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जीवन और मृत्यु से अलग तीसरी अवस्था क्या है? - श्रीनारद मीडिया

जीवन और मृत्यु से अलग तीसरी अवस्था क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हालिया शोध में एक “तीसरी अवस्था” को प्रस्तावित किया गया है जिसमें जीवन और मृत्यु की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती दी गई है, इसमें दर्शाया गया है कि कुछ कोशिकाएँ और ऊतक जीव की मृत्यु के बाद भी कार्य करना जारी रख सकते हैं, जिससे कोशिकीय क्षमताओं एवं जीव विज्ञान तथा चिकित्सा के लिये इसके निहितार्थों के बारे में नवीन प्रश्न उठते हैं।

प्रस्तावित ‘तीसरी अवस्था’ क्या है?

  • परिचय: “तीसरी अवस्था” की अवधारणा ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है, जहाँ कोशिकाएँ और ऊतक ऐसी विशेषताएँ इंगित करते हैं जिससे जीवन एवं मृत्यु की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती मिलती है। मृत्यु को जैविक कार्यों की पूर्ण समाप्ति के रूप में देखने के बजाय, इस शोध से संकेत मिलता है कि कुछ कोशिकाएँ जीव की मृत्यु के बाद भी कार्य और अनुकूलन करना जारी रख सकती हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • ज़ेनोबोट्स: मृत मेंढक भ्रूणों की त्वचा की कोशिकाओं में स्वतः ही नई बहुकोशिकीय संरचनाएँ बनती देखी गई हैं, जिन्हें ज़ेनोबोट्स के नाम से जाना जाता है। 
      • इन ज़ेनोबोट्स द्वारा अपने मूल जैविक कार्यों से परे व्यवहार प्रदर्शित किया गया तथा सिलिया (छोटे बाल जैसे उभार) का उपयोग नेविगेट करने एवं गति करने के लिये किया गया, जबकि जीवित मेंढक भ्रूणों में सिलिया का उपयोग म्यूकस को गति देने के लिये किया जाता है।
      • ज़ेनोबोट्स में सेल्फ-रेप्लिकेशन हो सकता है, जिससे इनकी नवीन प्रतिकृति बन सकती  हैं। यह प्रक्रिया परिचित रेप्लिकेशन विधियों से भिन्न है, जिसमें जीव के भीतर यह प्रक्रिया होती है।
    • एन्थ्रोबॉट्स: अध्ययनों से पता चला है कि मानव फेफड़े की कोशिकाएँ स्वतः ही छोटे, बहुकोशिकीय जीवों का निर्माण कर सकती हैं जिन्हें एन्थ्रोबॉट्स कहा जाता है।
      • मानव श्वासनली (श्वसन तंत्र का एक भाग) कोशिकाओं से निर्मित ये जैव-रोबोट अद्वितीय व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जिससे वे गतिशील हो सकते हैं, स्वयं की मरम्मत कर सकते हैं तथा निकटवर्ती क्षतिग्रस्त न्यूरॉन कोशिकाओं को पुनर्स्थापित कर सकते हैं।
    • तीसरी अवस्था के निहितार्थ: तीसरी अवस्था की धारणा जीवन और मृत्यु के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करती है तथा इससे सुझाव मिलता है कि जैविक प्रणालियाँ रैखिक जीवन चक्रों से बंधी हुई नहीं हो सकती हैं।
      • मृत्यु के बाद कोशिकाओं की कार्यप्रणाली समझने से अंग संरक्षण और प्रत्यारोपण में सफलता मिल सकती है तथा दाता अंगों की व्यवहार्यता के साथ रोगी परिणामों में सुधार हो सकता है।

मृत्यु के बाद कोशिकाएँ किस प्रकार जीवित रहती हैं?

  • कोशिकीय दीर्घायु: किसी जीव की मृत्यु के बाद विभिन्न कोशिकाओं की  जीवित रहने की अवधि  अलग-अलग होती है।
    • श्वेत रक्त कोशिकाएँ: आमतौर पर मृत्यु के बाद 60 से 86 घंटों के अंदर नष्ट हो जाती हैं।
    • कंकालीय मांसपेशी कोशिकाएँ: चूहों में इन्हें 14 दिनों तक पुनर्जीवित किया जा सकता है।
    • फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ: भेड़ और बकरी की कोशिकाओं को मृत्यु के लगभग एक महीने बाद तक संवर्द्धित किया जा सकता है।
  • प्रभावित करने वाले कारक: मृत्यु के बाद कोशिकाओं और ऊतकों के जीवित रहने को कई कारक प्रभावित करते हैं:
    • पर्यावरणीय परिस्थितियाँ: तापमान, ऑक्सीजन का स्तर और संरक्षण विधियाँ कोशिका व्यवहार्यता को प्रभावित करती हैं।
    • चयापचय गतिविधि: कम ऊर्जा मांग वाली कोशिकाएँ, निरंतर ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता वाली कोशिकाओं की तुलना में लंबे समय तक जीवित रहती हैं।
    • परिरक्षण तकनीक: क्रायोप्रिज़र्वेशन (कम तापमान पर जैविक नमूनों को संग्रहीत करना) से ऊतक के नमूनों (जैसे अस्थि मज्जा) की कार्यक्षमता को बनाए रखा जा सकता है।
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