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सफलता और असफलता के समय हमारी कार्यशैली कैसी होनी चाहिए? - श्रीनारद मीडिया

सफलता और असफलता के समय हमारी कार्यशैली कैसी होनी चाहिए?

सफलता और असफलता के समय हमारी कार्यशैली कैसी होनी चाहिए?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जीवन की लंबी परिवर्तनशील यात्रा में सभी युवा व्‍यक्तिगत और सामूहिक रूप से कई कामयाबी-नाकामयाबी के हकदार बनते हैं। इस क्रम में उनके ज्ञान और अनुभव की पूंजी में इजाफा होता रहता है। हां, इस दौरान एक और बात आमतौर पर दिखाई देती है और वह यह है कि कई युवा अच्छी बातों और कामयाबी का सारा क्रेडिट खुद लपकने का प्रयास करते हैं, लेकिन गलतियों और नाकामयाबियों का ठीकरा दूसरे के माथे पर फोड़ते हैं। सवाल उठता है कि क्या ऐसी कार्यशैली से वाकई हम बेहतर मुकाम हासिल कर सकते हैं?

1. एक व्यक्ति के रूप में ऐसे लोग खुद में सुधार लाने वाले रास्ते को बंद कर देते हैं और साथ ही कीमती समय, ऊर्जा और मानसिक शांति को अनावश्यक रूप से बर्बाद करने के रास्ते खोल देते हैं। ऐसा करना तो बहुत आसान होता है, लेकिन इसके दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं जो मुख्यतः उन्हें ही भुगतने पड़ते हैं।

2. किसी संस्थान के प्रमुख या किसी टीम के लीडर के रूप में इस तरह के लोग अपनी भूमिका के साथ अन्याय करते हैं। उस स्थिति में आमतौर पर लगभग सभी सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना बचाव करने और फिर एक-दूसरे पर दोष डालने लग जाते हैं। इससे अचानक एकता के बजाय गुटबाजी शुरू हो जाती है। अतार्किक बहसें प्रारंभ हो जाती हैं। पेशेवर विचार-विमर्श के स्थान पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ता है। अतीत की अप्रासंगिक-अवांछित बातें मिर्च-मसाले के साथ एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल की जाती हैं।

3. देखा गया है कि आरोप-प्रत्यारोप के छोटे-बड़े किसी भी दौर के थमने के बाद भी टीम भावनात्मक स्तर पर पूरी तरह कभी एकजुट नहीं हो पाती है। इसका व्यापक नकारात्मक असर संस्थान की छवि और उत्पादकता पर पड़ता है।

व्‍यवहार कुशल लोगों का रवैया : दूसरी तरफ एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप करने वालों के उलट किसी भी क्षेत्र के सफल, व्यवहार कुशल और प्रभावी लोग ऐसा नहीं करते हैं। यकीनन उनका रवैया अलग होता है। आखिर ऐसे लोग नाकामयाबियों से कैसे निपटने हैं, वे क्या करते हैं?

1. नाकामयाबी की स्थिति में समझदार टीम लीडर या कर्मी उस नाकामयाबी को दिल से नहीं, दिमाग से लेता है। संयत रहने की पूरी कोशिश करता है, विचलित या उत्तेजित नहीं होता। अपने स्तर पर हार या नाकामयाबी का निरपेक्ष विश्‍लेषण करता है, जिसमें उनकी अपनी कार्यशैली की समीक्षा भी शामिल होती है। गलत-सही के मूल्यांकन के लिए तराजू या पैमाना सबके लिए एक समान होता है। अगर किसी सदस्य विशेष की गलती है, तो उसे एकांत में बुलाकर उसका पक्ष जानता है और फिर उसे समझाता-बुझाता है। टीम लीडर का इरादा दोष या गलती करने वाले को अपमानित करने या नीचा दिखाने का नहीं होता है, बल्कि उसे गलती का एहसास करवाकर सुधारने का होता है।

2. सबसे अहम बात यह है कि सबके सामने वह खुद असफलता की जिम्मेदारी लेता है, जबकि टीम के सारे लोग जानते-समझते हैं कि इसमें कमोबेश सबकी या किसी सदस्य विशेष की नाकामी है। ऐसे में, कमोबेश सभी सदस्य आत्मावलोकन करते हैं और सब अंदर से दुखी भी रहते हैं। यहां लीडर अपनी टीम को इस सच से साक्षात्कार भी करवाता है कि जो हो गया, सो हो गया और अब तो जो भी आगे करना है उस पर फोकस करने का समय है, जिससे कि पिछली गलतियों से सबक लेकर आगे अपने प्रदर्शन को बेहतर कर सकें। दरअसल, एक सच्‍चे लीडर के सामने अपनी टीम को हार या नाकामयाबी के भाव से निकालकर भविष्य के बड़े लक्ष्य के लिए तैयार करना असली चुनौती होती है और वह उसी पर फोकस करता है।

3. लीडर द्वारा हार की जिम्मेदारी लेने से उत्साहवर्धक बात यह भी होती है कि पूरी टीम फिर से एक सकारात्मक भाव से संकल्पित होकर आगे की कार्ययोजना पर फोकस करती है। तब तू-तू, मैं-मैं की नौबत नहीं आती। नकारात्मक सोच और व्यवहार से सभी बच जाते हैं।

सबको श्रेय देने का फायदा: असफलता के विपरीत किसी काम में सफल होने पर एक बेहतर कार्यशैली वाला मैनेजर या टीम लीडर सफलता का श्रेय सबको देकर हरेक सदस्य को गौरव, आत्मसम्मान एवं आत्मविश्‍वास से भरने की कोशिश करता है। परिणामस्वरूप वे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनते हैं और बेहतर प्रदर्शन करने का मन-ही-मन संकल्प भी लेते हैं। ऐसा करने से लीडर के प्रति टीम सदस्‍यों का सम्मान बहुत बढ़ जाता है, जिससे टीम को भावनात्मक स्तर पर बांधे रखना और टीम के लिए निकट भविष्य की कार्ययोजनाओं को मूर्त रूप देना आसान हो जाता है।

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