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भारत में विमानन क्षेत्र को सक्रिय करने के क्या उपाय किये जा रहे है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में विमानन क्षेत्र को सक्रिय करने के क्या उपाय किये जा रहे है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के विमानन उद्योग में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इस द्रुत विस्तार ने अनुभवी पायलटों की गंभीर कमी सहित महत्त्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर किया है।

भारत में विमानन उद्योग की स्थिति: 

  • परिचय: भारत का विमानन उद्योग एक सामूहिक क्षेत्र है जो देश के भीतर नागरिक उड्डयन के सभी पहलुओं को शामिल करता है।
    • इसमें विभिन्न घटक शामिल हैं, जैसे एयरलाइंस, विमान पत्तन, विमान निर्माण, विमानन सेवाएँ और नियामक प्राधिकरण।
  • स्थिति:
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बन गया है। भारत के विमान पत्तन की क्षमता के आधार पर वर्ष 2023 तक सालाना 1 अरब यात्राओं के परिचालन की उम्मीद है।
    • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत के हवाई परिवहन क्षेत्र (हवाई माल ढुलाई समेत) में FDI प्रवाह अप्रैल 2000 से दिसंबर 2022 के दौरान 3.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
  • संबद्ध चुनौतियाँ: 
    • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
      • हवाई अड्डों पर भीड़भाड़: मुंबई और दिल्ली सहित भारत के कई प्रमुख हवाई अड्डों को व्यापक भीड़ का सामना करना पड़ता है, जिससे विलंब एवं परिचालन अक्षमता जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
      • सीमित क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: हालाँकि प्रमुख शहर अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, छोटे शहरों और क्षेत्रों में प्रायः पर्याप्त हवाई अड्डा बुनियादी ढाँचे और हवाई कनेक्टिविटी का अभाव होता है।
    • उच्च परिचालन लागत:
      • विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) और हवाई अड्डे के शुल्क पर उच्च कर परिचालन, लागत में वृद्धि में योगदान करते हैं।
        • कुछ भारतीय राज्य जेट ईंधन पर 30% तक कर वसूलते हैं, जिससे छोटे उड़ान मार्ग छोटी एयरलाइन्स के लिये अलाभकारी हो जाते हैं।
    • पायलट की कमी:
      • भारत में एयरलाइंस प्रायः अनुभवी पायलटों की भर्ती करने और उन्हें बनाए रखने के लिये संघर्षरत रहते हैं, जिससे व्यवधान उत्पन्न होता है और श्रम लागत में वृद्धि होती है।
        • विमान ऑर्डरों में बढ़ोतरी, कुल 1,100 से अधिक नए विमानों के कारण उड़ान चालक दल के हज़ारों सदस्यों की आवश्यकता है।
        • हालाँकि भारत में पायलट प्रशिक्षण की औसत लागत लगभग 1 करोड़ रुपए है।
          • एयरलाइंस प्रायः विभिन्न बहाने से कैडेट पायलटों से अतिरिक्त शुल्क वसूलते हैं, जिससे वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाता है।
    • सुरक्षा खतरे: आतंकवाद और अपहरण से परे विमानन बुनियादी ढाँचे को अब साइबर खतरों का सामना करना पड़ रहा है जो संचालन को बाधित कर सकता है और यात्री डेटा को उजागर कर सकता है।
    • अन्य चुनौतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि भारतीय वायु सेना के डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा मानकों के प्रबंधन के कारण बड़ी संख्या में नागरिक पायलटों को नौकरी से निकाल दिया गया है।
      • इसके अलावा उड़ान प्रशिक्षण केंद्र के संचालन से जुड़ी कई चुनौतियाँ हैं, जो स्वतंत्रता-पूर्व समय के नियमों को लागू करने वाले अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार के कारण और भी बढ़ गई हैं।
  • संबंधित सरकारी पहल: 
    • घरेलू रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवाओं के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर 18% से घटाकर 5% कर दी गई।
    • क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करने और नागरिकों को सस्ती हवाई यात्रा प्रदान करने के लिये टियर-II एवं टियर-III शहरों में असेवित तथा कम सेवित हवाई अड्डों के हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये RCS-UDAN को लॉन्च किया गया था।
    • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016  

भारत में विमानन क्षेत्र को पुनः सक्रिय करने के उपाय:

  • पर्यावरण-अनुकूल पहल: उत्सर्जन एवं परिचालन लागत को कम करने, कम दूरी की उड़ानों के लिये इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड विमानों के विकास और प्रयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये सतत् विमानन ईंधन (SAF) और कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • जून 2021 में स्पाइसजेट ने विश्व आर्थिक मंच (WEF) के तत्वावधान में वर्ष 2030 तक 100 मिलियन घरेलू यात्रियों के लिये SAF ब्लेंड आधारित उड़ान के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की।
  • रख-रखाव हेतु डिजिटल ट्विन्स:
    • विमान की आभासी प्रतिकृतियाँ बनाने, पूर्वानुमानित रख-रखाव को सक्षम करने और डाउनटाइम को कम करने के लिये डिजिटल ट्विन तकनीक को लागू करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    • विश्वस्तरीय सुविधाएँ सुनिश्चित करते हुए हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे के विकास में सह-निवेश हेतु सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • भारत में PPP हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 के 5 से बढ़कर वर्ष 2024 में 24 हो जाने की संभावना है।
  • पायलट की कमी का समाधान:
    • विमानन स्कूलों और अकादमियों के सहयोग से सब्सिडी आधारित पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करने की आवश्यकता है।
      • यह इच्छुक एविएटर्स के लिये पायलट प्रशिक्षण को और अधिक किफायती बना सकता है।
  • विमानन पर्यटन पैकेज: भारत को विमानन पर्यटन का केंद्र बनाने के लिये विमानन उद्योग को पर्यटन उद्योग के साथ मिलकर अभिनव विमानन-आधारित पर्यटन पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है, जो सुरम्य उड़ानें, साहसिक अनुभव और हवाई फोटोग्राफी पर्यटन की पेशकश कर सकें।
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