Breaking

विनिवेश की स्थिति और प्राप्ति क्या है?

विनिवेश की स्थिति और प्राप्ति क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने 51,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया है, जो चालू वर्ष के बजट अनुमान से लगभग 21% कम है और संशोधित अनुमान से सिर्फ 1,000 करोड़ रुपए अधिक है। यह सात वर्षों में सबसे कम विनिवेश लक्ष्य भी है।

विनिवेश (Disinvestment):

  • परिचय:
    • विनिवेश प्रक्रिया में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में रणनीतिक या वित्तीय खरीदारों को सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री शामिल है, जिसे स्टॉक एक्सचेंजों पर शेयरों की बिक्री के माध्यम से या सीधे खरीदारों को शेयरों की बिक्री के माध्यम से किया जाता।
    • विनिवेश से प्राप्त आय का उपयोग विभिन्न सामाजिक और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये एवं सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु किया जाता है।
  • विधि:
    • अल्पांश विनिवेश (Minority Disinvestment): इसमें सरकार कंपनी में बहुमत रखती है, आमतौर पर 51% से अधिक शेयर अपने पास रखती है ताकि प्रबंधन नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके।
    • बहुमत विनिवेश (Majority Divestment): सरकार अधिग्रहण करने वाली इकाई को नियंत्रण सौंपती है लेकिन कुछ हिस्सेदारी बरकरार रखती है।
    • पूर्ण निजीकरण: कंपनी का 100% नियंत्रण खरीदार को दिया जाता है।
  • प्रक्रिया:
    • भारत में विनिवेश प्रक्रिया का संचालन निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) द्वारा किया जाता है, जो वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
    • DIPAM का प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार के निवेश का प्रबंधन करना और इन उद्यमों में सरकारी इक्विटी के विनिवेश की देख-रेख करना है।
    • सरकार ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय निवेश कोष (National Investment Fund- NIF) का गठन किया था जिसमें केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश से प्राप्त आय को चैनलाइज़ किया जाना था।

विनिवेश की आवश्यकता:

  • राजकोषीय दबाव में कमी: सरकार राजकोषीय दबाव को कम करने या उस वर्ष हेतु राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये विनिवेश कर सकती है।
    • वह विनिवेश से प्राप्त आय का उपयोग राजकोषीय घाटे को वित्तपोषित करने, अर्थव्यवस्था और विकास या सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों में निवेश करने एवं सरकारी ऋण चुकाने हेतु करती है।
  • निजी अभिकर्त्ता को प्रोत्साहन: विनिवेश संपत्ति निजी स्वामित्त्व और खुले बाज़ार में व्यापार को भी प्रोत्साहित करती है।
    • अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना, यह सुधारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने हेतु संकेत देता है।
    • इसके सफल होने पर अब सरकार को घाटे में चल रही इकाई के घाटे को निधि देने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • कार्यकुशलता में सुधार: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से हटकर सरकार इन उद्यमों की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार कर सकती है, क्योंकि निजी क्षेत्र का स्वामित्त्व और प्रबंधन नए विचारों एवं अधिक बाज़ारोन्मुख दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है।
  • संसाधनों का बेहतर आवंटन: सरकार विनिवेश के माध्यम से मुक्त संसाधनों को सामाजिक और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी अन्य प्राथमिकताओं हेतु पुनः आवंटित कर सकती है।
  • पारदर्शिता: विनिवेश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के कामकाज़ में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ा सकता है, क्योंकि निजी क्षेत्र के स्वामित्त्व तथा प्रबंधन के तहत वित्तीय एवं परिचालन संबंधी रिपोर्टिंग अधिक सख्त हो सकती है।

हाल के वर्षों में विनिवेश प्रदर्शन:

disinvestment-performance-in-recent-years

  • वर्ष 2014 के बाद से सरकार ने अपने विनिवेश लक्ष्यों को दो बार पूरा (लक्ष्य से अधिक) किया है ।
    • वर्ष 2017-18 में सरकार ने 72,500 करोड़ रुपए के लक्ष्य के मुकाबले 1 लाख करोड़ रुपए से कुछ अधिक की विनिवेश प्राप्तियाँ अर्जित कीं और वर्ष 2018-19 में यह आँकड़ा निर्धारित 80,000 करोड़ रुपए लक्ष्य के मुकाबले 94,700 करोड़ रुपए था।
  • सरकार ने अब तक वर्ष 2022-23 के विनिवेश लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है, अब तक 31,106 करोड़ रुपए प्राप्त किये गए हैं, जिनमें से 20,516 करोड़ रुपए, जो कि बजटीय अनुमान के एक-तिहाई के करीब है, जीवन बीमा निगम (LIC) में इसके 3.5% शेयरों के IPO (आरंभिक सार्वजनिक पेशकश) से आया है।

वर्ष 2023-24 के लिये विनिवेश योजना:

  • केंद्र वर्ष 2023-24 में विनिवेश किये जाने वाले CPSE की सूची में नई कंपनियों को नहीं जोड़ने की योजना बना रहा है।
  • सरकार ने राज्य के स्वामित्त्व वाली कंपनियों के पहले से ही घोषित और नियोजित निजीकरण पर निर्भर रहने का फैसला किया है।
    • इनमें IDBI बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI), कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ConCor), NMDC स्टील लिमिटेड, BEML, HLL LIFECARE आदि शामिल हैं।
    • संयोग से भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, SCI और ConCor के विनिवेश को सरकार ने वर्ष 2019 में मंज़ूरी दी थी लेकिन यह भी तक नहीं पूरी हो पाई है।

भारत में विनिवेश चुनौतियाँ:

  • राजनीतिक विरोध: विनिवेश भारत में राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा है, राजनीतिक दल तथा ट्रेड यूनियन अक्सर इस प्रक्रिया के विरोधी रहे हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की बिक्री का विरोध करते हैं।
  • मूल्यांकन के मुद्दे: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का मूल्यांकन एक चुनौती हो सकती है क्योंकि ये उद्यम नौकरशाही और गैर-बाज़ार-उन्मुख संरचनाओं के कारण बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
  • श्रमिक मुद्दे: विनिवेश श्रम संबंधी मुद्दों से अछूता नहीं है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में श्रमिकों को इन उद्यमों की बिक्री के बाद नौकरी छूटने या वेतन कटौती का डर बना रह सकता है।
  • खरीदारों से ब्याज की कमी: कुछ मामलों में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में अपनी हिस्सेदारी हेतु खरीदार खोजने के लिये संघर्षरत मालूम पड़ती है, खासकर अगर ये उद्यम वित्तीय रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं।
  • विनियामक चुनौतियाँ: विनिवेश की प्रक्रिया कई प्रकार के विनियमों और अनुमोदन प्रक्रियाओं के अधीन है, जो प्रक्रिया की गति को प्रभावित कर सकती है तथा इसकी जटिलता को बढ़ा सकती है।
  • कानूनी चुनौतियाँ: विनिवेश की प्रक्रिया को न्यायालयों में भी चुनौती दी जा सकती है क्योंकि वादी बिक्री की वैधता अथवा उन नियमों और शर्तों को चुनौती दे सकते हैं, जिनके तहत इसे आयोजित किया गया था।

आगे की राह

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!