha- AIKS) और फॉरवर्ड ब्लॉक जैसे कॉन्ग्रेस से संबद्ध समूहों के नेतृत्व में उग्रवादी जन आंदोलनों ने इस तरह के संघर्ष के लिये मंच तैयार किया था।
- बारह सूत्री कार्यक्रम: 9 अगस्त, 1942 से पहले, कॉन्ग्रेस नेताओं ने एक बारह सूत्री कार्यक्रम का मसौदा तैयार किया जिसमें गांधीवादी सत्याग्रह पद्धति, औद्योगिक हड़ताल, रेलवे और टेलीग्राफ व्यवधान, कर अस्वीकार तथा एक समानांतर सरकार की स्थापना शामिल थी।
- पिछली तैयारी: सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) में, जबकि गांधीजी ने दांडी मार्च और नमक कानून के उल्लंघन के साथ संघर्ष की शुरुआत की, स्थानीय नेताओं तथा लोगों ने निर्णय लिया कि क्या भूमि राजस्व भुगतान रोकना है, वन कानूनों की अवहेलना करनी है, शराब की दुकानों पर धरना देना है या कार्यक्रम के अन्य पहलुओं को आगे बढ़ाना है।
- जनता के इन पिछले अनुभवों ने QIM को समृद्ध किया।
- ग्रामीण क्षेत्रों में लामबंदी: पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में वर्ष 1942 में सर्वाधिक तीव्र गतिविधि वाले क्षेत्र वही थे जहाँ वर्ष 1937 के बाद से काफी लामबंदी और संगठनात्मक कार्य किया गया था।
QIM के सबक और महत्त्व क्या थे?
- QIM से सबक:
- भारतीय जनता के लिये: 1942 में भारतीय जनता हेतु गांधीजी और कॉन्ग्रेस मुक्ति के प्रतीक थे, वैचारिक बाधा के स्रोत नहीं।
- कॉन्ग्रेस के लिये: सरकार द्वारा QIM के दमन से कॉन्ग्रेस के भीतर वामपंथी (फॉरवर्ड ब्लॉक के अनुयायियों की तरह) अपमानित हुए, जो सरकार के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की मांग कर रहे थे।
- कॉन्ग्रेस, जिसमें अधिकांशतः उदारवादी और दक्षिणपंथी शामिल थे, लोकप्रिय उग्रवाद के सख्त खिलाफ थी तथा कानून एवं व्यवस्था की बहाली एवं संघर्ष का कूटनीतिक समाधान चाहती थी।
- अंग्रेजों के लिये: उन्हें एहसास हुआ कि युद्धकालीन आपातकालीन शक्तियों के बिना उग्रवादी जन आंदोलनों को प्रबंधित करना मुश्किल था।
- युद्ध के बाद, बल द्वारा नियंत्रण बनाए रखना महंगा होगा, जिससे बातचीत और व्यवस्थित वापसी स्वीकार करने की इच्छा बढ़ेगी।
- QIM का महत्त्व:
- इसने स्वतंत्रता की मांग को राष्ट्रीय आंदोलन के तत्काल एजेंडे में रखा। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था।
- कॉन्ग्रेस की गतिविधियों का मुख्य ध्येय रचनात्मक कार्य बन गया, जिसमें कॉन्ग्रेस तंत्र के पुनर्गठन पर विशेष ज़ोर दिया गया।
- कॉन्ग्रेस नेताओं को जून 1945 में शिमला सम्मेलन में भाग लेने के लिये रिहा कर दिया गया। इसने अगस्त 1942 से चले आ रहे टकराव के दौर का अंत कर दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन (QIM) ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिखाया। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा दमन के बावजूद, इस आंदोलन ने व्यापक जन समर्थन प्राप्त किया, जिसके कारण बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और समानांतर सरकारें बनीं। QIM ने स्वतंत्रता की मांग को तीव्र किया, जिससे अंततः भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ।
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