108 साल पहले कामागाटा मारू घटना क्या था?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 29 सितंबर यानी आज ही के दिन 1914 में ऐतिहासिक ‘कामागाटा मारू’ घटना हुई थी जिसने भारत की स्वाधीनता के चर्चित ‘गदर आंदोलन’ को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई थी।

कामागाटा मारू घटना 108 साल पुरानी है। अप्रैल 1914 में, बाबा गुरदित्त सिंह के नेतृत्व में पंजाब के 376 यात्रियों के साथ जापानी समुद्री जहाज ‘कामागाटा मारू’ हांगकांग से रवाना हुआ था। इसमें 340 सिख, 24 मुसलमान, 12 हिंदू और बाकी ब्रिटिश थे। 23 मई, 1914 को वैंकूवर के तट पर जहाज पहुंचा तो उसे दो महीने तक वहीं खड़ा रहना पड़ा, क्योंकि कनाडा की सरकार ने अलग-अलग कानूनों का हवाला देकर भारतीयों को वहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।

बात सिर्फ इतनी नहीं थी कि यात्रियों को कनाडा में प्रवेश नहीं दिया गया। अधिकारियों ने जहाज पर खाना और पानी पहुंचाने पर भी रोक लगा दी थी। दो महीने तक 376 लोगों को बिना खाना और पानी के जहाज पर रहना पड़ा था। मजबूरी में वापस लौटा ‘कामागाटा मारू’ सितंबर में कोलकाता के बजबज पर पहुंचा। वहां 29 सितंबर, 1914 को पुलिस के साथ हिंसक झड़प में 19 यात्रियों की गोली लगने से मौत हो गई थी। कामागाटा मारू घटना ने गदर आंदोलन के उदय में उत्प्रेरक का काम किया था।

– 1908 में कनाडा सरकार ने माइग्रेंट्स को रोकने के लिए काउंसिल में एक ऑर्डर पास किया था।
– इस ऑर्डर के तहत ऐसे लोग ही कनाडा अा सकते थे, जो या तो यहां पैदा हुए थे या फिर वो सिटीजन थे।
– यह आदेश खासकर भारतीयों को रोकने के लिए दिया गया था।
– 1914 में सिंगापुर में रहने वाले सिख बिजनेसमैन गुरदीत सिंह संधू ने इसे पर्सनल चैलेंज की तरह लिया।
कनाडा ने रोकी फूड और वॉटर सप्लाई
– संधू एक जापानी जहाज कामागाता मारू में 340 सिख, 24 मुस्लिम और 12 हिंदुओं को भरकर 23 मई 1914 में कनाडा के वैंकुवर के पोर्ट पर पहुंचे।
– डॉक पर जहाज को घेर लिया गया। पैसेंजर्स को उतरने की परमिशन नहीं दी गई। सिर्फ 20 कैनेडियन नागरिकों को ही उतरने दिया गया।
– सरकार ने सख्ती दिखाते हुए शिप से वापस लौट जाने को कहा। साथ ही खाने-पीने की सप्लाई भी बंद कर दी गई।
– तब कनाडा में रह रहे इंडियन इमीग्रेंट्स और अमेरिका ने कनाडा के इस कदम का कड़ा विरोध किया था।
– उ

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