भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की क्या स्थिति है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया और डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट नामक NGO द्वारा ‘स्टेट ऑफ हेल्थकेयर इन रूरल इंडिया, 2024’ रिपोर्ट जारी की गई।
- सर्वेक्षण में आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश सहित 21 राज्यों को शामिल किया गया।
- प्राप्त प्रतिदर्शों में 52.5% पुरुष प्रत्यर्थी और 47.5% महिला प्रत्यर्थी शामिल थे।
रिपोर्ट की मुख्य तथ्य क्या हैं?
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज: देश में केवल 50% ग्रामीण परिवारों के पास सरकारी स्वास्थ्य बीमा है, जबकि 34% के पास कोई स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है।
- सर्वेक्षण किये गए 61% परिवारों के पास जीवन बीमा नहीं है।
- निदान सुविधाओं तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः प्रशिक्षित कर्मियों की कमी के कारण निदान सुविधाओं की कमी है।
- आवागमन योग्य दूरी के दायरे में उपलब्ध डायग्नोस्टिक सेंटर (निदान सुविधा केंद्रों) तक केवल 39% प्रत्यर्थियों की पहुँच है।
- 90% प्रत्यर्थी डॉक्टर की सलाह के बिना रूटीन चेक अप अर्थात् नियमित स्वास्थ्य जाँच कराते ही नहीं हैं।
- सब्सिडी वाली दवाओं तक पहुँच: केवल 12.2% परिवारों को प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों से सब्सिडी वाली दवाइयों की सुविधा प्राप्त हो पाती है।
- केवल 26% प्रत्यर्थियों के पास स्वास्थ्य सुविधा केंद्र के परिसर में स्थित निशुल्क दवाइयाँ प्रदान करने वाले सरकारी मेडिकल स्टोर तक पहुँच है।
- 61% प्रत्यर्थियों के पास आवागमन की दूरी के भीतर निजी मेडिकल स्टोर तक पहुँच है।
- जल निकासी व्यवस्था: 20% परिवारों ने बताया कि उनके गाँवों में कोई जल निकासी व्यवस्था नहीं है और केवल 23% के पास अपने गाँवों में जल निकासी व्यवस्था है।
- 43% परिवारों के पास अपशिष्ट निपटान की कोई वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं थी और वे अपना अपशिष्ट कहीं भी फेंक देते थे।
- केवल 11% परिवार सूखे अपशिष्ट को जलाते हैं और अपने गीले अपशिष्ट को खाद में परिणत करते हैं, जबकि 28% ने बताया कि स्थानीय पंचायत ने घरेलू अपशिष्ट को एकत्र करने की योजना बनाई है।
- वृद्ध जनों की देखभाल: वृद्ध जन सदस्यों वाले 73% परिवारों को निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है और अधिकांश (95.7%) परिवार के देखभालकर्त्ताओं को प्राथमिकता देते हैं, मुख्य रूप से महिलाएँ (72.1%), जो घर-आधारित देखभाल पर देखभालकर्त्ता प्रशिक्षण की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- केवल 3% परिवारों ने भुगतान किये गए बाह्य देखभालकर्त्ताओं को नियुक्त किया है।
- 10% परिवार देखभालकर्त्ताओं की अनुपस्थिति के कारण पड़ोस के सहयोग पर निर्भर हैं।
- गर्भवती महिलाओं की देखभाल: गर्भवती महिलाओं की देखभाल करने वालों में अधिकांश पति (62.7%), सास (50%) और माताएँ (36.4%) शामिल हैं।
- रिपोर्ट में सुदृढ़ सामाजिक नेटवर्क, सहायक वातावरण और परिवार की देखभाल करने वालों के लिये क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- मानसिक स्वास्थ्य विकार: अधिकांश समय लैंगिक आधार पर 45% प्रत्यर्थियों को चिंता और बैचेनी होती है जो उनके मनःस्थिति को प्रभावित करती है।
- चिंता और बैचेनी युवा लोगों की तुलना में वृद्ध जनों के मानसिक स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करती है।
ग्रामीण भारत में खराब स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के क्या कारण हैं?
- आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय: भारत के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान (वर्ष 2019-20) के अनुसार, जेब से खर्च (OOPE) कुल स्वास्थ्य व्यय का 47.1% है।
- ओडिशा में 25% परिवारों को स्वास्थ्य सेवा लागत का सामना करना पड़ा और 40% परिवारों को अस्पताल में भर्ती होने के बाद स्वास्थ्य सेवा लागत का भुगतान करने के लिये या तो ऋण लेना पड़ा या फिर संपत्ति बेचनी पड़ी।
- योग्य कर्मियों की कमी: भारत ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी से ग्रस्त है।
- राज्यों में छत्तीसगढ़ में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में डॉक्टरों की सबसे अधिक रिक्तियाँ (71%) हैं, इसके बाद पश्चिम बंगाल (44%), महाराष्ट्र (37%) और उत्तर प्रदेश (36%) हैं।
- देश में सहायक नर्स और प्रसाविका (ANM) के लिये कुल रिक्तियाँ 5% हैं।
- डॉक्टर-रोगी अनुपात: भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात लगभग 1:1456 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित अनुपात 1:1000 से कम है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है, जहाँ डॉक्टरों की कमी के कारण यह अनुपात काफी अधिक है।
- कम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय: स्वास्थ्य पर राज्य का व्यय अभी भी काफी कम है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 1.28% है। ग्रामीण स्वास्थ्य अवसंरचना को प्रायः बजट का एक छोटा हिस्सा मिलता है, जिससे स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों को कम वित्तपोषित किया जाता है।
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज को सुदृढ़ करना: आयुष्मान भारत जैसी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की पहुँच का विस्तार करने की आवश्यकता है ताकि लगभग 350 मिलियन भारतीयों में स्वास्थ्य बीमा तक पहुँच से वंचित ‘लुप्त मध्यम वर्ग’ को शामिल किया जा सके।
- इससे आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी आएगी और परिवारों को स्वास्थ्य सेवा लागत के कारण कर्ज़ में डूबने से बचाया जा सकेगा।
- सभी फैक्ट्री मज़दूरों को राज्य प्रायोजित सहायकी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के तहत शामिल किया जाना चाहिये।
- ‘लुप्त मध्यम वर्ग’ में वे जनसंख्या समूह शामिल हैं, जो अनौपचारिक क्षेत्र के काम में लगे हुए हैं और बीमा प्रीमियम में राज्य सब्सिडी वाले योगदान से लाभ उठाने के लिये गरीब की श्रेणी में नहीं आते हैं।
- स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिये ग्रामीण पोस्टिंग को प्रोत्साहित करना: ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के इच्छुक स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिये उच्च वेतन, बेहतर जीवन-निर्वहन स्थिति और कैरियर में उन्नति के अवसर जैसे आकर्षक प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये।
- छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे उच्च रिक्तियों वाले राज्यों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- चिकित्सा शिक्षा का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग स्कूलों की संख्या में वृद्धि कर यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि छात्रों को ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करके प्रशिक्षित किया जाए।
- इससे डॉक्टर-रोगी अनुपात में सुधार करने में मदद मिलेगी।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर-रोगी अनुपात में अंतर को पाटने के लिये टेलीमेडिसिन और मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक का उपयोग किया जाना चाहिये।
- ये मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ को कम करते हुए दूरस्थ परामर्श और अनुवर्ती देखभाल प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।
- मोबाइल डायग्नोस्टिक इकाइयाँ: मोबाइल डायग्नोस्टिक इकाइयाँ तैनात करने की आवश्यकता है, जो दूरदराज़ के क्षेत्रों में जा सकें, आवश्यक नैदानिक सेवाएँ प्रदान कर सकें और रोगियों को लंबी दूरी की यात्रा करने की आवश्यकता को कम कर सकें।
- समुदाय-नेतृत्व वाले स्वच्छता कार्यक्रम:स्वच्छता सुविधाओं को बनाए रखने और अपशिष्ट प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रमों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये और स्थायी स्वच्छता प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें अनुकूलित किया जाना चाहिये।
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