भारत में मुर्गीपालन की स्थिति क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में ब्रॉयलर चिकन उद्योग पारंपरिक, छोटे पैमाने की कृषि पद्धति से बदलकर एक अत्यधिक संगठित और एकीकृत कृषि व्यवसाय में परिवर्तित हो गया है।
- इस विकास ने छोटे किसानों को भी वाणिज्यिक मुर्गीपालन में भाग लेने में सक्षम बनाया है, जिससे उत्पादकता और लाभप्रदता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
ब्रायलर मुर्गियाँ क्या हैं?
- ब्रॉयलर मुर्गियाँ: ब्रॉयलर मुर्गियाँ एक प्रकार की मुर्गियाँ हैं जिन्हें विशेष रूप से मांस उत्पादन के लिये पाला जाता है। मुर्गियों का पालन कुक्कुट उद्योग के अंतर्गत आता है।
- लाभ:
- तीव्र वृद्धि दर: ब्रॉयलर को आनुवंशिक रूप से इस प्रकार निर्मित किया जाता है कि वे असाधारण तीव्र गति से विकसित होकर अपेक्षाकृत कम अवधि (आमतौर पर 4 से 6 सप्ताह) में वध योग्य वज़न तक पहुँच जाते हैं।
- मांस-हड्डी अनुपात: इनका चयन बड़े स्तन की मांसपेशियों को विकसित करने के लिये किया गया है, जो उपभोक्ताओं के लिये मुर्गियों का सबसे वांछित हिस्सा है।
- कुशल फीड परिवर्तन: ब्रॉयलर कुशलतापूर्वक चारे को मांस में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे वे व्यावसायिक उत्पादन के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाते हैं।
- लाभ:
- कुक्कुट पालन: कुक्कुट पालन और अंडे के उत्पादन के उद्देश्य से पक्षियों, मुख्य रूप से मुर्गियों, बत्तखों, टर्की तथा हंस को पालतू बनाने एवं पालने की प्रथा है। यह दुनिया भर में कृषि क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
भारत में कुक्कुट उद्योग की स्थिति:
- वैश्विक रैंकिंग और उत्पादन: खाद्य और कृषि संगठन कॉर्पोरेट सांख्यिकीय डेटाबेस (FAOSTAT) उत्पादन डेटा (2020) के अनुसार, भारत विश्व में अंडा उत्पादन में तीसरा तथा मांस उत्पादन में 8वें स्थान पर है।
- देश में अंडा उत्पादन वित्तीय वर्ष 2014-15 में 78.48 बिलियन से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021-22 में 129.60 बिलियन नग हो गया है। देश में मांस का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2014-15 में 6.69 मिलियन टन से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021-22 में 9.29 मिलियन टन हो गया है।
- देश में ब्रॉयलर मांस का उत्पादन सालाना लगभग 5 मिलियन टन (MT) होने का अनुमान है।
- कुक्कुट चारा उत्पादन: वर्ष 2022 में, भारत का कुल कुक्कुट चारा उत्पादन प्रतिवर्ष 27 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच गया।
- विकास का रुझान: भारत में कुक्कुट उद्योग ने प्रभावशाली वृद्धि दर्शायी है, जिसमें कुक्कुट मांस उत्पादन 8% की औसत वार्षिक दर से वृद्धि प्रदर्शित कर रहा है और वित्तीय वर्ष 2014-15 तथा वित्तीय वर्ष 2021-22 के बीच अंडे का उत्पादन 7.45% की वृद्धि हुई है।
- बाज़ार का आकार और निर्यात: भारतीय कुक्कुट बाज़ार वर्ष 2023 में 2,099.2 बिलियन रुपए तक पहुँच गया और वर्ष 2024 से वर्ष 2032 तक 8.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि का अनुमान है।
- वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान, भारत ने 64 देशों को कुक्कुट और कुक्कुट उत्पादों का निर्यात किया, जिससे 134 मिलियन अमेरीकी डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ।
- शीर्ष अंडा उत्पादक राज्य: आंध्र प्रदेश (20.13%), तमिलनाडु (15.58%), तेलंगाना (12.77%), पश्चिम बंगाल (9.93%) और कर्नाटक (6.51%) हैं।
भारत में पोल्ट्री उद्योग के तेज़ी से विकास के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं?
- वर्टिकल इंटीग्रेशन: कंपनियाँ अनुबंध कृषि मॉडल का प्रयोग करती हैं, किसानों को एक दिन के चूजे (Day-old chick: DOC), चारा और तकनीकी सहायता प्रदान करती हैं।
- यह दृष्टिकोण सुव्यवस्थित संचालन, कम जोखिम और प्रजनन से लेकर विपणन तक पूरी आपूर्ति शृंखला पर बेहतर नियंत्रण में सहायता करता है, जिससे निरंतर गुणवत्ता तथा दक्षता सुनिश्चित होती है।
- तकनीकी उन्नति: स्वचालित फीडिंग और जलवायु नियंत्रण प्रणालियों के साथ पर्यावरण नियंत्रित (EC) शेड के उपयोग से विकास दक्षता में सुधार हुआ है तथा मृत्यु दर में कमी आई है।
- इसके अतिरिक्त, उन्नत प्रजनन तकनीकों ने ब्रॉयलर मुर्गियों में विकास दर और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया है।
- कुक्कुट/पॉल्ट्री उत्पादों की बढ़ती मांग: शहरी आबादी में वृद्धि और आहार संबंधी प्राथमिकताओं में बदलाव, जिसमें अधिक प्रसंस्कृत तथा खाने के लिये तैयार पॉल्ट्री उत्पादों की ओर रुझान शामिल है, ने प्रोटीन स्रोत के रूप में चिकन की बढ़ती मांग को बढ़ावा दिया है।
- सरकारी सहायता और नीतियाँ: परिवहन और कोल्ड स्टोरेज के लिये सरकारी पहल, सब्सिडी व बेहतर अवसंरचना ने पॉल्ट्री क्षेत्र में निवेश एवं विकास को बढ़ावा दिया है, जिससे आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में वृद्धि हुई है।
- किसानों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन: अनुबंध कृषि मॉडल गारंटीकृत भुगतान एवं प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिससे किसानों के लाभ मार्जिन में वृद्धि होती है और व्यापक संचालन को प्रोत्साहन मिलता है।
- इसके अतिरिक्त, वित्तीय संस्थानों से उधार एवं ऋण सुविधाएँ पॉल्ट्री फार्मिंग निवेश का समर्थन करती हैं।
- निर्यात के अवसर: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कुक्कुट/पॉल्ट्री उत्पादों के निर्यात की संभावना भारतीय पॉल्ट्री उद्योग के लिये एक गतिशील अवसर प्रस्तुत करती है।
- हालाँकि यह वैश्विक बाज़ार की स्थितियों, व्यापार नीतियों और अन्य निर्यातक देशों से प्रतिस्पर्द्धा से भी प्रभावित होता है।
भारत में कुक्कुट उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- दूषित वातावरण: बैटरी पिंजरों में मुर्गियों के उच्च घनत्व वाले मुर्गी पालन के परिणामस्वरूप खराब वायु गुणवत्ता, अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याएँ और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
- 5,000 से अधिक पक्षियों वाली कुक्कुट इकाइयों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा प्रदूषणकारी उद्योगों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके लिये सख्त नियामक अनुपालन की आवश्यकता है।
- फीड मूल्य अस्थिरता: मकई और सोयाबीन जैसे फीड/चारा अवयवों की कीमतों में उतार-चढ़ाव कुक्कुट पालन की लाभप्रदता को प्रभावित कर सकता है। इस चुनौती का समाधान करने के लिये एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना और वैकल्पिक फीड स्रोतों की खोज़ करना आवश्यक है।
- पशुओं के साथ क्रूर व्यवहार: औद्योगिक कुक्कुट उद्योग संचालन में प्रायः अमानवीय व्यवहार शामिल होते हैं जैसे कि अंग-भंग, भुखमरी और अतिप्रजन, जो पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 का उल्लंघन करते हैं।
- वित्तीय और परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: उद्योग को बड़े ऋण, अनौपचारिक सुविधाओं पर निर्भरता और जटिल अनुबंध कृषि व्यवस्था जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है। बाज़ार की अस्थिरता और उद्योग के भागीदारों के दबाव के कारण किसानों को प्रायः काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
- अन्य प्रोटीन स्रोतों से प्रतिस्पर्द्धा: कुक्कुट बाज़ार को वनस्पति आधारित प्रोटीन जैसे अन्य प्रोटीन स्रोतों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जो स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण लोकप्रिय हो रहे हैं।
- आपूर्ति शृंखला की अक्षमताएँ: परिवहन, कोल्ड स्टोरेज और वितरण नेटवर्क सहित आपूर्ति शृंखला में अपर्याप्तता, बर्बादी का कारण बन सकती है तथा पॉल्ट्री उत्पादों की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है, जिससे बाज़ार की वृद्धि में बाधा आ सकती है।
- अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे: कुक्कुट उद्योग मीथेन, CO2, जल अपशिष्ट और ठोस अपशिष्ट सहित महत्त्वपूर्ण अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिससे मृदा एवं जल प्रदूषण होता है।
- अत्यधिक खाद का संचय भूमि की क्षमता से अधिक हो जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है और मक्खियों तथा मच्छरों जैसे रोगवाहकों के लिये प्रजनन स्थल बनते हैं।
भारत में पोल्ट्री उद्योग की पहल क्या हैं?
- पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF): पशुपालन और डेयरी विभाग राष्ट्रीय पशुधन मिशन के “उद्यमिता विकास तथा रोज़गार सृजन” (EDEG) के तहत इसे कार्यान्वित कर रहा है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): NLM के तहत विभिन्न कार्यक्रम जिसमें ग्रामीण बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट (RBPD) और इनोवेटिव पोल्ट्री प्रोडक्टिविटी प्रोजेक्ट (IPPP) को लागू करने के लिये राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पशु रोगों के नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (ASCAD) योजना: “पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण” (Livestock Health and Disease Control-LH&DC) के तहत ASCAD, जिसमें आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री रोगों जैसे रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को शामिल किया गया है, जिसमें एवियन इन्फ्लूएंज़ा जैसे आकस्मिक तथा विदेशी रोगों के नियंत्रण और रोकथाम भी शामिल है।
- व्यावसायिक वातावरण को बेहतर बनाना: कुक्कुट उत्पाद निर्यात से संबंधित चुनौतियों का समाधान करके और अनौपचारिक क्षेत्र की इकाइयों को एकीकृत करके कारोबार को आसान बनाना।
- अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना: कुक्कुट क्षेत्र में नवाचार और प्रगति को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना।
- पर्यावरणीय निगरानी को मज़बूत करना: कड़े पर्यावरणीय नियमों को लागू करना, विशेष रूप से CPCB द्वारा कुक्कुट उद्योग को अत्यधिक प्रदूषणकारी ‘ऑरेंज श्रेणी’ क्षेत्र के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने के आलोक में।
- यह वर्तमान चुनौतियों, जैसे बर्ड फ्लू संकट से निपटने तथा व्यापक जलवायु आपातकाल को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरण और पशु कल्याण विनियमों को संरेखित करना: सुनिश्चित करना कि भारत के पर्यावरण कानून और विनियमन सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों से सीखे गए सबक को एकीकृत करते हुए वन हेल्थ सिद्धांत को प्रतिबिंबित करें।
- पशु कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र अखंडता और जैवविविधता संरक्षण के बीच संबंध पर ज़ोर देना।
- सामाजिक जागरूकता अभियान: सरकार को “सामाजिक जागरूकता अभियान” के माध्यम से जागरूकता उत्पन्न करने के लिये धनराशि निर्धारित करना चाहिये, जिससे मुर्गीपालन/पोल्ट्री फार्मिंग से संबंधित प्रमुख पहलुओं पर समुदायों और आबादी को संवेदनशील बनाया जा सके।
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