भारत में इच्छामृत्यु को लेकर क्या स्थिति है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बुजुर्ग दंपत्ति की उस याचिका को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने अपने कोमाटोज (गंभीर रूप से अचेत) पुत्र, जो गिरने के कारण 11 वर्षों से बिस्तर पर है, के लिये  “निष्क्रिय इच्छामृत्यु” (Passive Euthanasia) की मांग की थी।

  • इस निर्णय ने भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी और नैतिक आयामों पर चर्चा को पुनः शुरू कर दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने रोगी के माता-पिता की याचिका के विरुद्ध निर्णय सुनाते हुए कहा कि यह मामला निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दायरे में नहीं आता क्योंकि मरीज किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और उसे फीडिंग ट्यूब के जरिये पोषण प्राप्त हो रहा है।
  • न्यायालय ने कहा कि उसके जीवन को समाप्त करने की अनुमति देना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं बल्कि सक्रिय इच्छामृत्यु होगी जो भारत में अवैध है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) क्या है?

  • इच्छामृत्यु :
    • इच्छामृत्यु, रोगी की पीड़ा को सीमित करने के लिये उसके जीवन को समाप्त करने की प्रथा है।
  • इच्छामृत्यु के प्रकार:
    • सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia):
      • सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब चिकित्सा पेशेवर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कुछ करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जैसे घातक इंजेक्शन देना।
    • निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia):
      • निष्क्रिय इच्छामृत्यु चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने का कार्य है, जैसे कि किसी व्यक्ति को मरने की अनुमति देने के उद्देश्य से जीवन समर्थक उपकरणों को बंद कर देना या वापस लेना है।
  • भारत में इच्छामृत्यु:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।
      • इसने असाध्य रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई गई ‘लिविंग विल’ के लिये भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिन्हें पहले से ही पता होता है कि उनके स्थायी रूप से निश्चेत अवस्था में चले जाने की संभावना है।
      • इससे पहले वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी थी।
    • न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि “मृत्यु की प्रक्रिया में गरिमा, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है। किसी व्यक्ति को जीवन के अंत में गरिमा से वंचित करना व्यक्ति को एक सार्थक अस्तित्व से वंचित करना है।”
  • इच्छामृत्यु वाले विभिन्न देश:
    • नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो “असहनीय पीड़ा” का सामना करता है और जिसके स्वास्थ्य में सुधार की कोई संभावना नहीं है, को इच्छामृत्यु एवं सहायता प्राप्त आत्महत्या दोनों की अनुमति देते हैं।
    • स्विट्ज़रलैंड में इच्छामृत्यु प्रतिबंधित है लेकिन किसी डॉक्टर या चिकित्सीय पेशेवर की उपस्थिति तथा सहायता से मृत्यु प्राप्त करने की अनुमति है।
      • वर्ष 1942 से, स्विट्ज़रलैंड ने सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति दी है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद और मरने की प्रक्रिया पर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कानून के अनुसार व्यक्तियों का मस्तिष्क स्वस्थ होना चाहिये और उनका निर्णय स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होना चाहिये।
    • ऑस्ट्रेलिया ने भी दोनों प्रकार की इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है। यह उन वयस्कों पर लागू होता है जिनमें पूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है तथा वे ऐसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं जिनकी छह या बारह महीनों के भीतर मृत्यु होने की संभावना है।
    • नीदरलैंड में इच्छामृत्यु के लिये एक सुस्थापित विधिक ढाँचा है, जिसे वर्ष 2001 के “अनुरोध पर जीवन की समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या (समीक्षा प्रक्रिया) अधिनियम” द्वारा विनियमित किया जाता है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिशानिर्देशों में हाल ही में क्या परिवर्तन किये गए?

  • वर्ष 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के इच्छामृत्यु दिशानिर्देशों को संशोधित कर दिया, ताकि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु प्रदान करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
    • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी तथा इस अधिकार को लागू करने के लिये असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये।
  • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में संशोधन:
    • लिविंग विल का सत्यापन: न्यायालय ने लिविंग विल (एक दस्तावेज़ जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है) पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के सत्यापन की आवश्यकता को हटा दिया है। अब, नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापन ही पर्याप्त है, जिससे व्यक्तियों के लिये अपने जीवन को समाप्त करने के विकल्प को व्यक्त करने की प्रक्रिया सरल हो गई है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल रिकॉर्ड के साथ एकीकरण: पहले, लिविंग विल को ज़िला न्यायालय द्वारा रखा जाता था। संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अनिवार्य किया गया है कि यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड का हिस्सा हों। इससे देश भर के अस्पतालों और डॉक्टरों के लिये सरल पहुँच सुनिश्चित होती है, जिससे समय पर निर्णय लेने में सुविधा होती है।
    • इच्छामृत्यु से इनकार के लिये अपील प्रक्रिया: यदि किसी अस्पताल का मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की अनुमति देने से इनकार करता है, तो रोगी/मरीज़ का परिवार संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। इसके बाद न्यायालय मामले का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु एक नया मेडिकल बोर्ड गठित करेगा, ताकि मामले की गहन और न्यायपूर्ण समीक्षा सुनिश्चित की जा सके।
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