भारत में औपचारिक रोज़गार की स्थिति क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कर्मचारी भविष्य निधि (Employees Provident Fund- EPF) डेटा के अनुसार, EPF में योगदानकर्त्ताओं की संख्या में शुद्ध वृद्धि देखने को मिलती है, परंतु यह भारत में बेरोज़गारी की ज़मीनी हकीकत के ठीक विपरीत है।
- भारत सरकार वर्ष 2017 से औपचारिक रोज़गार सृजन को मापने के लिये EPF के डेटा का उपयोग कर रही है।
औपचारिक रोज़गार:
- परिचय:
- औपचारिक रोज़गार से आशय ऐसे रोज़गार से है जहाँ काम के नियम और शर्तें श्रम कानूनों तथा रोज़गार अनुबंधों द्वारा विनियमित व संरक्षित होते हैं।
- इसकी कुछ विशेषताएँ हैं जो इसे अनौपचारिक रोज़गार से अलग बनाती हैं।
- मुख्य विशेषताएँ:
- लिखित अनुबंध: औपचारिक रोज़गार में आमतौर पर कार्य की शर्तों को रेखांकित करने वाला एक लिखित रोज़गार अनुबंध शामिल होता है, जिसमें काम से संबंधित ज़िम्मेदारियाँ, काम के घंटे, मुआवज़ा, लाभ तथा अन्य नियम और शर्तें शामिल होती हैं।
- सामाजिक सुरक्षा: औपचारिक रोज़गार में शामिल कर्मचारी अक्सर स्वास्थ्य बीमा, सेवानिवृत्ति निधि, भविष्य निधि, बेरोज़गारी लाभ और वित्तीय सुरक्षा के अन्य रूपों जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ के हकदार होते हैं।
- श्रमिक अधिकार: औपचारिक रोज़गार वाले कर्मचारियों के पास कानून द्वारा संरक्षित विशिष्ट श्रम संबंधी अधिकार हैं, जैसे- ट्रेड यूनियनों में शामिल होने का अधिकार, सामूहिक सौदेबाज़ी, अनुचित बर्खास्तगी के खिलाफ सुरक्षा और विवादों के मामले में कानूनी सहायता तक पहुँच आदि।
- नियमित भुगतान: औपचारिक रोज़गार में कर्मचारियों को आमतौर पर एक निश्चित समय पर नियमित रूप से वेतन मिलता है, जो उन्हें एक स्थिर आय स्रोत प्रदान करता है।
- अनौपचारिक रोज़गार:
- अनौपचारिक रोज़गार से तात्पर्य उन कार्यों से है जो श्रम कानूनों द्वारा विनियमित अथवा संरक्षित नहीं हैं, जिनमें व्यवस्था का अभाव होता है और जो अक्सर सरकारी निरीक्षण के दायरे से बाहर संचालित होते हैं ।
- अनौपचारिक रोज़गार के कारण उत्पन्न असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ आय असमानता में वृद्धि और उत्पादकता में कमी के चलते आर्थिक विकास को बाधित कर सकती हैं।
औपचारिक रोज़गार के बारे में EPF डेटा:
- EPFO की वार्षिक रिपोर्ट में हाल के वर्षों में लगातार PF योगदान वाले नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या में स्थिरता या गिरावट देखी गई है।
- वर्ष 2012 से 2022 के बीच EPF में नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या 30.9 मिलियन से बढ़कर 46.3 मिलियन हो गई।
- वर्ष 2017 और 2022 के बीच नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या 45.11 मिलियन से बढ़कर केवल 46.33 मिलियन हुई, जो इस अवधि के दौरान विकास में मंदी को दर्शाता है।
- कुल EPF नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लेकिन नियमित योगदानकर्त्ताओं में तदनुरूप वृद्धि न्यूनतम थी।
- वर्ष 2017-2022 के बीच कुल EPF नामांकन 210.8 मिलियन से बढ़कर 277.4 मिलियन हो गया।
- यह EPF नामांकन की कुल संख्या (277.4 मिलियन) और नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या (46.33 मिलियन) के बीच अंतर को इंगित करता है कि नामांकन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा नियमित योगदान के परिणामस्वरूप नहीं है।
- अधिकांश EPF नामांकन अनियमित PF योगदान के साथ अस्थायी या आकस्मिक नौकरियों से संबंधित हैं।
- योगदानकर्त्ताओं में गिरावट के लिये अग्रणी कारक:
- EPFO में अपने ही डेटा पर विवाद है और उसने नियमित योगदानकर्त्ताओं पर मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करना बंद कर दिया।
- महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया, जिससे EPF योगदानकर्त्ताओं में गिरावट आई।
- भारत सरकार ने औपचारिक रोज़गार डेटा के अन्य स्रोतों, जैसे रोज़गार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय (Directorate General of Employment and Training- DGET) की उपेक्षा की, जो वर्ष 2013 से प्रकाशित नहीं किया गया है।
भारत में रोज़गार संकट का परिदृश्य:
- बेरोज़गारी दर:
- वर्ष 2021-22 के लिये राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021-22 में बेरोज़गारी दर 4.1% थी।
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR):
- सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी(Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार, वित्तीय वर्ष (2022-23) में भारत का LFPR घटकर 39.5% हो गया।
- यह वर्ष 2016-17 के बाद से सबसे कम LFPR है।
- पुरुषों की अनुमानित श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 66% है, जो विगत सात वर्षों के निचले पायदान पर है, जबकि महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) मात्र 8.8% है।
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) कामकाज़ी उम्र की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक आयु) का एक भाग है जो ऐसे नियोजित या बेरोज़गार लोगों को संदर्भित करती है, जो रोज़गार के इच्छुक हैं या उसकी तलाश में हैं ।
- सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी(Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार, वित्तीय वर्ष (2022-23) में भारत का LFPR घटकर 39.5% हो गया।
भारत में रोज़गार की कमी के कारण:
- औपचारिक एवं गुणवत्तापूर्ण रोज़गार का अभाव:
- चीन के आर्थिक मॉडल के विपरीत औपचारिक और नियमित रोज़गार, उचित वेतन का अभाव भारत के मध्यम वर्ग के विकास में बाधा उत्पन्न करता है।
- गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की कमी के कारण अधिक योग्य युवा सीमित नौकरियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे मज़बूत आर्थिक विकास के दावों के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- सामाजिक कारक:
- भारत में जाति व्यवस्था अभी भी प्रचलित है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य करना वर्जित माना जाता है।
- दीर्घ व्यवसाय वाले संयुक्त परिवारों में ऐसे कई व्यक्ति मिल जाएंगे जो बेरोज़गार हैं और परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
- कृषि का प्रभुत्व:
- भारत में लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है, जबकि भारत में कृषि अविकसित है तथा केवल मौसमी रोज़गार प्रदान करती है।
- लघु उद्योगों का पतन:
- औद्योगिक विकास का कुटीर एवं लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- कुटीर उद्योगों का उत्पादन घटने के कारण काफी कारीगर बेरोज़गार हो गए।
- सीमित शिक्षा प्रणाली:
- वर्तमान के पूंजीवादी विश्व में नौकरियों में अत्यधिक विशिष्टता आ गई है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक उचित प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
- इस प्रकार कई लोग जो रोज़गार की तलाश में हैं, वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।
भारत में सुरक्षित श्रम का अधिकार:
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारतीय संविधान में श्रम को समवर्ती सूची में रखा गया है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारें इस विषय पर कानून बना सकती हैं।
- न्यायिक व्याख्या:
- रणधीर सिंह बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “भले ही ‘समान काम के लिये समान वेतन’ का सिद्धांत भारत के संविधान में परिभाषित नहीं है, लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,16 और 39 (c) के तहत इस लक्ष्य को हासिल किया जाना है।
- विधिक ढाँचा:
- श्रम कानूनों को सरल बनाने के लिये और कार्य-दशाओं में सुधार के लिये सरकार द्वारा कई विधायी तथा प्रशासनिक पहलें की गई हैं। इस संबंध में अभी हाल ही में 4 श्रम संहिताओं का एक समेकित समूह भी लाया गया है।
- वेतन संहिता, 2019
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020
- श्रम कानूनों को सरल बनाने के लिये और कार्य-दशाओं में सुधार के लिये सरकार द्वारा कई विधायी तथा प्रशासनिक पहलें की गई हैं। इस संबंध में अभी हाल ही में 4 श्रम संहिताओं का एक समेकित समूह भी लाया गया है।
बेरोज़गारी रोकने हेतु सरकार की पहलें:
- आजीविका और उद्यम हेतु सीमांत व्यक्तियों के लिये समर्थन (SMILE)
- पी.एम.-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपूर्ण हितग्राही)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
- स्टार्ट-अप इंडिया योजना
- रोज़गार मेला
आगे की राह
- EPF जैसे एकल डेटा स्रोत पर भरोसा करना, भारत के श्रम बाज़ार की जटिलता को नज़रअंदाज कर सकता है। PLFS जैसे व्यापक श्रम आँकड़े स्पष्ट तस्वीर प्रदान करते हैं और देश में नौकरियों के संकट को दूर करने के लिये तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
- भारत में औपचारिक रोज़गार संकट के लिये अंतर्निहित मुद्दों का समाधान करने और औपचारिक रोज़गार सृजन हेतु अनुकूल वातावरण बनाने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- अधिक औपचारिक रोज़गार के अवसर पैदा करने और अनौपचारिक क्षेत्रों पर निर्भरता को कम करने के लिये विनिर्माण तथा कुछ सेवाओं जैसे उच्च श्रम तीव्रता वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- ऐसे कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है जो उद्योग की मांगों के अनुरूप हों, ताकि कार्यबल की रोज़गार क्षमता बढ़ सके और बेहतर गुणवत्ता वाले औपचारिक रोज़गार मिल सकें।
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