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भारत में वृद्धाश्रमों और वृद्धों की स्थिति के संबंध में विचार क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में वृद्धाश्रमों और वृद्धों की स्थिति के संबंध में विचार क्या है?

भारत में वृद्धाश्रमों और वृद्धों की स्थिति के संबंध में विचार क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जैसे-जैसे भारत तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है और परिवार छोटी इकाइयों में बँट रहे हैं, आमतौर पर शहरी एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वृद्धाश्रमों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही, वृद्ध लोगों की देखभाल का प्रबंधन अब पेशेवरों या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा संभाला जाने लगा है जहाँ उन्हें सरकार और स्थानीय परोपकारी व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त होता है।

हालाँकि इन वृद्धाश्रमों के संबंध में नियामक निरीक्षण की अनुपस्थिति, स्पष्ट रूप से स्थापित मानक संचालन प्रक्रियाओं की कमी और स्वास्थ्य देखभाल के उपायों की अनौपचारिक प्रकृति के कारण बहुत संभव है कि यहाँ रहते वृद्धों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर एक उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता हो।

वृद्धाश्रमों के प्रति एक औपचारिक दृष्टिकोण अब भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण नीति और नियोजन चिंतन का विषय बनना चाहिये।

जनसंख्या में वृद्धों का अनुपात

  • यूएन वर्ल्ड पापुलेशन एजिंग रिपोर्ट (UN World Population Ageing) के अनुसार भारत की वृद्ध आबादी (60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोग) का वर्ष 2050 तक वर्तमान में लगभग 8% के स्तर से बढ़कर लगभग 20% हो जाने का अनुमान है।
  • वर्ष 2050 तक वृद्ध लोगों की संख्या में 326% की वृद्धि होगी, जबकि इनमें 80 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में 700% की वृद्धि होगी। इस प्रकार वे भारत में सबसे तेज़ी से वृद्धि कर रहे आयु वर्ग होंगे।
    • वृद्ध आबादी में लगातार वृद्धि का एक प्रमुख कारण जीवन प्रत्याशा में अभूतपूर्व वृद्धि है जो आर्थिक विकास के एक सतत् दौर और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच में वृद्धि से प्रेरित हुई है।
  • एक ऐसी जनसांख्यिकीय परिदृश्य में, जहाँ वृद्ध आबादी की वृद्धि दर युवा आबादी की तुलना में कहीं अधिक है, सबसे बड़ी चुनौती वृद्ध व्यक्तियों को गुणवत्तापूर्ण, सस्ती एवं सुलभ स्वास्थ्य एवं देखभाल सेवाएँ प्रदान करना है।
    • ऐसे में यह आवश्यक है कि हमारी नीतिगत रूपरेखा और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ इस वास्तविकता का सामना कर सकने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार हों।

वृद्धाश्रम (Old Age Homes- OAHs): एक नई वास्तविकता

  • वृद्धाश्रम एकल परिवार प्रणाली (Nuclear Family System) के उद्भव का परिणाम हैं। पारिवारिक उपेक्षा, बेहतर अवसरों की तलाश में बच्चों के प्रवासन/पलायन से परिवारों के विघटन और शिक्षा, प्रौद्योगिकी आदि के मामले में नई पीढ़ी के साथ तालमेल बिठा सकने में असमर्थता जैसे कारक वृद्ध व्यक्तियों को वृद्धाश्रम की सहायता लेने को विवश करते हैं, जहाँ वे अपने जैसे अन्य लोगों के साथ रह सकते हैं।
  • कई बार तो वृद्ध लोग वृद्धाश्रम में ही स्वतंत्रता और मैत्रीपूर्ण माहौल के लिये अधिक सहज महसूस करते हैं जहाँ अपने जैसे अन्य लोगों के साथ रहते, संवाद करते वे सुखद समय व्यतीत करते हैं।
    • कई बार तो वे परिवार के सदस्यों से भी कुछ असंलग्नता रखने लगते हैं और वृद्धाश्रम ही में अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं।
  • हालाँकि ये वृद्धाश्रम हमेशा ही अच्छी सुविधाएँ प्रदान नहीं करते, प्रबंधन द्वारा सभी वृद्ध व्यक्तियों की एकसमान अच्छी देखभाल नहीं की जाती और कुछ वृद्धाश्रम कई प्रकार के प्रतिबंध भी लागू करते हैं।
    • निम्न गुणवत्तापूर्ण भोजन और उनकी अपर्याप्त मात्रा की शिकायतें भी सामने आती रही हैं। शयनकक्षों और शौचालयों की साफ-सफाई उचित प्रकार से नहीं की जाती।
    • कुछ वृद्धाश्रमों का प्रबंधन वृद्ध व्यक्तियों के बच्चों द्वारा किये गए भुगतान या दान का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं करता जिससे उनके असहाय माता-पिता परेशानियों के शिकार होते हैं।
    • वृद्धाश्रमों में ऐसे दुर्व्यवहार और दुरुपयोग के मामले प्रायः चर्चा में आते रहते हैं, लेकिन स्थिति में सुधार के लिये शायद ही कभी कोई कार्रवाई की जाती है।

वृद्ध व्यक्तियों के शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर

  • हैदराबाद स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा ‘हैदराबाद ओकुलर मॉर्बिडिटी इन एल्डरली स्टडी’ (Hyderabad Ocular Morbidity in Elderly Study- HOMES) शीर्षक वाले हालिया अध्ययन से पता चलता है कि इन वृद्धाश्रमों के लगभग 30% निवासी (अध्ययन में शामिल 40 गृहश्रमों के 1,500 से अधिक प्रतिभागी) किसी-न-किसी तरह के दृष्टि दोष के शिकार थे।
  • इस अध्ययन में दृष्टि दोष के कुछ ‘अनदेखे’ प्रभाव भी दर्ज किये गए। दृष्टि दोष के शिकार वृद्धों में से कई अवसाद से ग्रस्त थे। वास्तव में दृष्टि और श्रवण दोष दोनों के शिकार वृद्धों में अवसाद की दर उन लोगों की तुलना में पाँच गुना अधिक थी जो इन दोषों से मुक्त थे।
  • हमारे घर, भवन और सामाजिक वातावरण वृद्ध व्यक्तियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए जाते हैं। जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है और उनके चलने-फिरने की क्षमता कमज़ोर पड़ती है, उनके गिरने-पड़ने और चोट खाने का जोखिम बढ़ता जाता है। दृष्टि या श्रवण दोष जैसे विकारों की स्थिति में यह जोखिम और अधिक बढ़ जाता है।
    • सुगम और वृद्धों के अनुकूल संरचनाओं के विकास के लिये विचार करने के बजाय उनकी गतिशीलता को ही नियंत्रित कर देने की सामान्य प्रवृत्ति पाई जाती है।
  • कार्यात्मक कौशल रखने वाले वृद्धों को भी रसोई कार्य, सिलाई या साफ-सफाई जैसे दैनिक कार्यों से दूर रहने के लिये कहा जाता है। यह उनकी सामाजिक गतिशीलता, स्वतंत्रता की भावना और सेहत को प्रभावित करता है। ये सभी स्थितियाँ उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और अवसाद की ओर धकेलती हैं।

आगे की राह

  • बुनियादी स्वास्थ्य जाँच सुविधाएँ: वृद्धाश्रमों की वर्तमान स्थिति ऐसे आश्रयों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच बुनियादी स्वास्थ्य जाँच के लिये औपचारिक उपायों के निर्माण की आवश्यकता को बढ़ाती है।
    • इसके अंतर्गत ब्लड शुगर एवं ब्लड प्रेशर की जाँच, आवधिक दृष्टि एवं श्रवण जाँच और मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये एक साधारण प्रश्नावली को शामिल किया जा सकता है।
    • इस तरह के हस्तक्षेप (जैसे मॉर्निंग-वॉकर्स के लिये सार्वजनिक मैदानों के बाहर मोटरसाइकिल-संचालित जाँच) अधिक व्यय की भी आवश्यकता नहीं रखते और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पहचान करने और सहायता प्रदान करने में सुदीर्घ भूमिका निभा सकते हैं।
  • स्वास्थ्य संस्थानों की भूमिका: अगला कदम यह होगा कि ऐसी जाँचों से चिह्नित स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करने के लिये औपचारिक व्यवस्था का निर्माण किया जाए। इस संदर्भ में सार्वजनिक, निजी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित अस्पतालों की प्रमुख भूमिका होगी।
    • स्वास्थ्य संस्थानों को ऐसे पैकेजों के व्यापक सेट की पेशकश करने की आवश्यकता होगी जो वृद्ध व्यक्तियों के लिये विशेष रूप से तैयार किए गए हों और ये केवल मधुमेह, कार्डियोलॉजी या कैंसर के लिये अलग-अलग समाधानों तक सीमित न हों।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: वृद्धाश्रमों के सहयोग एवं समर्थन करने के लिये एक सुदृढ़ सार्वजनिक नीति का होना महत्त्वपूर्ण है। इन वृद्धाश्रमों को उनकी सुविधाओं, भवनों और सामाजिक वातावरण को वृद्ध व्यक्तियों के अनुकूल बनाने के लिये नीतिगत हस्तक्षेपों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये।
    • डिज़ाइन, वास्तुकला एवं नागरिक सुविधाओं पर ज़मीनी स्तर से विचार किया जाना चाहिये और ये नवोन्मेषी उपाय सभी निवासियों के लिये उपलब्ध हों, न कि केवल महँगे गृहश्रमों में रहने वाले व्यक्तियों तक सीमित हों।
  • ज़रावस्था स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ: पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER), चंडीगढ़ के एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश मेडिकल स्कूलों में ज़रा-चिकित्सा (Geriatrics) विषय में विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
    • देश में जो भी ज़रा-चिकित्सा देखभाल सुविधा उपलब्ध है, वह शहरी क्षेत्रों के तृतीयक अस्पतालों तक ही सीमित है और अत्यधिक महँगा है। ज़रावस्था स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अंग बनाया जाना चाहिये।
    • केंद्र को एक व्यापक निवारक पैकेज लेकर आना चाहिये जो पोषण, व्यायाम और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने पर ध्यान देने के साथ सामान्य ज़रावस्था समस्याओं के बारे में जागरूकता प्रदान करे।
  • वृद्ध व्यक्ति समावेशी समाज का निर्माण: वृद्धाश्रमों में सभी वृद्ध व्यक्तियों के लिये उचित स्वास्थ्य सुविधाएँ सुनिश्चित करने के प्रभावी तरीकों में से एक यह होगा कि इन आश्रयों में उनकी सीमित एवं कम संख्या सुनिश्चित की जाए।
    • वृद्ध व्यक्ति समाज के लिये संपत्ति की तरह हैं, बोझ की तरह नहीं और इस संपत्ति का लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें वृद्धाश्रमों में अलग-थलग करने के बजाय मुख्यधारा की आबादी में आत्मसात किया जाए।
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