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पोल्ट्री उद्योग के लिये क्या कदम आवश्यक हैं? - श्रीनारद मीडिया

पोल्ट्री उद्योग के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

H5N1 वायरस के प्रकोप ने औद्योगिक पशुधन क्षेत्र में गंभीर कमियों को प्रकट किया है, जो भारत के पर्यावरण तथा कानूनी ढाँचे के भीतर पशु कल्याण के व्यापक पुनर्मूल्यांकन की अनिवार्यता को रेखांकित करती हैं।

  • यह प्रकोप वन हेल्थ सिद्धांत को मज़बूत करता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य और जैवविविधता संरक्षण को एकीकृत करता है।

भारतीय पोल्ट्री उद्योग के समक्ष क्या समस्याएँ हैं?

  • रोग का प्रकोप और जैव सुरक्षा:
    • एवियन इन्फ्लुएंज़ा: एवियन इन्फ्लुएंज़ा (बर्ड फ्लू) के नियमित प्रकोप से उत्पादन बाधित होता है, पक्षियों की मृत्यु हो जाती है तथा बाज़ार में खाद्य संबंधी भय उत्पन्न हो जाता है, जिससे खपत प्रभावित होती है।
    • न्यूकैसल रोग (ND): ND एक अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है जो पोल्ट्री स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करता है।
    • जैव सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: पोल्ट्री फॉर्मों एवं पक्षी बाज़ारों में पर्याप्त जैव सुरक्षा उपाय न होने से रोगों के प्रसार में वृद्धि होती है।
    • अन्य चिंताएँ: उच्च घनत्व वाले पोल्ट्री फॉर्मों में मुर्गियों को अक्सर तार वाले पिंजरों में कैद किया जाता है, जिन्हें ‘बैटरी पिंजरों’ के रूप में जाना जाता है, जिससे पोल्ट्री फॉर्मों में अतिसघनता और दबाव उत्पन्न होता है।
    • इस प्रक्रिया से वायु की गुणवत्ता खराब होती है,अपशिष्ट जमा होता है तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण प्रदूषण एवं विरूपण में योगदान देता है।
  • बाज़ार में उतार-चढ़ाव और मूल्य अस्थिरता:
    • फीड मूल्य में उतार-चढ़ाव: मक्का और सोयाबीन जैसे महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री फीड सामग्री की अस्थिर कीमतें न केवल उत्पादन लागत को प्रभावित, बल्कि पोल्ट्री फीड सामग्री के आयात के कारण आयात निर्भरता बढ़ती है।
    • उपभोक्ता मांग में उतार-चढ़ाव: रोग के प्रकोप के समय पोल्ट्री उत्पादों के विषय में भ्रांँतियाँ एवं गलत सूचना इनकी खपत में अत्यधिक कमी ला सकती है, जिससे समग्र बाज़ार स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • बुनियादी ढाँचा और आपूर्ति शृंखला की चुनौतियाँ:
    • सीमित कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर: यह चुनौती उत्पादन में खराबी और बर्बादी का कारण बनती है, विशेषकर उत्पादन स्तर मे वृद्धि के दौरानI
    • अव्यवस्थित आपूर्ति शृंखला: कई मध्यवर्ती संस्थाओं वाली अव्यवस्थित आपूर्ति शृंखला लेन-देन की लागत बढ़ाती है जिससे किसानों का मुनाफा कम होता है, जबकि खराब परिवहन के कारण बुनियादी ढाँचा उत्पाद की आवाजाही को बाधित होती है, जिससे उत्पाद पहुँचाने का समय और उस उत्पाद की मूल अवस्था प्रभावित होती है।
  • नीति एवं नियामक मुद्दे:
    • असंगठित नियामक ढाँचा: सरकार के विभिन्न स्तरों पर कई अतिव्यापी नियम पोल्ट्री किसानों के लिये भ्रम और अनुपालन चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
    • ऋण तक सीमित पहुँच: छोटे और मध्यम स्तर के पोल्ट्री किसान अक्सर औपचारिक ऋण तक पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं, जिससे विकास एवं आधुनिकीकरण में बाधा आती है।
    • श्रम चुनौतियाँ: पोल्ट्री फार्मों के लिये कुशल श्रमिकों को ढूँढना और उन्हें कार्य पर रखना मुश्किल हो सकता है, जिससे परिचालन दक्षता प्रभावित हो सकती है।
  • अन्य मुद्दे: 
    • पर्यावरणीय चिंताएँ: यदि अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाएँ अपर्याप्त हैं तो पोल्ट्री उत्पादन जल प्रदूषण और वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में योगदान दे सकता है।
      • प्रोटीन की बढ़ती मांग के कारण पोल्ट्री में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ गया है, जिससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध और सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
    • पशु कल्याण संबंधी चिंताएँ: पूरे उद्योग में उचित पशु कल्याण मानकों को सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है।
    • मुश्किल निकास: अनुबंध खेती की व्यवस्था, संचित ऋण और क्षेत्र के लिये आवश्यक विशेष कौशल के कारण पोल्ट्री किसानों को अक्सर उद्योग से बाहर निकलने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

H5N1 एवियन इंफ्लुएंज़ा का मुद्दा:

  • H5N1 एवियन इंफ्लुएंज़ा के प्रकोप ने पशु कल्याण पर ध्यान देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • मनुष्यों में संक्रमण फैलने का पहला मामला: मनुष्यों में H5N1 संक्रमण; सीधे मुर्गियों द्वारा फैलने की पहली घटना वर्ष 1997 में हॉन्गकॉन्ग हुई थी।
  • भारत पर H5N1 का प्रभाव: भारत ने वर्ष 2006 में महाराष्ट्र में अपने पहले H5N1 रोगी की सूचना प्रदान कीI इसके बाद दिसंबर 2020 और 2021 की शुरुआत में इसका प्रकोप 15 राज्यों में फैल गया, जो रोगजनक की व्यापक प्रकृति को उजागर करता है।
  • H5N1 का वैश्विक प्रभाव: H5N1 ने प्रजातियों की बाधाओं को दूर करने की क्षमता विकसित की है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र में कई ध्रुवीय भालुओं और अंटार्कटिका में सीलो व सीगलों की मृत्यु हो गई, जो इसके वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
  • मनुष्यों में H5N1 की मृत्युदर: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि वर्ष 2003 से दर्ज़ मामलों के आधार पर H5N1 की मृत्यु दर 52% है, जो मानव स्वास्थ्य के लिये गंभीर जोखिम को उजागर करता है।

भारत में पोल्ट्री पालन क्षेत्र से संबंधित विभिन्न प्रावधान क्या हैं? 

  •  भारत में पोल्ट्री पक्षियों की स्थिति:
    • 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में 851.8 मिलियन पोल्ट्री पक्षी हैं। भारत में लगभग 30% ‘बैकयार्ड पोल्ट्री’ अथवा छोटे और सीमांत किसान हैं। पोल्ट्री फार्मों में मुर्गियाँ, टर्की, बत्तख, हंस आदि को मांस और अंडे के लिये पाला जाता है।
      • पोल्ट्री की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम और केरल हैं।
  • भारत में पोल्ट्री इकाइयों की कानूनी स्थिति:
    • पोल्ट्री किसानों के लिये दिशा-निर्देश, 2021: 
      • पोल्ट्री किसानों  की नई परिभाषाः 
        • छोटे किसान: 5,000-25,000 पक्षी
        • मध्यम किसान: 25,000 से अधिक और 1,00,000 से कम पक्षी
        • बड़े किसानः 1,00,000 से अधिक पक्षी
      • मध्यम आकार के पोल्ट्री फार्म की स्थापना और संचालन के लिये जल अधिनियम, 1974 तथा वायु अधिनियम, 1981 के तहत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अथवा समिति से सहमति का प्रमाण पत्र आवश्यक है, जिसके लिये 15 साल की अनुमति दी गई है।
      • पशुपालन विभाग राज्य और ज़िला स्तर पर दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये उत्तरदायी होगा।
    • अन्य प्रावधानः 
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) 5,000 से अधिक पक्षियों वाली पोल्ट्री इकाइयों को प्रदूषणकारी उद्योगों के रूप में वर्गीकृत करता है, जो अनुपालन और नियामक सहमति के अधीन है।
      • पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960, पशु कल्याण के महत्त्व को पहचानते हुए, मुर्गियों सहित जानवरों को कैद करने  पर रोक लगाता है।
      • वर्ष 2017 में भारत के 269वें विधि आयोग की रिपोर्ट ने मांस और अंडा उद्योगों में मुर्गियों के कल्याण के लिये ढाँचागत नियमों का प्रस्ताव किया, जिसमें सुरक्षित खाद्य उत्पादन के लिये बेहतर पशु कल्याण पर ज़ोर दिया गया था।
        • सिफारिशों के बावजूद, वर्ष 2019 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी अंडा उद्योग हेतु ढाँचागत नियमों को उचित नहीं माना गया है।
  • पोल्ट्री उद्योग के लिये कुछ पहल:
    • पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF): पशुपालन और डेयरी विभाग इसे राष्ट्रीय पशुधन मिशन के “उद्यमिता विकास और रोज़गार सृजन” (EDEG) के तहत कार्यान्वित कर रहा है।
    • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): NLM के तहत विभिन्न कार्यक्रम जिसमें रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट (RBPD) और इनोवेटिव पोल्ट्री प्रोडक्टिविटी प्रोजेक्ट (IPPP) को लागू करने के लिये राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • पशु रोग नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (ASCAD) योजना: ASCAD योजना ‘पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण’ (LH&DC) के तहत आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री रोगों जैसे; रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को कवर करती है, जिसमें एवियन इंफ्लुएंज़ा (Avian Influenza) जैसी आकस्मिक एवं विदेशी बीमारियों का नियंत्रण और रोकथाम करना शामिल है।

पोल्ट्री उद्योग को समर्थन देने के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?

  • वैश्विक प्राथमिकता के रूप में जैव सुरक्षा:
    • पृथक्करण: विश्व के प्रमुख पोल्ट्री उत्पादक फ्लॉक्स (पोल्ट्री के समूह) को उनकी आयु और स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अलग-अलग रखते हैं, जिससे इनमें रोग संचरण का जोखिम कम हो जाता है।
      • इस प्रथा को भारत में विभागीकरण पोल्ट्री क्षेत्रों की स्थापना करके या जैव-सुरक्षित सुविधाओं के भीतर मल्टी ऐज रिअरिंग (multi-age rearing) को प्रोत्साहित करके अपनाया जा सकता है।
    • टीकाकरण कार्यक्रम: एवियन इन्फ्लुएंज़ा और न्यूकैसल रोग जैसी प्रचलित बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण प्रोटोकॉल को अपनाना विश्व स्तर पर मानक उपाय हैं।
      • भारत अपने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रमों को मज़बूत करके और छोटे पैमाने के किसानों तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करके लाभान्वित हो सकता है।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से दक्षता बढ़ाना:
    • सटीक फीडिंग: उन्नत फीडिंग प्रणालियाँ जो व्यक्तिगत पक्षी की ज़रूरतों के अनुकूल होती हैं और फीड उपयोग को अनुकूलित करती हैं, विश्व स्तर पर में लोकप्रियता प्राप्त कर रही हैं।
      • भारतीय पोल्ट्री फार्मों को इन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने से, यहाँ तक कि छोटे संस्करणों में भी, फीड रूपांतरण दक्षता में सुधार हो सकता है और लागत कम हो सकती है।
    • पर्यावरण निगरानी प्रणाली: पोल्ट्री घरों में तापमान, आर्द्रता और अमोनिया के स्तर जैसे कारकों की वास्तविक समय की निगरानी इष्टतम पक्षी स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • कम लागत वाले सेंसर के माध्यम से भी, भारतीय खेतों में ऐसी प्रणालियों को लागू करने से स्वस्थ वातावरण बनाए रखने और बीमारी के प्रकोप को रोकने में सहायता मिल सकती है।
  • एक सतत् आपूर्ति शृंखला का निर्माण:
    • अनुबंध खेती: उत्पादकों और प्रसंस्करणकर्त्ताओं के बीच अनुबंध फार्मिंग की व्यवस्था किसानों के लिये बाज़ार पहुँच और उचित मूल्य सुनिश्चित करती है।
    • कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर: परिवहन और भंडारण के दौरान नुकसान को कम करने के लिये मज़बूत कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना एक सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यास है।
      • भारत दूरदराज़ के उत्पादन क्षेत्रों को प्रमुख उपभोग केंद्रों से जोड़कर कुशल कोल्ड चेन नेटवर्क विकसित करने को प्राथमिकता दे सकता है।

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