भारत-UAE संबंधों को मज़बूत बनाने के लिये क्या उपाय किये जा रहे है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements- FTAs) के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब वह सार्थक बाज़ार पहुँच हासिल करने तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारतीय उद्योग के एकीकरण को सुविधाजनक बनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि भारत केवल किसी समूह में शामिल होने के लिये व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, बल्कि FTA वार्ताओं का नया दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भारतीय अर्थव्यवस्था में नई उभरती गतिशीलता की आवश्यकता के अनुरूप प्रतिक्रिया देगा।
हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के वाणिज्य मंत्रियों द्वारा भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) पर हस्ताक्षर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में नई उभरती गतिशीलता के प्रति भारत की प्रतिक्रिया का ऐसा ही एक उदाहरण है।
भारत और UAE
भारत-UAE द्विपक्षीय संबंध
- भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने वर्ष 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित किये थे।
- अगस्त 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमीरात यात्रा ने दोनों देशों के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत के रूप में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक बढ़ावा दिया।
- इसके साथ ही, जनवरी 2017 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस की भारत यात्रा के दौरान यह सहमति बनी कि द्विपक्षीय संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक उन्नत किया जाए।
- इस भावना ने भारत-UAE व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के लिये वार्ता शुरू करने को गति प्रदान की।
UAE का आर्थिक महत्त्व
- संयुक्त अरब अमीरात न केवल मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया के संदर्भ में बल्कि विश्व स्तर पर भी एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्र के रूप में उभरा है।
- UAE की रणनीतिक स्थिति के कारण इसका उभार एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्र के रूप में हुआ है।
- हाल के वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात ने अपने ‘विज़न 2021’ के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने और तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के एक दस्तावेज के अनुसार वर्ष 2012 से UAE की अर्थव्यवस्था के विकास का नेतृत्व गैर-हाइड्रोकार्बन क्षेत्रों ने किया है जो देश की अर्थव्यवस्था के सफल विविधीकरण को रेखांकित करता है।
- यद्यपि संयुक्त अरब अमीरात ने अपनी अर्थव्यवस्था को विविध बनाया है, लेकिन हाइड्रोकार्बन क्षेत्र अभी भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, जिसके बाद सेवा और विनिर्माण क्षेत्र अपना योगदान दे रहे हैं।
- सेवा क्षेत्र के अंतर्गत वित्तीय सेवाएँ, थोक एवं खुदरा व्यापार और रियल एस्टेट एवं व्यावसायिक सेवाएँ मुख्य योगदानकर्त्ता हैं।
भारत-UAE आर्थिक संबंध
- वित्तीय वर्ष 2021-22 के पहले नौ माह में भारत-UAE का कुल उत्पाद व्यापार 52.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का रहा जो UAE को भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनाता है।
- दोनों देशों द्वारा अगले पाँच वर्षों में द्विपक्षीय उत्पाद व्यापार को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर और सेवाओं के व्यापार को 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है।
- दो देशों के बीच व्यापार समझौता दोतरफा निवेश प्रवाह का भी प्रवर्तन होता है। भारत में संयुक्त अरब अमीरात का निवेश लगभग 11.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर आकलित किया गया है जो इसे भारत में नौवाँ सबसे बड़ा निवेशक देश बनाता है।
- इसके अलावा, कई भारतीय कंपनियों ने UAE में संयुक्त उद्यम के रूप में या उसके विशेष आर्थिक क्षेत्रों में (सीमेंट, निर्माण सामग्री, वस्त्र, इंजीनियरिंग उत्पाद, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स आदि के लिये) अपनी विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित की हैं।
- कई भारतीय कंपनियों ने पर्यटन, आतिथ्य, खानपान, स्वास्थ्य, खुदरा क्षेत्र और शिक्षा के क्षेत्र में भी निवेश किया है।
- भारत की संशोधित FTA रणनीति के तहत सरकार ने कम से कम छह देशों/क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है जिसमें अंतरिम व्यापार समझौते (Early Harvest Deal/Interim Trade Agreement) के लिये UAE सूची में शीर्ष पर है। यूके, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इज़राइल और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के कई देश इस सूची में शामिल अन्य प्रमुख देश/क्षेत्र हैं।
- इससे पूर्व UAE ने भी पहले भारत और सात अन्य देशों (यूके, तुर्की, दक्षिण कोरिया, इथियोपिया, इंडोनेशिया, इज़राइल और केन्या) के साथ द्विपक्षीय आर्थिक समझौतों को आगे बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा की थी।
अंतरिम व्यापार समझौता
- किसी मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने से पहले दो देशों या व्यापारिक ब्लॉकों के बीच कुछ वस्तुओं के व्यापार पर टैरिफ को उदार बनाने हेतु एक अंतरिम व्यापार समझौता (Interim Trade Agreement- ITA) अथवा ‘अर्ली हार्वेस्ट ट्रेड एग्रीमेंट’ ((Early Harvest Trade Agreement) का उपयोग किया जाता है।
- अंतरिम समझौते पर सरकार का ज़ोर रणनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित हो सकता है ताकि न्यूनतम प्रतिबद्धताओं के साथ एक बेहतर समझौता संपन्न किया जा सके और विवादास्पद मुद्दों को बाद में हल करने का अवसर हो।
- हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने मार्च 2022 में एक ITA संपन्न करने की योजना की घोषणा की है।
- भारत वर्ष 2022 के पूर्वार्द्ध में यूके के साथ भी एक अंतरिम व्यापार समझौता संपन्न कर लेने की इच्छा रखता है, जबकि UAE के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया गया है।
आगे की राह
- भारत-UAE व्यापार समझौते के लाभों को बढ़ाना: निर्यात में भारत की नई शक्ति के साथ UAE जैसे महत्त्वपूर्ण देश के साथ एक व्यापार समझौते का होना विकास की गति को बनाए रखने में मदद करेगा।
- चूँकि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव घटित हो रहा है, भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और अन्य इंजीनियरिंग उत्पादों के लिये संयुक्त अरब अमीरात एक आकर्षक निर्यात बाज़ार की स्थिति रखता है।
- चूँकि संयुक्त अरब अमीरात और भारत दोनों ही कई महत्त्वपूर्ण देशों के साथ FTAs को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे हैं, न केवल इन दोनों देशों की कंपनियाँ बल्कि अन्य भौगोलिक क्षेत्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी संयुक्त अरब अमीरात और भारत को निवेश के लिये एक आकर्षक बाज़ार के रूप में देख सकेंगी।
- GCC के साथ बेहतर संबंधों का मार्ग प्रशस्त करना: UAE कई क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों का एक पक्षकार/भागीदार है जिसमें खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC) के देश भी शामिल हैं।
- GCC के एक अंग के रूप में संयुक्त अरब अमीरात सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन एवं ओमान के साथ मज़बूत आर्थिक संबंध रखता है और इन देशों के साथ एक साझा बाज़ार एवं कस्टम यूनियन साझा करता है।
- ग्रेटर अरब फ्री ट्रेड एरिया (GAFTA) समझौते के तहत संयुक्त अरब अमीरात को सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, क़तर, ओमान, जॉर्डन, मिस्र, इराक़, लेबनान, मोरक्को, ट्यूनीशिया, फिलिस्तीन, सीरिया, लीबिया और यमन तक मुक्त व्यापार पहुँच हासिल है।
- संयुक्त अरब अमीरात के साथ मुक्त व्यापार समझौते से भारत के लिये UAE के रणनीतिक क्षेत्र में प्रवेश का मार्ग खुलेगा और अफ्रीकी बाज़ार एवं इसके विभिन्न व्यापार भागीदारों तक अपेक्षाकृत आसान पहुँच प्राप्त होगी जो भारत को विशेष रूप से हथकरघा, हस्तशिल्प, वस्त्र और फार्मा क्षेत्र में वहाँ की आपूर्ति शृंखला का अंग बनने में मदद करेगा।
- GCC के एक अंग के रूप में संयुक्त अरब अमीरात सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन एवं ओमान के साथ मज़बूत आर्थिक संबंध रखता है और इन देशों के साथ एक साझा बाज़ार एवं कस्टम यूनियन साझा करता है।
- UAE की गैर-टैरिफ बैरियर का अनुपालन: UAE की टैरिफ संरचना GCC (औसत टैरिफ दर 5% लागू) के साथ जुड़ी हुई है, इसलिये गैर-टैरिफ बैरियर (Non-Tariff Barriers- NTBs) को संबोधित करने का दायरा अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- NTBs का प्रभाव गैर-टैरिफ उपायों (Non-Tariff Measures- NTMs) के माध्यम से देखा जा सकता है जो अधिकांशतः ‘सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी’ (SPS) और ‘टेक्निकल बैरियर्स टू ट्रेड’ (TBT) द्वारा कवर किया जाता है।
- SPS अधिसूचनाएँ मुख्य रूप से जीवित कुक्कुट, मांँस और प्रसंस्कृत भोजन से संबंधित हैं, जबकि TBT अधिसूचनाओं का संबंध मछली, खाद्य योजक, मांँस, रबर, विद्युत मशीनरी आदि से है।
- ये अनुपालन भारतीय निर्यातकों के लिये चुनौती पेश करते हैं।
- FTA समझौते को NTBs के उपयोग में अधिक पारदर्शिता और पूर्वानुमेयता लाने का प्रयास करना चाहिये ताकि उनका अनुपालन कम बोझपूर्ण बने।
- NTBs का प्रभाव गैर-टैरिफ उपायों (Non-Tariff Measures- NTMs) के माध्यम से देखा जा सकता है जो अधिकांशतः ‘सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी’ (SPS) और ‘टेक्निकल बैरियर्स टू ट्रेड’ (TBT) द्वारा कवर किया जाता है।
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