भारत में महिलाएं और पुरुष 2023 की क्या स्थिति है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने भारत में महिला और पुरुष- 2023 शीर्षक वाले रिपोर्ट का 25वाँ संस्करण ज़ारी किया है।
- यह भारत में लैंगिक डायनामिक्स का एक व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करता है, जिसमें जनसंख्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक भागीदारी और निर्णय लेने में भागीदारी पर डेटा शामिल है।
- यह समाज में मौज़ूद असमानताओं को समझने के लिये लिंग आधारित, शहरी-ग्रामीण विभाजन और भौगोलिक क्षेत्र द्वारा अलग-अलग डेटा प्रस्तुत करता है।
वर्ष 2023 की रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- जनसंख्या: वर्ष 2036 तक भारत की जनसंख्या 152.2 करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है।
- लैंगिक अनुपात में सुधार: भारत में लिंगानुपात वर्ष 2011 में 943 से बढ़कर वर्ष 2036 तक 952 महिला प्रति 1000 पुरुष होने की उम्मीद है।
- वर्ष 2011 में 48.5% की तुलना में वर्ष 2036 में महिला प्रतिशत 48.8% होने की उम्मीद है। वर्ष 2036 में भारत की जनसंख्या में स्त्रियों की संख्या अधिक होने की उम्मीद है।
- आयु जनांकिकी: 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का अनुपात वर्ष 2011 से वर्ष 2036 तक घटने का अनुमान है, जो संभवतः जनन क्षमता में गिरावट के कारण है।
- 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी के अनुपात में काफी वृद्धि होने का अनुमान है।
- आयु विशिष्ट प्रजनन दर (ASFR): वर्ष 2016 से 2020 तक 20-24 और 25-29 आयु वर्ग में ASFR क्रमशः 135.4 और 166.0 से घटकर 113.6 और 139.6 हो गई है।
- उपर्युक्त अवधि के लिये 35-39 आयु वर्ग हेतु ASFR 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गई है, जो दर्शाता है कि महिलाएँ अपने जीवन में व्यवस्थित होने के बाद परिवार का विस्तार करने के बारे में सोच रही हैं।
- ASFR को उस आयु वर्ग की प्रति हज़ार महिला आबादी में महिलाओं के एक विशिष्ट आयु वर्ग में जीवित जन्मों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- वर्ष 2020 में किशोर प्रजनन दर निरक्षर आबादी के लिये 33.9 थी जबकि साक्षर लोगों के लिये 11.0 थी।
- उपर्युक्त अवधि के लिये 35-39 आयु वर्ग हेतु ASFR 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गई है, जो दर्शाता है कि महिलाएँ अपने जीवन में व्यवस्थित होने के बाद परिवार का विस्तार करने के बारे में सोच रही हैं।
- मातृ मृत्यु दर (MMR): भारत ने अपने MMR (वर्ष 2018-20 में प्रति लाख जीवित जन्मों पर 97) को कम करने की प्रमुख उपलब्धि को सफलतापूर्वक हासिल किया है। (SDG लक्ष्य – 2030 तक MMR को 70 तक कम करना)।
- मातृ मृत्यु अनुपात को एक वर्ष के दौरान प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर एक निश्चित समय अवधि के दौरान मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है।
- शिशु मृत्यु दर (IMR): वर्ष 2020 में पुरुष IMR और महिला IMR दोनों प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 28 शिशुओं के स्तर पर बराबर थे।
- शिशु मृत्यु दर (IMR) का तात्पर्य एक विशिष्ट वर्ष या अवधि में पैदा हुए बच्चे की एक वर्ष की आयु तक पहुँचने से पूर्व मृत्यु की संभावना है।
- पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर: यह वर्ष 2015 में 43 से घटकर वर्ष 2020 में 32 हो गई है। लड़के और लड़कियों के बीच 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर का अंतर भी कम हुआ है।
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23 के दौरान पुरुष LFPR 75.8 से बढ़कर 78.5 हो गया है और इसी अवधि के दौरान महिला LFPR 23.3 से बढ़कर 37 हो गई है।
- LFPR को अर्थव्यवस्था में 16-64 आयु वर्ग में कार्यरत आबादी के उस वर्ग के रूप में परिभाषित किया जाता है जो वर्तमान में कार्यरत है या रोज़गार की तलाश में है।
- चुनाव में भागीदारी: वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 65.6% हो गई और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गई।
- महिला उद्यमिता: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2016 और वर्ष 2023 के बीच कुल 1,17,254 स्टार्ट-अप को मान्यता दी है।
- इनमें से 55,816 स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो कुल मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप का 47.6% है।
नोट:
- वर्तमान में भारतीय आयु पिरामिड त्रिकोणीय आकार प्रदर्शित करते हैं। MoSPI के डेटा के अनुसार वर्ष 2036 तक पिरामिड शीर्ष की ओर पतला होते हुए घंटी के आकार में परिवर्तित हो जाएगा।
- जनसंख्या पिरामिड लिंग और आयु समूह के अनुसार लोगों के वितरण का एक ग्राफिकल प्रतिरूप है।
- त्रिकोणीय आकार के पिरामिड: इनका आधार विस्तृत होता है और ये कम विकसित देशों के लिये विशिष्ट होते हैं। उच्च जन्म दर के कारण निम्न आयु समूहों में इनकी आबादी अधिक होती है। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश, नाइजीरिया आदि।
- घंटी के आकार का ऊपर की ओर से पतला: यह दर्शाता है कि जन्म और मृत्यु दर लगभग बराबर हैं, जिससे जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है। उदाहरण के लिये,ऑस्ट्रेलिया।
जनसांख्यिकी संक्रमण मॉडल क्या है?
- जनसांख्यिकी संक्रमण मॉडल (जनसंख्या चक्र) जनसंख्या वृद्धि दर में परिवर्तन और जनसंख्या पर प्रभाव को दर्शाता है।
- इसे वर्ष 1929 में अमेरिकी जनसांख्यिकीविद् वॉरेन थॉम्पसन द्वारा विकसित किया गया था।
- इसे चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है:
- चरण 1: पहले चरण में उच्च प्रजनन क्षमता और उच्च मृत्यु दर होती है क्योंकि महामारी और परिवर्तनशील खाद्य आपूर्ति के कारण होने वाली मौतों की भरपाई के लिये लोग अधिक प्रजनन करते हैं।
- जनसंख्या वृद्धि धीमी है और अधिकांश लोग कृषि में संलग्न हैं, जहाँ परिवार बड़े हैं।
- जीवन प्रत्याशा कम है, लोग ज्यादातर अशिक्षित हैं और उनके पास प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर है।
- दो सौ वर्ष पहले विश्व के सभी देश इसी चरण में थे।
- चरण 2: दूसरे चरण की शुरुआत में प्रजनन क्षमता उच्च रहती है, लेकिन समय के साथ इसमें गिरावट आती है। इसके साथ ही मृत्यु दर में भी कमी आती है।
- स्वच्छता और स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार से मृत्यु दर में कमी आती है। इस अंतर के कारण जनसंख्या में शुद्ध वृद्धि अधिक होती है।
- चरण 3: प्रजनन और मृत्यु दर दोनों में काफी गिरावट आती है। जनसंख्या या तो स्थिर होती है या धीरे-धीरे बढ़ती है।
- जनसंख्या शहरीकृत, साक्षर और उच्च तकनीकी ज़ानकारी वाली हो जाती है तथा ज़ानबूझकर परिवार के आकार को नियंत्रित करती है।
- इससे पता चलता है कि मनुष्य अत्यंत लचीला है और अपनी प्रजनन क्षमता को समायोजित करने में सक्षम है।
- चरण 1: पहले चरण में उच्च प्रजनन क्षमता और उच्च मृत्यु दर होती है क्योंकि महामारी और परिवर्तनशील खाद्य आपूर्ति के कारण होने वाली मौतों की भरपाई के लिये लोग अधिक प्रजनन करते हैं।
भारत की जनसांख्यिकी स्थिति से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
- पुत्र को अधिक प्राथमिकता देना: भारत कई वर्षों से जन्म के समय विषम लिंगानुपात का सामना कर रहा है, जो चिंता का कारण रहा है।
- बेटों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे परिवार का नाम आगे बढ़ाएँगे और माता-पिता की आर्थिक मदद करेंगे, जबकि बेटियों को दहेज के खर्च और शादी के बाद परिवार छोड़ने के कारण बोझ के रूप में देखा जाता है।
- वृद्ध होती जनसंख्या: जबकि भारत में युवा लोगों की संख्या सबसे अधिक है, फिर भी वृद्धावस्था तेज़ी से बढ़ रही है। वर्तमान में 153 मिलियन (60 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले) वृद्धों की जनसंख्या 2050 तक 347 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- स्वास्थ्य परिणामों में असमानता: पूर्वोत्तर राज्यों में, असम में शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक है, उसके बाद मेघालय और अरुणाचल प्रदेश का स्थान है।
- ग्रामीण और शहरी भारत में बच्चों के स्वास्थ्य परिणामों में अभी भी व्यापक असमानता है।
- महिलाओं की LFPR में बाधा: गहरी जड़ें जमाए हुए पितृसत्तात्मक मानदंड और पारंपरिक लिंग भूमिकाएँ अक्सर महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच को सीमित करती हैं।
- सामाजिक अपेक्षाएँ महिलाओं की देखभाल करने वाली और गृहिणी की भूमिका को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिससे श्रम बल में उनकी सक्रिय भागीदारी हतोत्साहित हो सकती है।
- चुनावों में सूचित विकल्प का अभाव: मतदान करते समय सूचित विकल्प बनाने के लिये जनता में शिक्षा का अभाव है। मतदाता अपनी जाति और धार्मिक पहचान के आधार पर भी प्रभावित होते हैं।
- अनौपचारिक महिला उद्यमिता: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम मुख्य रूप से ग्रामीण, छोटे पैमाने के और अनौपचारिक हैं। वे ज़्यादातर घर से काम करती हैं जिसमें कपड़ा, परिधान, हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण आदि शामिल हैं।
- उनके पास औपचारिक वित्तपोषण और सामाजिक सुरक्षा लाभ का अभाव है।
भारत में समग्र जनसांख्यिकीय विकास से संबंधित पहल क्या हैं?
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA)
- आयुष्मान भारत योजना
- डिजिटल स्वास्थ्य मिशन
- मिशन इंद्रधनुष (MI)
- स्टैंड-अप इंडिया योजना
- संतुलित लिंग अनुपात: गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 को लागू करने के लिये स्कैन केंद्रों के मालिकों के साथ समय-समय पर बैठकें आयोजित की जानी चाहिये। अवैध गर्भपात करने वाले तथाकथित डॉक्टरों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- अवांछित गर्भधारण को रोकने के लिये ओरल पिल्स, इंजेक्शनों और अंतर्गर्भाशयी उपकरणों जैसे गर्भनिरोधकों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- वृद्ध आबादी को संभालना: भारत को वरिष्ठ नागरिकों के लिये विशेष स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने, समाज को समृद्ध बनाने हेतु अंतर-पीढ़ीगत संबंधों को बढ़ावा देने और वृद्धजनों के लिये स्वास्थ्य सेवा तथा सामाजिक सेवाओं को सुलभ एवं किफायती बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की आवश्यकता है। इससे सिल्वर इकॉनमी को बढ़ावा मिलेगा।
- सिल्वर इकोनॉमी में वे सभी आर्थिक गतिविधियाँ, उत्पाद और सेवाएँ शामिल हैं जो 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तैयार की गई हैं।
- महिलाओं की LFPR को बढ़ावा देना: बाल देखभाल सब्सिडी से माताओं को श्रम बल में प्रवेश करने के लिये समय मिलता है और महिला रोज़गार पर इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- महिला उद्यमिता को समर्थन: महिला उद्यमों का औपचारिकीकरण, संस्थागत वित्त और कौशल विकास से महिला उद्यमियों के लिये अधिक भागीदारी व समानता सुनिश्चित हो सकती है।
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