1993 के मणिपुर में 750 लोगों की मौत का क्या था कारण?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
Manipur 1993 Riots: पिछले कई महीनों से मणिपुर जल रहा है, हर तरफ तबाही, आगजनी, दंगे और अफरा-तफरी का माहौल है। कुकी और मैतेई समुदाय के लोगों के बीच एक विरोध प्रदर्शन से शुरू हुआ बवाल आज पूरे राज्य को आग में झोंक चुका है।
अब तक इस दंगे में लगभग 160-170 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हो चुके हैं। हर तरफ स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बल के कर्मचारी भारी मात्रा में तैनात हैं, वहीं कई लोग आज भी अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं।
हालांकि, आपको बता दें, ऐसा पहली बार नहीं है। इससे पहले भी दो समुदायों के बीच रक्तपात हो चुका है, इससे पहले भी प्रदेश आग में जल चुका है और तबाही का मंजर देख चुका है। इस दंगे के बारे में आज भी बहुत-से लोग नहीं जानते हैं, जिसका बहुत बड़ा कारण था कि उस दौरान न तो इंटरनेट था और न ही कोई ऐसा समाचार चैनल था, जो 24 घंटे लोगों तक जानकारी पहुंचा सके।
इस खबर में हम आपको बताएंगे कि दंगों से मणिपुर का क्या कनेक्शन रहा है और इससे पहले कितनी बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। इससे पहले 1993 में नागा और कुकी समुदाय के लोगों के बीच भी काफी भीषण दंगा हुआ था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे और माना जाता है कि अगर उस दौरान राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया गया होता, तो दंगे को संभालना थोड़ा मुश्किल हो सकता था।
मणिपुर में 1993 का दंगा
साल 1993 में मणिपुर हिंसा के दौरान राज्य में नागा और कुकी समुदाय आमने-सामने हुए थे। उस दौरान 10-20 और 50 नहीं, बल्कि सैकड़ों लोग मारे गए थे। कुछ आंकड़े बताते हैं कि लगभग 700 लोग, तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इसमें अनगिनत लोग मारे गए थे।
कुकी समुदाय से नाराज थे नागा समुदाय के लोग
नागाओं और अल्पसंख्यक कुकी समुदाय के बीच संघर्ष इतना खूनी हो गया था कि इसमें बहुत कम समय में ही 85 लोगों की जान चली गई और पूरे के पूरे गांव जलाए जाने लगे। कुकी और नागा, दोनों ही ईसाई समुदाय के बीच जातीय शत्रुता जेनोफोबिक असुरक्षा से शुरू हुई थी। स्थानीय नागा इस बात से नाराज थे कि कुकी समुदाय के लोगों द्वारा उनकी भूमि पर अतिक्रमण कर लिया गया है। दरअसल, नागा हमेशा से कुकी समुदाय के लोगों को विदेशी मानते थे।
हालांकि, कुछ कुकी तब से मणिपुर में रह रहे हैं, जब उन्हें 18वीं शताब्दी में बर्मा के चिन हिल्स में अपनी मातृभूमि से बाहर निकाल दिया गया था। आज राज्य की 18 लाख की आबादी में 2.5 लाख कुकी समुदाय के लोग हैं, जबकि नागाओं की संख्या 4 लाख है।
पूरी तरह से नष्ट हो गए थे गांव
उस दौरान भड़की हिंसा में 28 गांव, जिनमें से दो-तिहाई नागा थे, वो पूरी नष्ट हो गए। चंदेल, सदर हिल्स और उरखुल जिलों में गांव के गांव तबाह हो गए और मलबे के ढेर में तब्दील हो गए। शरणार्थी शिविरों में रह रहे निवासियों को सुरक्षा के मद्देनजर खाली कर दिया गया।
शरणार्थियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बहुत मुश्किल हो रहा था, क्योंकि जिस रास्ते से लेकर उन्हें गुजरना था, वो पूरी तरह से उग्रवादी इलाका माना जा रहा था। सड़क का यह हिस्सा प्रतिद्वंद्वी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-एम) और बर्मा स्थित कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) के विद्रोहियों के नियंत्रण में था।
खुले मैदान में रहने को मजबूर थे नागा शरणार्थी
एक खुले मैदान में लगभग 300 नागा शरणार्थी को रखा गया था, क्योंकि कुकी विद्रोहियों द्वारा उनके गांवों पर किए गए हमले के बाद वे बेघर हो गए थे। पुरुष महिलाओं को उनके हाल पर छोड़कर जंगलों में भाग गए थे।
लोगों में इस हद तक डर बैठा हुआ था कि जब सुरक्षा बल उनकी मदद के लिए गांव में पहुंचते थे, तो उस दौरान नागा परिवार के लोग अपनी झोपड़ी से बाहर नहीं निकलते थे, क्योंकि उन्हें लगता था ये कुकी समुदाय के लोग हैं और उनके झोपड़ी और परिवार को तहस-नहस कर देंगे।
कुकी समुदाय पर भी हुए हमले
वहीं, दूसरी ओर कुकी गांव सीता में सब कुछ उल्टा था। घात लगाकर किए जाने वाले हमलों को रोकने के लिए सेना ने दोनों तरफ के जंगलों को साफ कर दिया और ग्रामीणों ने संभावित नागा हमलों के खिलाफ अस्थायी बैरिकेड्स लगा दिए थे। नागाओं ने इस गांव पर हमला किया और लगभग 25 झोपड़ियों में आग लगा दी। एनएससीएन (एम) के ग्रेटर नागालैंड के आह्वान से कुकियों की असुरक्षा की भावना बढ़ गई थी।
सामना करने के लिए कुकी महिलाओं ने उठाए हथियार
नागा हमलों का मुकाबला करने के लिए कई कुकी महिलाओं ने हथियार उठा लिए थे। संघर्ष की इस चल रही लड़ाई में, जिसने मणिपुर को विद्रोहियों के खेल के मैदान में बदल दिया था, पांच पहाड़ी जिलों का शायद ही कोई गांव इससे अछूता रह पाया था। कम्बांग खुलेन, एक खड़ी पहाड़ी पथ पर स्थित नागा गांव, लगभग दुर्गम लगता है, यह भी जातीय रोष से अछूता नहीं था।
राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग
मणिपुर में लगी आग की खबर अब राजनीतिक गलियारे में भी गूंजने लगी थी। इस हिंसा के दौरान राजकुमार दोरेंद्र सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री थे। उस वक्त नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल की सलाह पर राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की।
सीएम दोरेंद्र को बताया विफल
हालांकि, उस दौरान गृह राज्य मंत्री राजेश पायलट (कांग्रेस नेता सचिन पायलट के पिता) तीन घंटे के लिए मणिपुर दौरे पर गए थे, जिसमें दो घंटे वो एयरपोर्ट पर रुके और एक घंटे में उन्होंने दौरा करने के बाद कहा था कि मणिपुर के सीएम दोरेंद्र सिंह राज्य में प्रशासन लागू करने में विफल रहे हैं। यहां हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौरान मणिपुर में कांग्रेस की ही सरकारी थी।
मणिपुर में कई बार लगा राष्ट्रपति शासन
- पहली बार राष्ट्रपति शासन 19 जनवरी, 1967 से 19 मार्च, 1967 तक 66 दिन के लिए लगाया गया था। उस समय मणिपुर केंद्र शासित विधानसभा का पहला चुनाव होना था।
- दूसरी बार 25 अक्टूबर, 1967 से 18 फरवरी, 1968 तक 116 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। उस दौरान मणिपुर में राजनीतिक संकट आ गया था, क्योंकि उस दौरान किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था।
- तीसरी बार राज्य में राष्ट्रपति शासन 17 अक्टूबर, 1969 से 22 मार्च, 1972 तक दो साल 157 दिन के लिए लगाया गया था। दरअसल, उस दौरान पूरे राज्य में हिंसा फैल गई थी, जिसका कारण था कि लोगों ने पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग की थी। इसके बाद पूरे राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी।
- चौथी बार 28 मार्च, 1973 से 3 मार्च, 1974 तक राष्ट्रपति शासन लगा था। उस वक्त विपक्ष के पास बहुत ही कम बहुमत था और वह स्थायी सरकार नहीं बना सकता था।
- पांचवीं बार 16 मई, 1977 से 28 जून, 1977 तक 43 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा था। उस दौरान दल बदल के चलते राज्य की सरकार गिर गई थी।
- छठी बार 14 नवंबर, 1979 से 13 जनवरी, 1980 तक 60 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा, जिसके लिए राजनीतिक कारण जिम्मेदार रहा। असंतोष और भ्रष्टाचार के आरोप के कारण सरकार बर्खास्त कर दी गई और विधानसभा भंग हो गई थी।
- सातवीं बार 28 फरवरी, 1981 से 18 जून, 1981 तक राष्ट्रपति शासन लगा। उस दौरान भी राजनीतिक कारणों से राज्य में स्थायी सरकार का गठन नहीं हो सका था।
- आठवीं बार 7 जनवरी, 1992 से लेकर 7 अप्रैल, 1992 तक 91 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा। उस वक्त दल बदल के कारण गठबंधन सरकार गिर गई थी।
- नौंवी बार 31 दिसंबर, 1993 से 13 दिसंबर, 1994 तक 347 दिन तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा था। उस दौरान नागा और कुकी समुदाय के बीच हिंसा हुई थी। यह हिंसा बहुत लंबे समय तक चली, जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए थे।
- दसवीं बार 2 जून, 2001 से 6 मार्च, 2002 तक 277 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा था। उस वक्त सरकार ने बहुमत खो दिया था, जिसके कारण शासन लागू करना पड़ा था।
मणिपुर का भारत में विलय
साल 1947 में मणिपुर अंग्रेजों से आजाद हुआ था। उस दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जिम्मेदारी थी कि वो सभी रियासतों का भारत में विलय कराये। 1947 में जब मणिपुर आजाद हुआ तब से मणिपुर का शासन महाराज बोध चन्द्र के कन्धों पर पड़ा। राजा ने भारत साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर तो किए, लेकिन अपनी रियासत में एक संविधान भी बना दिया, जिसके बाद साल 1948 में मणिपुर में चुनाव भी हुए।
साल 1949 में शिलांग में मणिपुर के राजा ने भारत के साथ अपनी रियासत को शामिल करने में रजामंदी दी और 15 अक्टूबर, 1949 को मणिपुर भारत का हिस्सा बन गया। हालांकि, अब भी मणिपुर के अलगाववादी लीडर्स का दावा है के 1949 के विलय पत्र पर मणिपुर के राजा के हस्ताक्षर जबरदस्ती कराए गए थे। मणिपुर 1956 में केंद्र शासित राज्य बना और 21 जनवरी, 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया।
कैसे आए नागा और कुकी समुदाय?
अंग्रेजों ने मणिपुर को अपने अधीन करने के दौरान देखा कि इस इलाके में केवल हिंदू यानी मैतेई समुदाय के लोग हैं। जिसके बाद अंग्रेजों ने ईसाई मिशनरी को यहां भेजना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, मिशनरियों ने इस इलाके के लोगों का आसानी से धर्म परिवर्तित करने का काम शुरू किया। जब लोग यहां पर भारी मात्रा में ईसाई धर्म में परिवर्तित होने लगे, अंग्रेज इसको ईसाई राज्य बनाने का सपना देखने लगे। धर्म परिवर्तित करने वालों को कुकी जनजाति और वैष्णव लोगों को मैतेई समाज कहा जाता है।
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