भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये कौन-से अवसर मौजूद हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में सबसे युवा है, जहाँ की औसत आयु 29 वर्ष है। भारत अपनी विशाल आबादी के साथ अभी एक ऐसे चरण में है जिसमें इसकी कार्यशील आयु आबादी की वृद्धि हो रही है और इसका वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात वर्ष 2075 में 37% तक पहुँच जाएगा। वृद्ध आबादी में वृद्धि के साथ वैश्विक जनसंख्या वृद्ध होती जा रही है, जबकि प्रजनन दर में भारी कमी आई है। इससे भारत को अपनी अनुकूल जनसांख्यिकीय संरचना का लाभ उठाने का एक अनूठा अवसर प्राप्त हो रहा है, जो इसकी आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास को बढ़ावा दे सकता है। हालाँकि, इस क्षमता को प्राप्त करने के लिये भारत को कुछ प्रमुख चुनौतियों को संबोधित करने और विभिन्न क्षेत्रों में कुछ रणनीतिक सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है।
भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये कौन-से अवसर मौजूद हैं?
- उच्च आर्थिक विकास:
- एक विशाल और युवा कार्यशील आबादी श्रम आपूर्ति, उत्पादकता, बचत एवं निवेश को बढ़ा सकती है, जिससे उच्च जीडीपी विकास और प्रति व्यक्ति आय की स्थिति प्राप्त हो सकती है।
- वृहत् प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
- एक कुशल कार्यबल वैश्विक बाज़ार में, विशेष रूप से विनिर्माण, सेवाओं और कृषि जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
- भारत विकसित देशों के वृद्ध कार्यशील बाज़ारों (ageing markets) में अपने निर्यात की बढ़ती मांग से भी लाभान्वित हो सकता है।
- सामाजिक विकास:
- यह स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता और सामाजिक संसंजन में सुधार लाकर सामाजिक विकास में योगदान दे सकता है।
- एक सशक्त आबादी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और नागरिक सहभागिता में भी अधिक सक्रिय रूप से भागीदरी कर सकती है।
- नवाचार और उद्यमिता:
- एक रचनात्मक आबादी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला एवं संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दे सकती है।
- एक आकांक्षी आबादी आर्थिक विविधीकरण के लिये नए बाज़ारों और अवसरों का सृजन भी कर सकती है।
जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ
- बेरोज़गारी और रोज़गारहीन विकास:
- उपयुक्त नीतियों के बिना, कार्यशील आयु आबादी में वृद्धि से बेरोज़गारी बढ़ सकती है, जिससे आर्थिक और सामाजिक संकट बढ़ सकते हैं।
- भारत में रोज़गारहीन विकास व्यापक रूप से मौजूद है, जहाँ मौजूदा कार्यशील आयु आबादी का भी पूरी तरह समावेश नहीं हो पाता है।
- ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (CMIE) के अनुसार जनवरी 2023 में भारत की बेरोज़गारी दर 7.1 प्रतिशत के स्तर पर थी।
- महिला श्रम बल भागीदारी में गिरावट:
- सामाजिक-सांस्कृतिक कारक और बढ़ती पारिवारिक आय भारत की महिला श्रम बल भागीदारी (FLFP) में गिरावट के प्रमुख कारण रहे हैं।
- योग्यता-प्राप्त महिलाओं का एक बड़ा भाग स्थानीय क्षेत्र में (विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में) उपयुक्त रोज़गार अवसर न होने से लेकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों और विवाह जैसे विभिन्न कारणों से कार्यबल से बाहर हो जाता है।
- भारत की FLFP दर वैश्विक औसत से नीचे है।
- CMIE के आँकड़ों के अनुसार, भारत में जहाँ पुरुष श्रम बल भागीदारी दर 67.4% थी, वहीं महिला श्रम बल भागीदारी दर 9.4% तक निम्न थी (दिसंबर 2021 तक की स्थिति)।
- कौशल और मानव विकास की कमी:
- वर्तमान समय में बढ़ते नए क्षेत्रों और अवसरों के कारण ‘स्किलिंग’ और ‘रीस्किलिंग’ महत्त्वपूर्ण है।
- निम्न मानव पूंजी आधार और कम कुशल श्रम बल के कारण भारत अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम नहीं भी हो सकता है।
- एसोचैम (ASSOCHAM) के अनुसार, केवल 20-30% इंजीनियरों को ही उनके कौशल के अनुकूल नौकरी मिल पाती है। इस प्रकार, निम्न मानव पूंजी आधार और कौशल की कमी एक बड़ी चुनौती है।
- UNDP के मानव विकास सूचकांक (HDI) (2021-22) में भारत 191 देशों की सूची में 132वें स्थान पर था, जो चिंताजनक है।
- HDI मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों में औसत उपलब्धियों की माप करता है। ये तीन आयाम हैं: सुदीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुँच और एक सभ्य जीवन स्तर।
भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश में कैसे सुधार कर सकता है?
- कौशल और रोज़गार सृजन:
- भारत के पास लगभग 500 मिलियन लोगों का विशाल श्रम बल मौजूद है, जिसके आने वाले वर्षों में और बढ़ने की उम्मीद है।
- हालाँकि, उनमें से अधिकांश या तो अकुशल हैं या अल्प-कुशल हैं और बदलते बाज़ार परिदृश्य में निम्न उत्पादकता और रोज़गार योग्यता रखते हैं।
- LFPR में सुधार करना:
- भारत को श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में सुधार करने की ज़रूरत है, जो वर्तमान में लगभग 50 प्रतिशत है। इसके लिये प्रत्येक वर्ष रोज़गार बाज़ार में प्रवेश करने वाले युवाओं के लिये अधिकाधिक रोज़गार अवसरों का सृजन करना होगा।
- इसके लिये निम्न उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र से उच्च उत्पादकता वाले विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों की ओर आगे बढ़ने की आवश्यकता है, जो अधिक श्रम को अवशोषित कर सकते हैं और अधिक आय उत्पन्न कर सकते हैं।
- कौशल विकास कार्यक्रमों में सुधार लाना:
- भारत द्वारा अपने कौशल विकास कार्यक्रमों की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है, जिनका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में लाखों श्रमिकों को प्रशिक्षित और प्रमाणीकृत करना है।
- इन कार्यक्रमों को उद्योग की मांग, वैश्विक मानकों और उभरती प्रौद्योगिकियों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये तथा श्रमिकों के लिये आजीवन अधिगम (लर्निंग) के अवसर प्रदान करने चाहिये।
- हालाँकि, इनके दायरे को बढ़ाने और इन्हें बेहतर बनाने की ज़रूरत है ताकि और श्रमिकों तक (विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों तक) पहुँच बन सके।
- विज़न 2025:
- कौशल मिशन में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) का विज़न 2025 शामिल है जो शिक्षा एवं कौशल के बीच संबंधों में सुधार लाने, औपचारिक कौशल के लिये मांग को उत्प्रेरित करने और एक उच्च-कुशल पारितंत्र का सृजन करने पर लक्षित है।
- स्वास्थ्य और कल्याण:
- भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु अनुपात जैसे अपने स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार लाने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- हालाँकि, अपनी विशाल एवं विविध आबादी के लिये स्वास्थ्य समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने में इसे अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत पर संचारी और गैर-संचारी रोगों का भारी बोझ है, जो इसके कार्यबल के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
- भारत सभी को पर्याप्त और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान कर सकने के लिये स्वास्थ्य अवसंरचना, मानव संसाधन और वित्तीय संसाधन की कमी भी रखता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में निवेश:
- भारत को अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है, जो इसकी लगभग 70 प्रतिशत आबादी की सेवा करती है। इसे अपने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल नेटवर्क को भी सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जो अधिकांश लोगों के लिये संपर्क का पहला बिंदु होता है।
- दवाओं की वहनीयता सुनिश्चित करना:
- भारत 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उद्योग के साथ दवाओं और टीकों के मामले में विश्व का अग्रणी देश है। विश्व में DPT, BCG और खसरे के टीकों में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की है।
- हालाँकि, यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ये दवाएँ और टीके समाज के सभी वर्गों के लिये सुलभ और वहनीय हों।
- भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु अनुपात जैसे अपने स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार लाने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- शिक्षा और नवाचार:
- भारत में युवा और प्रतिभाशाली लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है, जो इसकी आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास में योगदान दे सकता है।
- हालाँकि, इसके बच्चों और युवाओं में निरक्षरता, स्कूल ड्रॉप आउट और लर्निंग की कमी की दर भी उच्च है, जो उनकी क्षमता और आकांक्षाओं को प्रभावित करती है।
- शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना:
- भारत को प्री-प्राइमरी से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- इसे पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र, मूल्यांकन और शिक्षक प्रशिक्षण प्रणालियों को संवृद्ध कर अपने छात्रों के अधिगम प्रतिफलों में सुधार लाने की भी आवश्यकता है।
- इसके साथ ही लिंग, जाति, क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर शिक्षा में व्याप्त असमानताओं को भी कम करने की आवश्यकता है।
- भारत में युवा और प्रतिभाशाली लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है, जो इसकी आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास में योगदान दे सकता है।
प्रमुख सरकारी पहलें
- कौशल उन्नयन और उद्यमिता के लिये:
- जन शिक्षण संस्थान
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
- राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना
- स्किल इंडिया
- मेक इन इंडिया
- स्टार्ट-अप इंडिया
- स्वास्थ्य और कल्याण के लिये:
- आयुष्मान भारत
- स्वच्छ भारत मिशन
- प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना
- शिक्षा और नवाचार के लिये:
- समग्र शिक्षा कार्यक्रम
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
आगे की राह
- क्षमता दृष्टिकोण का अनुसरण करना:
- मानव कल्याण और विकास की बहुआयामी प्रकृति को चिह्नित करें और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद या हेड काउंट अनुपात जैसे संकीर्ण संकेतकों से आगे बढ़ें।
- भारत में विभिन्न समूहों और क्षेत्रों की क्षमताओं में अंतराल एवं असमानताओं की पहचान करें और लक्षित हस्तक्षेपों एवं सशक्तिकरण रणनीतियों के माध्यम से उन्हें संबोधित करें।
- स्वयं के जीवन को आकार देने और उन पर असर करने वाले निर्णयों को प्रभावित करने में लोगों की, विशेष रूप से समाज के हाशिए पर स्थित और कमजोर वर्गों की एजेंसी और भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए।
- विकास नीतियों और अभ्यासों के लिये मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में सामाजिक न्याय एवं मानवाधिकारों को बढ़ावा देना तथा शासन में जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- नवाचार और रचनात्मकता की संस्कृति को बढ़ावा देना जो सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन के लिये भारत की युवा आबादी की प्रतिभा एवं आकांक्षाओं का लाभ उठा सके।
- विनिर्माण गतिविधियों में तेज़ी लाना:
- लाखों नौकरियों का सृजन करने और निर्यात को बढ़ावा देने हेतु विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने की ज़रूरत है।
- विनिर्माण विशाल और युवा श्रम बल, विशेषकर निम्न या मध्यम कौशल वाले लोगों के लिये रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकता है।
- विनिर्माण वैश्विक बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकता है, इसकी निर्यात टोकरी में विविधता ला सकता है और इसके व्यापार घाटे को कम कर सकता है।
- विनिर्माण अर्थव्यवस्था में नवाचार और प्रौद्योगिकी उन्नयन को भी प्रेरित कर सकता है।
- कारोबारी माहौल को बढ़ाना:
- भारत को विनिर्माण में अधिक घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये अपने कारोबारी माहौल, अवसंरचना, लॉजिस्टिक्स एवं व्यापार सुविधा में सुधार लाने की ज़रूरत है।
- श्रम-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा देना:
- भारत को वस्त्र, परिधान, चर्म, जूते, खिलौने और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिनमें उच्च रोज़गार लोच और निर्यात क्षमता है।
- भारत को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को भी समर्थन देने की ज़रूरत है, जो विनिर्माण क्षेत्र की रीढ़ हैं। यह समर्थन ऋण, प्रौद्योगिकी, बाज़ार एवं कौशल तक पहुँच प्रदान करने के रूप में दिया जा सकता है।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना:
- डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में विकास, नवाचार और समावेशन के नए अवसर प्रदान कर सकती हैं।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ लाखों लोगों के लिये, विशेष रूप से दूरदराज के या कम सेवा वाले क्षेत्रों के लोगों के लिये सूचना, सेवा, बाज़ार और वित्त तक पहुँच को सक्षम कर सकती हैं।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कृषि, खुदरा और ई-कॉमर्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही एवं गुणवत्ता की भी वृद्धि कर सकती हैं।
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