भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण की क्या स्थिति है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण योजनाओं की स्थिति को लेकर चर्चाएँ शुरू हो गई हैं।
- इन कार्यक्रमों को देश में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शैक्षिक अंतर को कम करने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये अभिकल्पित किया गया था।
- उल्लेखनीय परिवर्तनों और विवादों के परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक आबादी पर इन कार्यक्रमों के प्रभावों को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
- परिचय:
- भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी शामिल हैं, आबादी का लगभग 20% है।
- वर्ष 2006 में जारी सच्चर समिति की रिपोर्ट ने इन असमानताओं को उजागर किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि मुसलमान विकास संकेतकों में कई अन्य समूहों से पीछे हैं।
- इन असमानताओं को दूर करने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2006 में शैक्षिक सशक्तीकरण, आर्थिक विकास, बुनियादी ढ़ाँचे में सुधार तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों की विशेष ज़रूरतों के लिये अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की स्थापना की।
- सरकार द्वारा किये जाने वाले प्रयासों में अल्पसंख्यक छात्रों के लिये छात्रवृत्ति एक महत्त्वपूर्ण घटक रही, जिसका उद्देश्य वित्तीय सहायता तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी शामिल हैं, आबादी का लगभग 20% है।
- अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये कल्याण योजनाओं की वर्तमान स्थिति:
- प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना: प्रारंभ में यह कक्षा 1 से 10 तक के अल्पसंख्यक छात्रों को प्रदान की गई। बाद में कक्षा 1 से 8 के लिये बंद कर दी गई, इसके संशोधित रूप में केवल कक्षा 9 और 10 को शामिल किया गया।
- छात्रवृत्ति बंद करते समय सरकार ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE अधिनियम) सभी छात्रों के लिये कक्षा 8 तक अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है।
- पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना: वर्ष 2023-24 में कक्षा 11 और उससे ऊपर (PHD तक) के छात्रों के लिये फंड 515 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,065 करोड़ रुपए हो गया।
- योग्यता-सह-साधन आधारित छात्रवृत्ति योजना: स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर लक्षित व्यावसायिक एवं तकनीकी पाठ्यक्रम, हालाँकि 2023-24 में इसे फंड में उल्लेखनीय कमी का सामना करना पड़ा।
- मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF): इसके अंतर्गत एम.फिल और पीएचडी करने वाले शोधार्थियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। हालाँकि इसे वर्ष 2022 में बंद कर दिया गया था।
- पढ़ो परदेश: विदेशी अध्ययन के लिये शिक्षा ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान की गई। हालाँकि इसे वर्ष 2022-23 से बंद कर दिया गया था।
- बेगम हज़रत महल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति: यह उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिये मेधावी छात्राओं हेतु छात्रवृत्ति योजना है। हालाँकि वर्ष 2023-24 में इसके अंतर्गत कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई है।
- नया सवेरा: इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये अल्पसंख्यक छात्रों को मुफ्त कोचिंग प्रदान की गई। हालाँकि वर्ष 2023-24 में इसे बंद कर दिया गया।
- नई उड़ान: विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अल्पसंख्यक छात्रों को सहायता प्रदान की गई। हालाँकि वर्ष 2023-24 में कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई है।
- मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPEMM): इसका उद्देश्य मदरसा शिक्षा को आधुनिक बनाना है। वर्ष 2023-24 में आवंटन घटाया गया।
- प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना: प्रारंभ में यह कक्षा 1 से 10 तक के अल्पसंख्यक छात्रों को प्रदान की गई। बाद में कक्षा 1 से 8 के लिये बंद कर दी गई, इसके संशोधित रूप में केवल कक्षा 9 और 10 को शामिल किया गया।
नोट: अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिये बजट आवंटन में भारी कमी देखी गई, वर्ष 2022-23 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये 38% की कमी हुई। फंडिंग में इस कटौती का विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर सीधा प्रभाव पड़ा है, फंड का कम उपयोग एक आम प्रवृत्ति है।
धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 25: यह सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के मुक्त पेशे, अभ्यास और प्रचार की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 26: यह प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके अनुभाग को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थानों की स्थापना एवं रखरखाव करने तथा धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 29: इसमें प्रावधान है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 30: अनुच्छेद के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।
नोट: भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँकि संविधान केवल धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित अन्य प्रमुख चुनौतियाँ:
- सांप्रदायिक हिंसा: एक प्रमुख चुनौती सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हैं, जहाँ धार्मिक आधार पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- इन घटनाओं के परिणामस्वरूप जीवन की हानि, संपत्ति की क्षति तथा अल्पसंख्यक समुदायों का विस्थापन होता है।
- यह चुनौती राजनीतिक हेरफेर, आर्थिक असमानता तथा ऐतिहासिक तनाव जैसे कारकों में निहित है जिनकी सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता है।
- अंतर-अनुभागीय भेदभाव: धार्मिक भेदभाव से परे, धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर महिलाओं को अंतर-अनुभागीय भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
- सामाजिक अलगाव: धार्मिक यहूदी बस्ती (Ghettoization), जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय विशिष्ट क्षेत्रों में एकत्रित होते हैं, जो उनके सामाजिक एकीकरण एवं आर्थिक अवसरों पर प्रभाव डालता है।
- साइबरबुलिंग तथा ऑनलाइन उत्पीड़न: धार्मिक अल्पसंख्यकों अथवा समूहों को लक्षित करने के लिये साइबरबुलिंग तथा ऑनलाइन उत्पीड़न का बढ़ना, उनकी ऑनलाइन सुरक्षा एवं मानसिक कल्याण को प्रभावित कर रहा है।
आगे की राह
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ: अल्पसंख्यक शिक्षा पहल हेतु वित्तपोषण तथा संसाधनों के पूरक के लिये सरकार, निजी क्षेत्र एवं गैर-लाभकारी संगठनों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
- इससे बजट कटौती की भरपाई करने तथा इन योजनाओं के लिये निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
- डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिये तैयार किये गए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे डिजिटल युग में पीछे न रहें। इससे सूचना तथा अवसरों तक उनकी पहुँच बढ़ सकती है।
- स्थानीय स्तर पर पहल: अंतर-धार्मिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने हेतु ज़मीनी स्तर पर की गई पहल विश्वास एवं सामाजिक एकजुटता के निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
- समुदाय-आधारित संघर्ष समाधान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है जो अंतर-धार्मिक और अंतर-सामुदायिक विवादों को संबोधित करने में विशेषज्ञ हों।
- ये केंद्र मध्यस्थता और परामर्श सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
- पारंपरिक ज्ञान संरक्षण: धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं को पहचानना तथा संरक्षित करना। यह डिजिटल दस्तावेज़ीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण के माध्यम से किया जा सकता है।
- सामाजिक प्रभाव आकलन और निवेश: समयबद्ध सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करने और धार्मिक अल्पसंख्यक-स्वामित्व वाले व्यवसायों एवं स्टार्टअप में सामाजिक प्रभाव निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इससे आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और असमानताओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
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